2122 2122 2122 212
नाम को गर बेच कर व्यापार होना चाहिए
दोस्तों फिर तो हमें अखबार होना चाहिए
आपके भी नाम से अच्छी ग़ज़ल छप जायेगी
सरपरस्ती में बड़ा सालार होना चाहिए
सोचता हूँ मैं अदब का एक सफ़हा खोलकर
रोज़ ही यारो यही इतवार होना चाहिए
क्या कहेंगे शह्र के पाठक हमारे नाम पर
छोड़िये, बस सर्कुलेशन पार होना चाहिए
हम निकट के दूसरे से हर तरह से भिन्न हैं
आंकड़ो का क्या यही मेयार होना चाहिए
नो निगेटिव न्यूज का मुद्दा…
Added by Ravi Shukla on March 1, 2016 at 5:44pm — 12 Comments
आज शर्मा जी के घर में बहुत हलचल थी, कई रिश्तेदार भी मिलने आये हुए थे| शर्मा जी रिटायर होने के बाद, अपनी पत्नी के साथ छह महीने की तीर्थयात्रा पर जा रहे थे| उनके दोनों बेटे और बहुएँ भी बहुत खुश थे| बेटे इसलिए कि अपनी कमाई से अपने माता-पिता को तीर्थ करवा रहे हैं और बहुएँ इसलिए कि अगले छह महीने वो घर की रानियाँ बन कर रहेंगी|
पूजा-पाठ कर प्रसाद हाथ में लिए दोनों पति-पत्नी ने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा, बाहर खड़ी एक बिल्ली उनका रास्ता काट गयी| एक बेटे ने उस बिल्ली को हाथ से भगाते…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 1, 2016 at 4:30pm — 6 Comments
“अंकल, जरा अपना मोबाइल फ़ोन दे दीजिये I"
“पर क्यों बेटा, तुम्हारे फ़ोन को क्या हुआ?”
“घर पर पिताजी बीमार हैं, माँ से बात कर रहा था, तभी फ़ोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गयी, और देखिये ना यहाँ पर कोई चार्जिंग की जगह भी नहीं है, प्लीज अंकल, ज्यादा बात नहीं करूंगा, चाहे तो पैसे .. I"
“अरे नहीं, पैसे की कोई बात नहीं है बेटा, ये लो आराम से बात करो I"इतना कहते हुए शर्मा जी ने अपना फ़ोन उस नौजवान को दे दिया, और कुछ ही देर बाद वह लड़का वापस आया और बोला, “आपका…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 1, 2016 at 4:30pm — 7 Comments
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न कोई दिन बुरा गुजरे न कोई रात भारी हो
जुबाँ को खोलना ऐसे न कोई बात भारी हो /1
दिखा सुंदर तो करता है हमारा गाँव भी लेकिन
बहुत कच्ची हैं दीवारें न अब बरसात भारी हो /2
न तो धर्मों का हमला हो न ही पंथों से हो खतरा
न इस जम्हूरियत पर अब किसी की जात भारी हो /3
पढ़ा विज्ञान है सबने करो तरकीब कुछ ऐसी
न तो हो तेरह का खतरा न साढ़े सात भारी हो /4
महज इक हार से जीवन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2016 at 11:29am — 12 Comments
दिन ढलने का वक़्त क़रीब आरहा था कि अचानक रास्ते पर सामने से कारवां की तरफ कोई आदमी भागता हुआ नज़र आया | वह हांफता हुआ पास आकर बोला ,आगे ख़तरा है मेरा क़ाफ़ला लुट चूका है | सालारे कारवां ने बिना सोचे समझे उसकी बातों पर यक़ीन करके वहीँ पर क़याम करने का हुक्म देदिया ,हामिद ने लाख कहा इस पर यक़ीन मत करो , मुझे इसकी आँखों में फ़रेब नज़र आरहा है | ...... मगर सब बेकार गया | रात को जब क़ाफ़ले वाले बेख़बर सो रहे थे ,हामिद की आँखों से नींद गायब थी | ...... यकबयक उसे घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दी…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 7:30am — 12 Comments
Added by amita tiwari on March 1, 2016 at 1:30am — 2 Comments
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