For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजेश 'मृदु''s Blog – September 2012 Archive (5)

ये जिंदगानी

फूलों का सफर या

कांटों की कहानी

क्‍या कहूं कैसी है

ये जिंदगानी

कभी तो इसी ने

आंखों से पिलाया

बड़ी बेरूखी से

कभी मुंह फिराया

गम की इबारत या

जलवों की कहानी

क्‍या कहूं कैसी है

ये जिंदगानी

 

कभी सब्‍ज पत्‍तों पर

शबनम की लिखावट

कभी चांदनी में

काजल की मिलावट

 

कभी शोखियों की

गुलाबी शरारत

कभी तल्‍ख तेवर की

चुभती…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:46pm — 3 Comments

क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्‍हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

उजड़े उपवन के माली से
प्रस्‍तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

Added by राजेश 'मृदु' on September 26, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

जानूं नहीं

जानूं नहीं ये मेरी उलझन

कहां ठिकाना पाएगी

कबतक जीवन यूं ही मुझको

चौराहों तक लाएगी



जिसको भी आवाज लगाई

वही मिला घबराया सा

घनी धुंध की परत लपेटे

सुबह भी था कुम्‍हलाया सा



जाने कौन गढ़े जा रहा

दीवारों पर ठिगने साए

खोह-कन्‍‍दरा-तमस छुपाके

नीले पड़ गए हमसाए



स्‍वर्ण छुआ तो राख मिली

राई-रत्‍ती भी खाक मिली

बस कोहरे ही रह गए हमारे

फूलों में भी आग मिली



जो करीब थे दूर हुए

सुख के पल कर्पूर हुए

शेष बची जो थोड़ी…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 13, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

चंद हाइकु

कई मोड़ हैं

मेरी हथेली पर

हांफते हुए

 

ख्‍वाब में डूबे

कुछ चश्‍में भी तो हैं

कांपते हुए

 

नीले पड़ाव

धुंध में फिसलते ...

सैलाब भी हैं

 

सुर्ख परियां

वजू करते हाथ

हुबाब भी हैं

 

कम भी नहीं

इतनी खामोशियां

जीने के लिए

 

बेदर्द जख्‍म

काफी है इतना ही

अभी के…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 12, 2012 at 3:30pm — 6 Comments

ताकि समझ सकूं

हे परमपिता
ना देना कभी
इतनी नजदीकी…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 11, 2012 at 2:52pm — 9 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service