साथियों,
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जनाब मुनीश तंहा साहिब,
उम्दा अश्आर निकाले मुबारकबाद आपको,,
आ. मुनीश जी
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
दूसरे शेर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ की सूरत बन रही है ..देखिएगा
सादर
आ. मुनीश तन्हा जी अच्छी ग़ज़़ल हुई है, गिरह भी अच्छी लगाई है बहुत बधाई आपको इस प्रस्तुति के लिए
जनाब मुनीश तन्हा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
आद० मुनीश तन्हा जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है दिल से मुबारकबाद पेश करती हूँ
आदरणीय तनहा जी जबरदस्त गजल भाव उमड़ गए मन मगन हो गया बधाई हो
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मुनीश तन्हा जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
जनाब मुनीश तन्हा साहिब आदाब
उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद
आदरणीय मुनीश जी, उम्दा अशआर हुए हैं, हार्दिक बधाई.
आ. भाई मुनीश जी , अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
वन्दगी है तो जिन्दगी अच्छी
वक्त ऐसा पढ़ा गया है मुझे
बहुत खूब भाई मुनीश तनहा जी. बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है. दाद के साथ साथ मुबारकबाद भी पेश करता हूँ. भाई नीलेश जी की बेशकीमती सलाह पर गौर ज़रूर फरमाएँ.
आदरणीय मुनीश तन्हा जी, उम्दा ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कह रहा हूँ.
उम्र भर मैं अलग रहा उससे
वो मगर फिर भी पा गया है मुझे
वन्दगी है तो जिन्दगी अच्छी
वक्त ऐसा पढ़ा गया है मुझे ..
ये दो शेर तो कमाल के हुए हैं. बहुत-बहुत बधाइयाँ.
अलबत्ता, मतला को तनिक और समय चाहिए होता था.
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