एक प्रयास-;
सभी गुरुजनों व् मित्रों का सहयोग और अमूल्य सुझाव चाहूँगा!!
जान दे देते है प्यार में ,
ऐसे भी लोग है इस संसार में !
इतनी अथाह श्रद्धा कैसे ,
"दीपक" क्या वे बीमार थे प्यार में!!
इश्क का छूरा लेकर टहलती है ,
जहाँ मिले वहीँ हलाल देती है !
बड़ी पारखी नज़र है इनकी,
मोहब्बत के मारों को पहचान लेती है!
मनाने चले थे इद,
हो गयी बकरीद !
प्यार किया था जुर्म नहीं,
"दीपक" ऐसी ना थी उम्मीद!
निस्वार्थ प्रेम से जो जाता ,
सारी…
Added by ram shiromani pathak on January 31, 2013 at 9:36pm — 3 Comments
क्यूँ छलक रहा अश्रु मेरा ,
क्यूँ जा रहा सुख मेरा !
करुणा बढ रही ह्रदय में ,
हाहाकार है स्वरों में !!
क्या ज़िन्दगी यहाँ सस्ती है ,
यह शमशान या बस्ती है !
जहाँ करते आमोद -प्रमोद सानन्द,
अब वीरान पड़ा है भू-खंड !
क्यूँ हो रहे तुम अधीर ,
प्रश्न करते ये मृत शरीर!
दिल से बस आह !निकलती,
जिनकी पूर्ति नम ऑंखें करती!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 29, 2013 at 7:19pm — 7 Comments
वाह रे पैसा ,
पैसे का अहंकार !
पैसे से सबकुछ
खरीदने को तैयार !
तो जाओ !!
पैसे से दो बूंद,
आंसू खरीद लाओ!
पैसे से खुशियों की,
एक दुकान तो लगाओ !
पैसे से रोते बच्चे को ,
एक मीठी नींद सुला दो !
वर्षों से खड़े वृक्षों को
थोड़ी सी सैर करा दो!!
पैसे से किसी का
दर्द कम कर दो
पैसे से किसी के दिल में
प्यार और सदभावना भर दो !
पैसे से ओंस की बूंदों में,
रजत आकर्षण डाल दो!
वीरान पड़े…
Added by ram shiromani pathak on January 28, 2013 at 1:30pm — 3 Comments
कैसे भूल सकता हूँ ,
भूंख से उसका कराहना !
ज़िन्दगी और मौत का ,
अजीब मंज़र !!
रोटी के लिए संघर्ष ,
सोचो कितनी दर्दनाक मौत ,
वो भी भूंख से ,
पेट की आंत गवाह है !!
अखबार का प्रथम पृष्ठ ,
भुखमरी से मौत का चित्रण ,
छापा गया था उसमे ,
विधिवत देकर उदाहरण!
कितना परिश्रम किया होगा ,
आंकड़े एकत्र करने में ,
काश! थोड़ी मेहनत की होती ,
इनका पेट भरने में !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक \अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 25, 2013 at 8:23pm — 4 Comments
स्वयं के आंसुओं से ,
कपोल उसका झुलस गया !
दया हाय! आयी मुझको ,
मेरा भी अश्रु बह गया !!
अपनो के लिए उसकी ,
पत्थर तोड़ती माता !
भूंख से छटपटाता बच्चा,
हाय! पाषाण ह्रदय विधाता !!
असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,
नम आँखों से दर्द धो रही थी !
कई दिनों की भूंखी बेचारी ,
खुली आँखों से सो रही थी !
उसके आँख का खारा पानी ,
यह कह रहा था !
दिल में कहीं गम का ,
समंदर बह रहा था !!
दम तोड़ती ज़िन्दगी ,
दम तोड़ती मानवता !
कहीं ना…
Added by ram shiromani pathak on January 23, 2013 at 12:38pm — 7 Comments
भ्रष्टाचार में भी प्रतिस्पर्धा,
करते आपस में दंगल है !
क्या करूँ कितना मिल जाय ,
बस लूट पाट को बेकल है !!
पैसे के लिए लार टपकाते ,
मार पीट को ये तत्पर है !
बोलबचन से कभी कभी तो,
कर देते सब गुड़-गोबर है !!
कायरता ,पशुता से संचित ,
बनाते नया-नया पैमाना !
चालाकी,मक्कारी ही इनका,
बन चुका धंधा पुराना !!
धन के वन में विचरण करते ,
जैसे इनका ही जंगल है !
जंगल राज़ चला रहे फिर भी ,
कहते है कि सब मंगल है !!
राम शिरोमणि पाठक…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 21, 2013 at 8:22pm — 4 Comments
शब्दों में एक ज्वाला भर लो ,
लड़ने को अब कमर कस लो !
दुर्दशा पर चटखारे ना ले कोई ,
इतना खुद को सशक्त कर लो !!
शायद डर से गुमराह हो ,
अपना रास्ता खुद ही चुन लो !
इस हाल के ज़िम्मेदार है जो ,
उनसे अब दो दो हाँथ कर लो !!
यदि सहना है उत्पीडन इनका ,
यूँ ही खुद को बदनाम कर लो!
पड़े रहो मुर्दों की तरह,
खुद को इनका गुलाम कर लो!!
लड़ नहीं सकते जब तुम ,
कायर सा फिर जीना क्यूँ !
तिल तिल कर मरने से अच्छा ,
खुद का ही काम तमाम कर लो…
Added by ram shiromani pathak on January 19, 2013 at 1:49pm — 3 Comments
सर्द रातों का आतंक ,
सबका बुरा हाल हुआ !
रूह कपा देने वाली ठण्ड से ,
खड़ा एक एक बाल हुआ !!
क़यामत की धुंधली रातों में
डरे ,कांपते हुए जो सिमटे है !
उन गरीबों का क्या हाल होगा ,
जो फटे कम्बल में लिपटे है !!
सुख सुविधाओ से परिपूर्ण वो ,
क्या जाने सर्द रातों का स्याह सच !
कैसे ढकता बदन वह ,
एक अधखुला कवच !!
कहर बरसाती ठण्ड रातें ,
बर्फीली हवा झेलते फेफड़े ,
नेता जी कम्बल घोटाला करके ,
कलेजे पे रखते बर्फ के टुकड़े!!
राम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 18, 2013 at 1:43pm — 4 Comments
आजकल हास्य के लिए ,
अश्लीलता का सहारा लिया जाता है !
जनता खूब हंसती भी है ,
उन्हें भी आनंद आता है !!
जब प्रतिदिन नवीन आविष्कार हो रहे ,
अश्लीलता और नग्नता पर !
आत्मा कह रही मेरी ,
तू भी कुछ नया कर !!
इस अधखुली दुनियां की ,
बात बहोत ही निराली है !
चमक तो दिखता है ,
पर दिन भी होती काली है !
टिप्पणी करने से डरता हूँ ,
क्या कहूँ ?कैसे कहूँ ?
उलझता जा रहा हूँ ,
इस अधखुली दुनियां में !!
राम शिरोमणि पाठक…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 17, 2013 at 6:07pm — 2 Comments
व्यसन बना जी का जंजाल ,
असमय ही खाए जा रहा काल !
इतनी सुन्दर ज़िन्दगी को ,
क्यूँ व्यर्थ में गवांते हो !
जानते हो की बुरी है ,
फिर भी पीते या खाते हो !!
व्यसन के अतिरिक्त कोई ,
कार्य नहीं है शेष !
अल्प दिनों बाद केवल
रह जाओगे अवशेष !!
फटे कपड़ों में जब इनके बच्चे ,
घर से बाहर निकलते है ,
लोग दया दिखाते बच्चों पर ,
व्यसनी को गाली देते है !!
सोचो ऐसे व्यसनी को ,
उनके अपने कैसे सहते है,
नशा करने के बाद ,…
Added by ram shiromani pathak on January 16, 2013 at 12:30pm — 3 Comments
कोई हद नहीं थी ,
उसके ऐतबार की !
एक अंतहीन अंधविश्वास ,
शायद !अतिशयोक्ति थी प्यार की !!
कोई प्रतिरोध नहीं किया ,
सोचा न क्या होगा अंजाम ,
घुटन भरी ज़िन्दगी ,
जीती रही गुमनाम !!
जब कोई अपना ही ,
दिन रात प्रताड़ित करता है !
एक नहीं सैकड़ों बार ,
जी जी कर फिर वो मरता है !
मानसिक बीमार कर दिया इतना ,
इसलिए उसने आत्मदाह किया ,
घुटन भरी ज़िन्दगी ने ,
ऐसा करने पर मजबूर किया !!
इतना भयंकर निर्णय ,
कोई ऐसे ही…
Added by ram shiromani pathak on January 15, 2013 at 3:30pm — 7 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:00pm — 3 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
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