साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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अच्छी कोशिश है आ. वन्दना जी हार्दिक बधाई आपको
मुहतर्मा वंदना साहिबा,
प्रयास जारी रखें आयोजन में सहभागिता पर बधाई आपको,,
आ. वंदना जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है, समर सर की बातों का संज्ञान लें
सादर
आदाब। बढ़िया कोशिश और सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया वन्दना साहिबा। मंचीय परम्परा और बक़िस्मत बेहतरीन तात्कालिक इस्लाह का अनुपालन करते हुए हम सभी इस अद्वितीय मंच और तरही मुशायरे में सहभागिता करते हुए सतत सीखते ही हैं। सादर।
आदरणीया वंदना जी आदाब,
एक अच्छी ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है आपने । कोशिश जारी रखें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की सटीक इस्लाहनुसार संशोधन करना ही बेहतर है । आयोजन में सहभागिता हेतु मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीया वन्दना जी। आदरणीय समर कबीर सर की बातों से मैं भी सहमत हूँ। उम्मीद है आप उनकी बातों पर पुनः ध्यान देंगी। मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
आदरणीया वन्दना जी, आपके प्रयास बने रहें.
ग़ज़ल की एक अलग समझ हुआ करती है, भाषा चाहे जो हो. ये समझ ही इस विधा को इतनी रोचक बनाती है. आपकी कोई रचना अरसे बाद देख रहा हूँ. हार्दिक शुभकामनाएँ और अशेष बधाइयाँ
शुभातिशुभ
आद० वंदना जी ,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है दिल से दाद हाज़िर है अंतिम शेर तो बहुत पसंद आया
अब शिकायत हवा से कैसे हो
कोई अपना बुझा गया है मुझे
आदरणीया वंदना जी, सुंदर प्रयास। बधाइयाँ।
आ. वंदना जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ० वंदना जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिए बधाई स्वीकार करें
आदरणीया वंदना जी ...आपका प्रयास यक़ीनन अच्छा है परन्तु आपकी पहले की ग़ज़लों के मुकाबले अत्यंत कमज़ोर ..समर साहब की बातों का संज्ञान लें| हार्दिक शुभकामनाएं|
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