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इलाहाबाद | कम कीमत में श्रेष्ठ साहित्य को उत्तम रूप में प्रस्तुत करने के संकल्प के साथ…Continue
Started this discussion. Last reply by Satyanarayan Singh Aug 15, 2013.
पिछले दो वर्षों की तरह इस वर्ष भी ‘गुफ़्तगू कैम्पस काव्य प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा…Continue
Started this discussion. Last reply by वीनस केसरी Jul 1, 2013.
प्रसन्नता का विषय है कि तरही ग़ज़ल मुक़ाबला का परिणाम घोषित कर दिया गया है जिसमें ओ. बी. ओ. के कई सक्रिय सदस्यों की ग़ज़ल सम्मिलित हुई है सभी शाइरों को तहे दिल से मुबारकबाद गुफ़्तगू जुलाई-सितंबर…Continue
Started this discussion. Last reply by Abhinav Arun Dec 17, 2012.
गुफ्तगू द्वारा ‘गुफ्तगू सम्मान-2012’ की शुरूआत की जा रही है। प्रथम गुफ्तगू सम्मान के लिए शायरों से प्रविष्टियां आमंत्रित की गई हैं।इस सम्मान के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष एक ग़ज़लकार को सम्मानित किया…Continue
Tags: प्रविष्टियां, आमंत्रित, लिए, के, सम्मान-2012’
Started Aug 15, 2012
ग़ज़ल श्री गिरिराज भंडारी जी की नज्र ...
गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब
चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब
न काम आया है उनका मुस्कुराना अब
यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ?
ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला
ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब
जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं
ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब
ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर
वो आये तो हुआ है शायराना अब …
Posted on December 24, 2014 at 5:00am — 18 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले ....
पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम |
आईना हैं, खुद में अब पत्थर भरे बैठे हैं हम |
हम अकेले ही सफ़र में चल पड़ें तो फ़िक्र क्या,
अपनी नज़रों में कई लश्कर भेरे बैठे हैं हम |
जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |
लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम…
Posted on March 24, 2014 at 12:00am — 15 Comments
छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या
ख़ुद से कर देगा बदगुमान भी क्या
कोई ठहरेगा मेह्रबान भी क्या
है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या
मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
काट ली जायेगी ज़बान भी क्या
धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को
लूट लेंगे ये सायबान भी क्या
इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या
अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये…
Posted on January 20, 2014 at 12:30am — 26 Comments
अंजुमन प्रकाशन की नई पेशकश "ग़ज़ल के फ़लक पर - १"
(२०० युवा शाइरों का साझा ग़ज़ल संकलन)
पुस्तक परिचय
पुस्तक – ग़ज़ल के फ़लक पर - १
संपादक – राणा प्रताप सिंह
२०० शाइरों की ३-३ ग़ज़लें…
Posted on November 9, 2013 at 12:00am — 22 Comments
नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।
सुशील सरना
आदरणीय वीनस जी आपके द्वारा मेरी मित्रता के आग्रह को स्वीकार कर मुझ पर जो अनुकम्पा की उसके लिए मैं आपका अत्यंत आभारी हूँ-कृपया अपना स्नेह बनाये रखें। धन्यवाद
सुशील सरना
आदरणीय वीनस जी..जन्मदिन की विलम्बित अशेष शुभकामनाएं..
प्रिय भाई केसरी जी,
आप का तो नाम ही English में है, ऐसा क्यों ???
Not a complaint just a Curiosity.
Priya Venus Ji,
Aap ke jawaab ke liye bhut - bahut Shukriya.
Saadar...
Dear Venus,
I had posted some absolutely "Self Composed" Ghazals on the last Sunday (21 Dec.2013) but those were immediately deleted by the Admin. Team and Sri Arun"Anant" and Sri Saurabh Pandey instructed me not to post them.
Later I said "Sorry" for posting them.
Apart from it, I started a Blog with the Title " Khamoshiyon Ke Khutoot" and posted Two(2)self composed Ghazals under the said Blog Title but they were possibly also not approved by the Admin Team.
Kindly let me know the fundamental reasons of this entire unfortunate episode.
Yours truly,
(SUYASH SAHU}
श्रीमान केसरी जी सादर प्रणाम मे नया जुडा हु एवम आपसे गज़ल के विषय मे बात करना चाहता हु और मेरा इस तरीके से बात करना सही है या नही, पता नही और यह शायद मेरा उतावलापन है जो बिना कुछ सीखे आपको मेरी गज़ल की अशुधियो के बारे मे जानने की आपसे बडी उत्सुकता हे आगे जेसा आप दिशा निर्देशित करे, फिलहाल एक गज़ल पोस्ट कर रहा हु और ये रचना मौलिक तो है पर अप्रकाशित इसलिये नही की मेने इसे फेसबूक के वाल पर पोस्ट कर दिया था क्षमा चाहुंगा गर मेरे वार्तालाप मे कोइ त्रुटि हो या मेने कुछ गलत किया हो शुक्रिया ।
गज़ल
शब्दो से खेलने का नया हूनर सीख रहा हूँ /
मै फिर से आज एक गज़ल लिख रहा हूँ //
तु अपनी आबादियों की नुमाईँश कर बेशक /
मै अपनी बर्बादियों की फसल लिख रहा हूँ //
खुद की तबाही से जी भरा नही मेरा अब तक /
इस जमाने मे एक नयी नसल लिख रहा हूँ //
अब कोई उम्मीद बाकी रही नही फिर भी /
क्यों तेरी जिन्दगी मे इक नया दखल लिख रहा हूँ//
खुद की ख्वाहिश रेत के घरोंदें से ज्यादा नही /
पर तेरे लिये इक जमाने से ताजमहल लिख रहा हूँ //
वो जिन्दगी बीता रहा हे आज मे /
और मै उसका दिया हुआ कल लिख रहा हूँ //
राजवीर
आपने मित्रता का हाथ बढ़ाया, यह मेरा सौभाग्य है। धन्यवाद, आदरणीय।
सादर,
विजय निकोर
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ..पहला और तीसरा शेर मेरे बिशेष आकर्षण का केंद्र रहे हैं ..
बीनस जी आपको कास्ट दे रहा हूँ दरअसल इस मशहूर गजल में मात्राएँ गिनते समय फर्क आ रहा है
"ना मैं तुम से कोई उम्मीद रखू दिलनवाज़ी की न तुम मेरी तरफ देखो, ग़लत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से
ना जाहीर हो तुम्हारी कश्मकश का राज नजरों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती हैं पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं की ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाईयाँ हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ अभी गुज़री हुई रातों के साये हैं ...आप मेरी मदद इस तरह करिये ताकी बहर निर्धारण की प्रक्रिया मैं भली भाति समझ सकूं ...
janab kesri sab. typing error ke chalte :khayal: ki jagal 'mizaj' aa gaya hai. sorry.
आदरणीय वीनस केसरी जी आपका आभार । डी पी माथुर
चिरायु हो सखे, कि, कुशलता और स्वस्ति व्यापे..
विद्या, विवेक, विधा, कौशल सुलभ हों सर्व सिद्धियों संग..
कांति, शांति, ऐश्वर्य सघन हों, साहित्य-सोच भावावरण में.. .
अक्षय रहो.. प्रखर रहो.. मुखर रहो.. अक्षर रहो.. .
आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!
वीनस भाई नमस्कार! माह का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर हार्दिक बधाई.
आदरणीय वीनस जी,
सादर अभिवादन
गजल विधा की विस्त्रत जानकारी, उपयोगी लगी. इस विधा के बारे में अनजान हूँ. सीखने की प्रेरणा मिली.
आपका सहयोग भी लूँगा. आभार.
आदरणीय वीनस जी, आदर
माह का सक्रिय सदस्य चुने जाने हेतु हार्दिक बधाई.
बधाईयां! महीने का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर! साभार, :-) :-D
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