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अच्छी लघु कथा आ० मोहन बेगोवाल जी बधाई स्वीकारें
सभी दोस्तों का मेरी लघुकथा को पसंद करन व अपनी राए देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
(साथी विषयाधारित)
पल – छिन
गोरा रंग ,मोटी, बड़ी-बड़ी गहरी आँखे और चौड़ा चमकदार माथा। बस अंतर एक ही था उसके सपनों के राजकुमार की तरह उस लडके के मूँछे नही थी। मेज़ पर चाय-नाश्ते की ट्रे रखते हुए कुछ सोचते हुए, लड़की मन ही मन मुस्कुरा उठी। लड़का अपनें माता-पिता के साथ उसे देखने आया था।
“यह हमारी बेटी है ।" लड़के से परिचय कराते हुए माँ ने आँखों से इशारा किया तो लड़की ने चाय और नमकीन की प्लेट लड़के के सामनें कर दी । लड़का पहले थोड़ा झिझका ,फ़िर उसने प्लेट से नमकीन के कुछ दानें उठा लिए।
“लो बेटा थोड़ी और नमकीन लो..।' कहते हुए चौधराईन ने प्लेट में से कई चम्मच नमकीन जबरदस्ती लड़के के हाथ में रख दी। लड़की कनखियों से लड़के की तरफ़ देख रही थी तभी लडके ने उसकी तरफ देखा | नजरें मिलते ही लड़की ने सकपका कर नजरें फिर नीची कर लीं
"देखिए हमारा लड़का थोडा आधुनिक ख्यालों का है । अगर आप लोग इजाज़त दे तो यह आपकी बेटी से अकेले में बात करना चाहता है।" लड़के की माँ जरा झिझकते हुए बोली। चौधरी जी कुछ बोलते इससे पहले ही चौधराईन बोल पड़ी "हां हां क्यों नही ।"
माँ का इशारा पा लड़की, लड़के के साथ-साथ बगीचे में चली आई।
"हैलो .." लड़के नें पहल की। नजरें झुकाये हुए लड़की ने सिर हिला कर लड़के के अभिवादन का प्रत्युत्तर दिया। “ये मौसम मुझे बहुत अच्छा लगता है । और ..आपको..? लड़के ने बात बढ़ानें की कोशिश की। लड़की हाँ में सर हिलाते हुए हौले से मुस्कुरा दी।
“न जाने लोग शादी जैसा बड़ा डिसीज़न इतनी जल्दी कैसे ले लेते है ? भला चंद लम्हों की मुलाक़ात में कोई किसी को जीवन भर का साथी कैसे बना सकता है ?" लड़का अपनी हथेली में ली हुई नमकीन में से कुछ दाने हवा में उछालते हुए सर झटकते हुए बोला। लड़की अब भी लड़के के पीछे-पीछे ही चल रही थी।
"आप को कुछ नही कहना इस विषय में.. " लड़का अचानक ठहर कर ,पलटते हुए लड़की से बोला।
लड़की नें अपनी मुट्ठी हौले से खोल कर, लड़के के सामने कर दी।
"अरे इसकी क्या जरूरत थी?" लड़का,लड़की की हथेली से नमकीन उठाते हुए बोला तो लड़की, जवाब में फ़िर मुस्कुरा दी ।
“पर इसमें पड़े, मूँगफली के दाने कहाँ गये..?" लड़का नमकीन चबुलाते हुए बोला ।
“आपको तो मूँगफली पसन्द ही नही है न..?” लड़की, पहली बार लड़के कि आँखों में झांकते हुए बोली थी।
"आपको कैसे पता चला कि मुझे मूँगफली पसन्द नहीं है।" लड़का चौंकते हुए बोल उठा।
"साथी को समझने के लिए कुछ पल भी काफ़ी होते हैं।" लड़की ने लड़के द्वारा चुन कर, ज़मीन पर फेंके गए मूंगफली के दानों की ओर इशारा किया और लडके की आँखों में झांकते हुए एक बार फ़िर, मुस्कुरा उठी।
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
काश ऐसी नजर सब के पास हो ।सुन्दर कथा , बहुत बहुत बधाई आदरणीय ।
वाह अनुज वाह । कमाल की लघुकथा बनी है । विषय को किस कौशलता से सार्थक किया है आपने । पढ़ते समय आकारगत सीमा का अतिक्रमण करती नजर आई परन्तु अंत तक आते आते महसूस हो गया कि कथा में कोई भी शब्द अनावश्यक नहीं है । आपको दिली शुभकामनाएं ।
बहुत ही सुंदर " पल छिन", समझदार लड़की .उसकी सोच और गहरी पारखी नज़रें उसे एक बेहतरीन जीवन साथी बनाएगी भविष्य में .
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