212/ 212/ 212/ 212
पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ
ये लगे है कि मिट जाये अब दूरियाँ
चाँदनी भी है कंदील भी हाथ में
फिर भी क्यूँ रौशनी से अजब दूरियाँ
याद आती रहे आपको मेरी तो
मैं कहूँ है बहुत मुस्तहब दूरियाँ
मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई
दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ
मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत …
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 28, 2014 at 8:30am — 13 Comments
221 2122 221 2122
शब्दों में पत्थरों को भर मारने की आदत
यूँ बेवजह तुम्हे ठोकर मारने की आदत
हमने मुहब्बतों में झेले सितम हज़ारों
दीवार पे हमें है सर मारने की आदत
ईमानो हक की बातें हैं करते आज वे ही
जिनको है भीड़ में छुप कर मारने की आदत
हालात दर्द को पैहम यूँ बढ़ाये उसपे
ऐ हुक्मराँ तेरी नश्तर मारने की आदत
उड़ना जिन्हे है वो उड़ ही जाते हैं परिन्दे
उनको नही ज़मीं पे पर मारने की…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2014 at 3:30pm — 26 Comments
क्या कहूँ साथ अपने वो क्या ले गई
आँधी थी सायबाँ ही उड़ा ले गई
मैंने बस एक ही गाम उठाया मुझे
रहनुमा बन के तेरी दुआ ले गई
काम आये सितारे अँधेरो में रात
जब चिरागों की लौ को हवा ले गई
मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला
गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई
जीने की कोशिशें उसकी बेजा नहीं
क्या हुआ गर खुशी वो चुरा ले गई
रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ
सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2014 at 7:35pm — 21 Comments
लोग कहते हैं
ज़माना बदल गया
मै कहता हूँ-
फ़क़त चेहरे बदले हैं,
व्यक्ति परक समाज तब भी था
अब भी है,
रियासतों,
शाही आनो-शान के बीच,
इंसानों के लहू से लिखी गई,
इतिहास की इबारत,
जो आज भी सुर्ख़ है
नाम बदले
मगर हालात न बदले
हुक्मरान बदले
मगर
जनता पहले भी ग़ुलाम थी
अब भी ग़ुलाम है
अंग्रेज़ों के पहले भी
अंग्रेज़ों के बाद भी
बेबसी ने ग़ुलाम…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
2122 1122 22/112
तिश्नगी में न सराबों में है
ताब जो मेरे इरादों में है
चहचहाते हुये पंछी ये कहें
ज़िन्दगी अब भी खराबों में है
ध्यान से पहले सुनो फिर समझो
क्या हकीकत मेरे दावों में है
बादलों की ये शरारत है जो
चाँद का नूर हिजाबों में है
अब तलक तेरी ज़ुबाँ पे थी वो
बात अब मेरे सवालों में है
काम आयेगी अकीदत आखिर
ऐसी तासीर दुआओं में है
ताब=…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 10, 2014 at 8:28pm — 22 Comments
मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल
22- 22- 22- 22- 22- 2
सच्चाई को जब अपना ईमान किया
सारी दुनिया को उसने हैरान किया
मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं
किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया
चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ
बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया
छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी
अपने छोटे से घर को ऐवान किया
मायूस हुआ तेरी तीखी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 9:00am — 34 Comments
मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,
हकीकत के सीने में दफ़्न,
कुछ इच्छाओं की
उन धुँधली यादों को,
मेरे सपनों की लाशों को,
अब तक ढो रहा हूँ मैं…
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया..
आज मुझे लगता है
मैंने बहुत कुछ खो दिया,
पहले जो खोया है..
उसे याद कर,
और फिर,
उन्हीं यादों में खोकर,
एक लम्बा सफर तय किया,
मगर,
आज मुझे लगा
कि मैं…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 3, 2014 at 11:07am — 38 Comments
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