लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है
लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है
फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है
सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है
बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments
कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं
दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं
दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही
घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं
हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को
प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं
मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने
भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं
दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते
भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 2:59pm — 8 Comments
(1)
सुनो मृगनयनी है चाँद जैसा मुख इसे,
ओढनी ओढ़ा के आज, थोडा शरमाइए
घूरते क्यूँ हमें ऐसे, मैं हूँ जानवर जैसे
लोग सब देख रहे, नज़रें हटाइए
ऐसे ही खड़ी हो काहे, गघरी झुलात कहो
प्रेम है यदि तो फिर, उसे न छुपाइए
और यदि है नहीं तो, काम एक कीजिए जी
मुझे घूरने से अच्छा, नीर भर लाइए ।
(2)
मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो
हुआ ये कमाल कैसे,…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 12:30pm — 14 Comments
मोरे अँगना मे फूल खिलो आज
री गोरी मोरे ...............आज
मुख लागे है चंद चकोरा
कोमल कोमल तन है गोरा
लोचन लागे हैं अभिरामा
सोचूँ का दैइ हों मैं नामा
नाचे मनवा हमारो छेड़ साज़
मोरे अँगना मे फूल खिलो आज
खिल खिल हँसता देखे हमको
चितवन खूब लुभावे सबको
देखत कौन अघाय छवि को
दिन में धूल चटाय रवि को
करे बगिया खुदी पे आज नाज़
मोरे अँगना मे फूल खिलो आज
सोचूँ जियरा भींच भींच…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 15, 2013 at 1:32pm — 12 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 12:37pm — 25 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 6:50pm — 29 Comments
ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है
तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला
अब उठ खड़ा हो खुद को फिर मैदान मे ला
मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला
जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला
नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला
क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 3:45pm — 20 Comments
समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं
अर्गला स्तोत्र को हिंदी में छंदबद्ध करने का प्रयास किया है
अथ अर्गला स्तोत्र
ॐ
शिवा जयंती माता काली, भद्रकाली है नाम
क्षमा स्वधा कपालिनी स्वाहा, बारम्बार प्रणाम
दुर्गा धात्री माँ जगदम्बे, जपता आठों याम
मात मंगला हे चामुंडे, हरो क्रोध अरु काम
सबकी पीड़ा हरने वाली, तुमको नमन हजार
व्याप्त चराचर में तुम माता, तेरी जय जयकार
जय दो यश…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 11:00pm — 17 Comments
इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब
वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है
ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है
फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या
बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है
मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे
मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है
बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की
पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है
अहम् झूठा नहीं करता गिला…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:08pm — 28 Comments
गद्य के खंड रचे
प्रवाह भर भर के
इतना प्रवाह के
कविता टिक न सकी
पल भर को
उड़ गयी कहीं दूर
बहुत दूर
कवियों की खोज मे
और लेखक इतराता है
अतुकान्त का बोध कराता
स्वयं को
गुपचुप मुस्काता
सोचता है
कौन जानता है
कविता का आंतरिक सौंदर्य
बाहरी परिवेश
इंफ्रास्ट्रकचर ठीक
मतलब सब ठीक
अंदर जा के
किसको क्या मिला है
लय छन्द ताल
व्यर्थ हैं भाव के बिना
फिर एक मुस्कान भरता है
देखा हो गया न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 2:09pm — 10 Comments
हास्य घनाक्षरी
आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली
धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए
आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा
दुबले गरीब हम रहम तो खाइए
माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना
टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए
फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए
संदीप पटेल “दीप”
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 11:30pm — 16 Comments
प्यास है
लरजते होंठों में
आज भी वही
जब कहा था तुमसे
मैं प्यार करता हूँ
और देखा था
खुद को
तुम्हारी आँखों से
पागल सा
दीवाना सा
कुछ पल बाद
वो झुकीं
और इक मीठी सी सदा
हट पागल
जाता हूँ
आइने के सामने
देखने वही
अक्स
लेकिन धुंधला
हो जाता है
मुझे याद है अब भी
जब तुमने
झांका था
मेरी आँखों में
थामा था
सिरहन भरा
मेरा…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 9:00pm — 22 Comments
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