१२२२—१२२२—१२२२
उमंगों के चरागों को बुझाओ मत
उजाले को अँधेरों से डराओ मत
न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का तगाफ़ुल= उपेक्षा
परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत
उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन
तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत
चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी
सताओ मत सताओ मत सताओ मत
सजाओ आइने दीवार में लेकिन
हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत
बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी
मगर उर्यां…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:38am — 26 Comments
थकन से चूर होकर , गिरे तो सो गये हम
जो चलते चलते गाफ़िल , हुये तो सो गये हम
हमारी भूख का क्या , हमारी प्यास का क्या
ये अहसासात दिल में , जगे तो सो गये हम
शनासा भी न कोई , तो अपना भी न कोई
अकेले थे अकेले , रहे तो सो गये हम
हमारी नींद सपने , सजाती ही नहीं है
हक़ीक़त से जहाँ की , डरे तो सो गये हम
मनाओ शुक्र तुम हो , गमों से दूर साथी
हमें तुम मुस्कुराते , मिले तो सो गये हम
हमारा दर्द…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:00pm — 22 Comments
दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया
प्यार मुहब्बत , भाईचारे ,मानवता की
नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया
दिन सी उजली रातें भी हो जाये यारों
अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
शहरों में है झूठे दर्पण…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 1:26pm — 13 Comments
आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये
फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये
गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं
घाटियों में आप इन बादलों को देखिये
रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर
आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये
दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे
दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये
रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा
मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये
आपके सर पर चलो एक छत है तो…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 13, 2015 at 9:30am — 18 Comments
२१२२--२१२२--२१२
आपके किरदार को समझा चलो
नाग की फुफकार को समझा चलो
हार कर संसार से हर दौड़ में
वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो
मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का
ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो
कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं
वो मेरे आज़ार को समझा चलो
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू
क़ीमती दस्तार को समझा चलो
दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला
मैं भी इक अय्यार को समझा चलो
ख़ामोशी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:47pm — 15 Comments
१२२२-१२२२-१२२२-१२२२
अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं
ज़रा सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं
गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जायें तो धागे टूट जाते हैं
बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो
ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं
किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी
करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं
तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 9, 2015 at 10:59am — 20 Comments
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
तेरी यादों की बूबास घुलेगी ज्यूं ज्यूं
बढ़ती जाएगी त्यूं त्यूं महकार समय की
वक़्त कहाँ मिलता है दुनियावी पचड़ों से
मेरी ग़ज़लें सारी है बेकार समय की
वक़्त सिकंदर विश्व-विजेता सदियों से है
सुल्तानी लाफ़ानी है सरदार समय की
चंदा-सूरज गगन-पवन सब मौन खड़े हैं
आयु कौन बतलायेगा सुकुमार समय की
बैर भूलकर मीत बनें सब एक…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 2:43pm — 18 Comments
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
युगों युगों तक फैला है कुहसार वसन का कुहसार =पर्वतांचल
कौन अज़ल से बाँध रहा दस्तार समय की दस्तार = पगड़ी
नोक कलम की पर रखते हैं काल तीन हम
केवल हमने स्वीकारी ललकार समय की
ख़ार दर्द के चुनकर गीत उगायेंगे हम
कर जायेंगे वादी हम गुलज़ार समय की
तू ऊषा की लाली मैं संध्या का…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 1:28am — 11 Comments
ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
मोल समय का उससे जाकर पूछो माधो
नासमझी में जिसने झेली मार समय की
जीवन नैया पार हुई बस उस केवट से
कसकर थामी जिसने भी पतवार समय की
आलस छोड़ो साहस धारो कर्म करो तुम
उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की
कद्र तुम्हारी ये संसार करेगा उस दिन
कद्र करोगे जिस दिन बरखुर्दार…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 3:30pm — 19 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |