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आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
आ. रवि शुक्ल जी तहेदिल से मुबारकबाद आपको, बेहतरीन मुरस्सा ग़ज़ल हुई है।
जनाब रवि शुक्ला साहिब,
ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आपको,,
आ. रवि जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ बधाई स्वीकार करें ।
उम्दा ग़ज़ल हुई है आदरणीय रवि सर। गिरह ज़बरदस्त है। मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
उम्दा ग़ज़ल, भाई रवि शुक्ल जी !!!
आद० रवि भैया क्या खूब ग़ज़ल कही है वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह दिल से दाद हाज़िर है
आदरणीय गुरुदेव रवि शुक्ल जी सादर अभिवादन आपतो इस विधा में पारंगत है आपको पढ़कर हम झूमने को मजबूर हो जाते है आपकी काबिलियत को प्रणाम
वाह वाह वाह .. क्या ही उम्दा अश’आर हुए हैं, आदरणीय रवि शुक्ल भाईजी ..
निम्नलिखित अश’आर मुझे विशेष तौर पर भा गये -
चुप रहूँ ये कहा गया है मुझे,
और फिर घर बिठा गया है मुझे।
बस बदलती रहेंगी तस्वीरें,
फ्रेम जैसा बना गया है मुझे।
जाते जाते वो इक बहाने से,
दिल की धड़कन सुना गया है मुझे।
मैं न पीता तो और क्या करता,
जामो मीना थमा गया है मुझे।
ज़िक्र आया ही था बिछड़ने का,
साथ अपने रुला गया है मुझे।
इन ग़मों की हसीन सुहबत में,
सब्र करना तो आ गया है मुझे।
बहुत खूब .. दाद दाद दाद ..
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब
शानदार ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद क़बूल करें
आदरणीय रवि साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
'चुप रहूँ ये कहा गया है मुझे' ये मिसरा आदरणीय महेंद्र कुमार जी की पहली ग़ज़ल के एक मिसरे से टकरा गया है.
आ. भाई रवि जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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