ग़ज़ल(एतबार न कर )
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2122 ----1212 -----112
मान मेरी सलाह प्यार न कर |
हुस्न वालों का एतबार न कर |
हो न जज़्बात जाएँ बेक़ाबू
जानेजां हद वफ़ा की पार न कर
बेच दी जिन सुख़नवरों ने क़लम
उनके जैसा मुझे शुमार न कर|
हुस्न वाले वफ़ा नहीं करते
तू यक़ीं उनपे बार बार न कर |
आँख भीगी है और हंसी लब पर
राज़े उल्फ़त को आशकार न कर |
वक़्ते रुख़सत निगाह नम…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 13, 2016 at 9:20pm — 12 Comments
ग़ज़ल (मुहब्बत से किनारा कर रहा है )
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1222 --------1222 --------122
मुहब्बत से किनारा कर रहा है |
हमें वह बे सहारा कर रहा है |
तुम्हारा देखना रह रह के मुझको
वफ़ा को आश्कारा कर रहा है |
न कोई देख ले यह डर मुझे है
वो खिड़की से इशारा कर रहा है |
युं ही क़ायम रहे यह दोस्ताना
कहाँ आलम गवारा कर रहा है |
वो लाके ग़ैर को महफ़िल में…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2016 at 1:08pm — 19 Comments
बेटा ख़ानदान का चराग़ और बुढ़ापे का सहारा होता है , बेटियां पराया धन हैं दूसरे के घर चली जाती हैं | शान्ती की यही सोच ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हो चुकी थी | ..... इकलौते बेटे को प्राइवेट कॉलिज में और बेटियों को सरकारी कालिज में पढ़ाया ,यही नहीं ज़ेवर बेचकर बेटे को एम बी ए कराया और बेटी इस से महरूम रह गयी | घर का खर्चा पति की पेंसन और सिलाई करने से चल रहा था मगर हाय क़िस्मत बेटा भी बहू के बहकावे में आकर माँ और बहनों को बेसहारा छोड़ गया। ...... पति ज़िंदा होते तो यह दिन देखने न पड़ते | शान्ती दुखों…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 6, 2016 at 10:00pm — No Comments
ग़ज़ल (पास है वह कहाँ दूर है )
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212 -------212 --------212
जो तसव्वुर में मामूर है |
पास है वह कहाँ दूर है |
आइने पर न तुहमत रखो
वह तो पहले से मग़रूर है |
मुस्करा उनके हर ज़ुल्म पर
यह ही उल्फ़त का दस्तूर है |
उनके दीदार का है असर
मेरे रुख पे न यूँ नूर है |
बे वफ़ाई है वह हुस्न की
जो ज़माने में मशहूर है |
छोड़ जाये गली किस…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 9:04pm — 10 Comments
दिन ढलने का वक़्त क़रीब आरहा था कि अचानक रास्ते पर सामने से कारवां की तरफ कोई आदमी भागता हुआ नज़र आया | वह हांफता हुआ पास आकर बोला ,आगे ख़तरा है मेरा क़ाफ़ला लुट चूका है | सालारे कारवां ने बिना सोचे समझे उसकी बातों पर यक़ीन करके वहीँ पर क़याम करने का हुक्म देदिया ,हामिद ने लाख कहा इस पर यक़ीन मत करो , मुझे इसकी आँखों में फ़रेब नज़र आरहा है | ...... मगर सब बेकार गया | रात को जब क़ाफ़ले वाले बेख़बर सो रहे थे ,हामिद की आँखों से नींद गायब थी | ...... यकबयक उसे घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दी…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 7:30am — 12 Comments
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