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मातृ-दिवस विशेष
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2122/ 2122/2122/212
इक ही दिन काफ़ी नही है ममता के सम्मान को
कम पड़ेंगे सौ जनम भी, माँ तेरे गुणगान को
जो बना देती है क़ाबिल एक नन्हीं जान को
है ज़रूरत माँ कि ममता की बहुत इंसान को
लाख लानत भेजिए उस सरफिरे नादान को
माँ को खुद से दूर करके ढूँढे जो भगवान को
माँ का दिल इससे बड़ा है जिसमें तुम रहते मियाँ
नाज़ से देखो न अपने बंग्ले आलीशान…
Posted on May 12, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
2122/1212/22
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हार तूफ़ान से न मानी है
कश्ती ने तैरने कि ठानी है
मेरी पलकों पे ये जो पानी है
ऐ मुहब्बत तेरी निशानी है
हमने माना बहुत पुरानी है
पर बहुत ख़ूब ये कहानी है
दिल पे चस्पां है जो नही मिटती
यूूँ तेरी हर शबीह फानी है
राख मैं कर चुका तेरे ख़त को
याद लेकिन मुझे ज़बानी है
हर किसी दर पे ये नही झुकती
मेरी दस्तार ख़ानदानी है
पहली बारिश है तिफ़्ल बन…
Posted on January 9, 2019 at 11:59am — 16 Comments
221 2121 1221 212
राह- ए- बदी से हम कभी वाक़िफ़ नहीं रहे
फिर भी तेरे निशाने पे वाइज़ हमीं रहे
कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों पे एक बार
चहरा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे
दिल के दियार की ज़रा रौनक बहाल हो
गर इस मकाँ में आप सा कोई मकीं रहे
कर इश्क या जगा दे तसव्वुफ़ तेरी रज़ा
ऐ दिल तेरे खिलाफ़ कभी हम नहीं रहे
अब भी यहीं हैं फूल कली चाँद सब मगर
दिलकश तुम्हारे बाद ये उतने नहीं रहे
दिल के…
Posted on December 6, 2017 at 8:30pm — 12 Comments
Posted on November 5, 2017 at 7:00pm — 20 Comments
आदरणीय गजेन्द्र श्रोतिया जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी प्रस्तुति ग़ज़ल ("ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" अंक 45 में प्रस्तुत) को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
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