“उफ्फ़... थक गया ऐसे भाषणों, नारों और झांकियों से!” हांफते हुए वह एक सूखे से पेड़ की शाखा पर जा बैठा। स्वाधीनता दिवस समारोह में सरे आम अपने कुछ साथियों के साथ क़ैद रहा ‘शांति का प्रतीक’ वह कबूतर लम्बे इन्तज़ार के बाद साथियों के साथ गगन में मुक्त तो कर दिया गया था, लेकिन उसने एक अलग उड़ान भरी और धोखे से क़ब्रिस्तान जा पहुंचा था।
“परेड मैदान और मंच पर मौजूद लोगों में से कोई तो तोता, शेर, गधा, बंदर, कुत्ता, गिद्ध या गीदड़ नज़र आ रहा था, तो कोई पप्पू जैसा।” यह सोचते हुए अभी भी उसके कानों…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 13, 2017 at 12:00am —
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“भाभी, उस तरफ़ मत देखो; इस तरफ़ देखो! यह देखो कितना सुन्दर बच्चा! बिल्कुल वैसा ही, जैसा बैडरूम में भैया के लगाये पोस्टर में है, है न!”
“हां, बहू अच्छे चेहरे देखती रहो, अच्छी फिल्में देखो, भगवान ने चाहा तो तू भी मुझे ज़ल्दी ही सुंदर सा पोता देगी!”
सरकारी अस्पताल के महिला वार्ड के आख़री बैड पर अपनी मां के सिरहाने बैठी सम्मो अगले पलंग के पास बैठे किसी परिवार के सदस्यों की बातें सुन कर अपनी मां को और दूध पीती अपनी नन्हीं बहन को बड़ी दया से देखने लगी। मां का उतरा हुआ पीला सा…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2017 at 10:59pm —
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"क्यों नवयुवक, तुम किस के लिए दौड़ रहे हो इस भीड़ में? एकता के लिए, अपने लिए, किसी महापुरुष की प्रतिष्ठा के लिए, सरकार के लिए या किसी को श्रद्धांजलि के लिए?"
एक विशेष अवसर पर आयोजित विशाल दौड़ में एक पत्रकार ने पूछा तो वह नवयुवक अपनी विशेष टी-शर्ट सही करते हुए, मोबाइल से सेल्फ़ी लेते हुए बोला - " ये बढ़िया रहा! लोकप्रिय पत्रकार के साथ यादगार फोटो! .... चलिए आप भी दौड़िए मीडिया कवरेज के लिए, ग्लैमर के लिए, पब्लिसिटी के लिए; 'राष्ट्रीय एकता' के इस बैनर तले!"
सब दौड़ रहे थे।…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2017 at 1:22am —
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कुछ तो नया मिल जाए, अपना कुछ रूप-रंग बदल जाये, किसी तरह तो पागल-दीवानों को संतुष्ट किया जाये। इसी सोच के साथ वे सब आज फिर इंतज़ार में थीं, किसी नये अवतार में ढलने के लिए। एक-दूसरे के हालात का जायज़ा लेते हुए उनके बीच विचार विमर्श चल रहा था।
"इन लोगों को तो बस भाषण देना या राग अलापना आता है, बस!"
"करते वही हैं, जो फ़ैशन में है और जो विज्ञापनों में दिखाया, सिखाया जाता है!"
समूह में से दो क़लमों के संवाद सुनकर तीसरी ने कहा -"देशी तन में हमें विदेशी तकनीक के चोले पहनने पड़ते हैं। नई…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 27, 2017 at 1:00am —
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"अरे, इसे रोको तो ज़रा! कौन है यह? इस तरह कहां और क्यों दौड़ा चला जा रहा है ? कहीं यह वही 'विकास' तो नहीं?"
"नहीं!"
"तो क्या यह भी कोई 'राम' नामधारी है?"
"नहीं!"
"तो फिर कौन है यह? किसी 'राधा' का मीत?"
"नहीं, वह भी नहीं!"
"तो क्या 'गंगा' का सेवक?"
"नहीं भाई!"
"तो क्या तथाकथित 'सेवक'; जेहादी, हिन्दुत्व-प्रचारक, इस्लाम या ईसाइयत-प्रचारक?"
"नहीं, हरग़िज़ नहीं!"
"तो फिर कोई भ्रष्टाचारी, आतंकी या सब कुछ जीतने का इच्छुक कोई नया 'हिटलर'?"
"वैसा भी…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 20, 2017 at 11:00am —
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"चलो दिल बहलाने के लिए अब शतरंज खेलते हैं!"
"ठीक है, लेकिन जीतोगी तो तुम ही!"
"ऐसा मत कहो, दिल बहुत भारी है, कोई भी जीते!"
"सच कहती हो, जीत और हार तो अब इस ताजमहल के इतिहास और हक़ीक़त की होनी है, मुमताज़!"
"आज मुझे अर्जुमंद ही कहो, मुमताज़ नहीं, मेरे ख़ुर्रम! ये इक्कीसवीं सदी का हिन्दुस्तान है, डार्लिंग! कुछ देर आज के लवर्स की तरह बातचीत कर लो न! कल यहां क्या हो, किसने जाना!"
"सही कहा तुमने! सुना है यहां का इतिहास बदलने की धमकियां दी जा रही हैं! तुम्हारा ये ताजमहल अब…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 5:00am —
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"धर्मों, महात्माओं की गरिमा की तो धज्जियां उड़ रही हैं! कितने पवित्र नाम कैसी-कैसी मानसिकताओं के साथ जुड़ गए!"
"नयी पीढ़ी है, उसकी अपनी सोच विकसित हुई है वैश्वीकरण और इंटरनेट के दौर में!"
"क्या यही है जीवन जीने की कला? यह कैसा विकृत रूप है धर्मों, धर्मावलंबियों और विपश्यना जैसी साधनाओं का?!"
"बाबाओं ने पाश्चात्य रंग दे डाले हैं... और कट्टरपंथियों ने आतंक के!"
घटनाओं और हालात पर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी बेबाक चर्चा कर रहे थे। अधिकतर उनकी बुराई कर रहे थे, जबकि उनमें से कुछ…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 17, 2017 at 12:43pm —
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"सभ्यता की तरह तुम भी इतिहास और गांधी जैसे महापुरुषों की लाठियों के सहारे को हमारा सहारा मानने की भूल कर रही हो!" नयी पीढ़ी ने अपने देश की संस्कृति से कहा।
"भूल तो तुम कर रही हो, वैश्वीकरण के दौर में बिक रहे मुल्कों , उनके स्वार्थी नेताओं और बिके हुए बुद्धिजीवियों के बयानों और साजिशों में फंसकर!" संस्कृति ने अपने हाथों में थामी हुई लाठी चूमते हुए कहा - मसलन ये देखो, गांधी जी की लाठी! ये लाठी मेरे लिए उनके अनुभवों, विचारों और दर्शन की सुगठित प्रतीक है। किताबों, काग़ज़ों, चरखों, कलैंडरों से,…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2017 at 4:57pm —
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"कमली, तू तो करवा चौथ के दूसरे दिन भी काफी सुंदर लग रही है, सजी-धजी सी!"
मेम साहब की यह टिप्पणी सुनकर कमली उनके कमरे में और अच्छी तरह से झाड़ू लगाने लगी।
"छोड़ ये झाड़ू-पोंछा.. आ बैठ यहां!" कमली का हाथ खींच कर उसे सोफे पर बैठा कर मेम साहब ने पूछा - "सच, बहुत सुंदर और ख़ुश दिख रही है तू!"
"पर आपके सामने हम कहां!"
"चुप्प! छोड़ ऐसी बातें! अच्छा ये बता, तू कितने वाट की है?"
"वाट!"
"हां, कितना वोल्टेज है तुझ में?" इतना कहकर मेम साहब फफक-फफक कर रोने लगी।
उनके ही…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 10, 2017 at 6:38pm —
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"मेरे देशवासियों, देश बदल रहा है! कुछ ही सालों में हम सब कुछ बदल डालेंगे!"
छोटे-मोटे नेताओं के बाद अब बड़े नेताजी मंच पर सीना तान कर भाषण दे रहे थे। मंचासीन सेवकों के सीने भी तन चुके थे। थकी हुई जनता उन्हें सुन रही थी।
कुछ जुमले छोड़ने के साथ ही नेताजी अपनी हथेली जनता की ओर करते हुए बोले - "भाइयों और बहनों, मेरे मित्रों! आपके द्वारा चुना गया आपका सच्चा सबसे बड़ा सेवक यानी मैं! मैं पुरानी लकीरें नहीं पीटता, नई लकीरें खींचता हूं। ये हथेली, आपकी हथेली, हथेली नहीं, भारत है भारत!! इसमें…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2017 at 4:40pm —
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"चाय बनाने को लेकर कलह करते हैं।"
"अच्छा! तो तू चाय मत बनाया कर! उसे ही बनाने दिया कर!"
"झाड़ू-पौंछा और घर संवारने की कह-कहकर कलह करते हैं।"
"अच्छा! तू सब कुछ वैसा ही पड़े रहने दिया कर, तू कोई नौकरानी थोड़ी न है, अपनी सरकारी नौकरी के अलावा तू कुछ मत किया कर। अपने आप को संवारो और बच्चों को संभालो!"
"कहते हैं कि बीवी हो, यह सब भी करना ही होगा!"
"अरे! ऐसे शौहर के होते बीवी तो नहीं, बेवा बनना बेहतर है!"
"विधवा जैसी ही तो जी रही हूं, अम्मी!" अपने-अपने काम, अपने-अपने…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 3, 2017 at 11:14pm —
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"जी नहीं, आर्मी की यूनीफोर्म जैसी नहीं, मेरी सुविधा के अनुसार ही कुछ जेबों वाली शर्ट और पैंट दिखाइये!" अपने कंधे उचकाते हुए स्मार्टमेन ने दुकानदार से कहा। तुरंत ही उसका स्मार्टसन डिमांड स्पष्ट करते हुए बोल पड़ा - "अंकल जी, अच्छे-खासे ब्रांड की ऐसी ड्रेस हो, जिसमें हमारे मोबाइल या टैबलेट वगैरह अच्छी तरह से समा जायें!"
दुकानदार आंखें फाड़कर उन दोनों और उनके पहनावे को घूरने लगा। फिर चार-पांच महंगी शर्ट्स दिखाते हुए बोला -"वैसे कितने मोबाइलों के लिए किस-किस पोजीशन पर जेबें चाहिए…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2017 at 2:42pm —
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"तुम अपने काम संभालो! अपने काम निपटा कर मैं आता हूं।" रोज़ाना की तरह आज भी वह शायद वहीं गया था, जहां शंका थी। लक्ष्मी उसकी राह देख रही थी। कितना हंसमुख, सुंदर, ख़ुशमिज़ाज और हृष्ट-पुष्ट भाई है उसका। हम ग़रीबों के पास ये ही तो प्रभु के उपहार हैं। लेकिन रईस हमारी इन नियामतों पर भी डाका डाल देते हैं। लक्ष्मी बड़े भाई के बारे में सोच-सोच कर परेशान हो रही थी।
"भैया, मैं भी अब जवान हो रही हूं। मां-बाप की मज़बूरियां तो समझती हूं, लेकिन कम से कम तुम तो मेरे बारे में सोचो! उस रईस मेम साहब के…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2017 at 12:09pm —
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"अब्बू, चलिए जूतों की दुकान पर!"
"नहीं बेटा, ई़़द़ के लिए तुम ही कोई सस्ती सी चप्पलें ख़रीद लाओ मेरे लिए!"
"आप भी चलिये न, दिल बहल जायेगा!" सुहैल ने अपने अब्बू को पलंग से लगभग उठाते हुए कहा।
"ख़ाक दिल बहलेगा। वहां तो ऐसा लगता है कि ग्राहक, दुकान के नौकर और मालिक और जूते-चप्पलों की कम्पनियां सब एक-दूसरे को जूते मार रहे हों!"
"हां, सो तो है! जूतमपैजार और हमें ग़रीबी का अहसास!" सुहैल ने अब्बू को पलंग पर लिटाते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2017 at 10:44am —
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"छोटा सा काम हो या बड़ा, छोटा लक्ष्य हो या बड़ा; कुछ हासिल करने के लिए सबसे पहले सूत्र चाहिए, जुगाड़ चाहिए, बस!"
"हां, सूत्र से सूत्र मिलते हैं, कड़ी से कड़ी जुड़ती है, तभी मंज़िल का रास्ता तय होता है!"
इन दोनों की बातें सुनकर तीसरे व्यक्ति ने कहा- "लेकिन मेरे तो यही सूत्र हैं कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते, इसकी टोपी उसके सर और उंगली पकड़कर कर पौंछा पकड़ना!"
यह सुनकर चौथा व्यक्ति अपना सीना तान कर खड़ा हुआ और बोला- "इनमें मेरी सफलता के सूत्र भी जोड़ दो। छोटा हो या बड़ा;…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 23, 2017 at 11:50pm —
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"मैंने यह तो कहा नहीं कि शादी के बाद हम यह देश ही छोड़ देंगे! मैं तो यह कह रहा हूं कि अधिक से अधिक डॉलर जुटाने के लिए अभी से नोटों की जुगाड़ करनी चाहिए हम दोनों को!"
"सही कहा तुमने। आदर्शवादी बनने और सबका सोचने के चक्कर में न देश में मज़े कर पाये और न ही विदेश में! तुम अपने पिता से अपना हक़ मांगों और मैं दहेज़ के बजाय नक़द पैसों की बात कर लूंगी पापा से!"
अरुण के विचारों का समर्थन करते हुए मंजू ने एक बार फिर से अनुरोध करते हुए उस से कहा- "अब हमें अपनी शादी और नहीं टालनी चाहिए। इतनी…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 16, 2017 at 2:19am —
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"लगता है कि रास्ता भूल गई है।"
"काफ़ी देर से बैठी है, कोई मानसिक रोगी है या पागल है!"
"नहीं भाई, कपड़े तो साफ़ सुथरे हैं, शायद किसी से बिछड़ गई है!"
एक पेड़ के नीचे बैठी वह औरत लोगों की टिप्पणियां सुन तो रही थी लेकिन कहीं खोई हुई थी। उसके कानों में अभी भी बैंड-बाज़ों की आवाज़ें सुनाई दे रहीं थीं। फूल-मालाओं से लदे जीप में बैठे अपने पति के अपने प्रति रवैए से वह बहुत आहत थी। अत्यल्प-शिक्षित थी। बरसों से अपने बेटे-बहू के साथ ही 'किसी तरह' रह रही थी। पति द्वारा लाख…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 14, 2017 at 7:54pm —
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रोशनी की किरण के रास्ते को जब उस युवती ने अपनी हथेली से बाधित किया तो उसकी चारों उंगलियां लालिमा पाकर उसे भाव संसार में ले गईं।
"लोकतंत्र के चारों स्तंभों में नारी भी सक्रिय है, नारी का महान योगदान है!" यही तो उसकी मां ने उसे बताया, समझाया और फिर इस लायक बनाया कि वह आज इन सभी के संपर्क में है बतौर मीडियाकर्मी। मां की मधुर स्मृतियां उसे भाव संसार में ले गईं। कुछ पल ही गुज़रे कि उसकी आंखों से आंसू लाल गालों को गर्माहट सी देने लगे।
"परिपक्व कहलाने वाले हमारे इस लोकतंत्र के चारों स्तंभ आज…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 9, 2017 at 11:23pm —
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पापा की बेटी
या
बाबा की बेटी।
देश की बेटी
या
वेश में बेटी।
स्वतंत्र बेटी
या
क़ैद में बेटी।
हेर-फेर में बेटी
या
डेरे-फेरे में बेटी।
हाथ बंटाती बेटी
या
'हाथ की सफाई' में बेटी।
गौरवशाली बेटी
या
कलंककारी बेटी।
उठती, उड़ती बेटी
या
उठाती, उड़ाती बेटी।
चौंकती बेटी
या
चौंकाती बेटी।
जीतती, जीती बेटी
या
हारती, मरती…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 6, 2017 at 9:09pm —
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हल्कू ने बहुत दिनों बाद अपने बेटे कल्लू की पढ़ाई-लिखाई संबंधित पूछताछ करते हुए उससे अगला सवाल किया- "तुम्हारे इंग्लिश टीचर कौन हैं!"
कल्लू : "वो तो हमारे नसीब में नहीं हैं!"
हल्कू : "क्या कहा?"
कल्लू : "सच कहा। हमें केवल इंडियन टीचर ही पढ़ाते हैं!"
हल्कू : "अबे, मैं अंग्रेज़ी के बारे में पूछ रहा हूं!"
कल्लू : "लेकिन मैंने तो आपके हाथ में केवल देसी देखी है, क्या अब आप अंग्रेज़ी भी लेने लगे?"
हल्कू : " अबे, मैं दारू की नहीं,…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2017 at 7:39pm —
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