लल्ला गया विदेश
© बसंत कुमार शर्मा
उसको जब अपनी धरती का,
जमा नहीं परिवेश.
ताक रही दरवाजा अम्मा,
लल्ला गया विदेश.
खेत मढैया बिका सभी कुछ,
हैं जेबें…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 17, 2018 at 9:12am — 11 Comments
चल दिया लेकर तगारी
© बसंत कुमार शर्मा
सिर्फ रोटी के लिए बस,
खट रही है उम्र सारी.
सूर्य निकला भी नहीं, वह,
चल दिया लेकर तगारी.
ठण्ड, बारिश, धूप तीखी,
वार…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2018 at 9:30am — 16 Comments
स्वप्न मनभावन हृदय में,
रात-दिन पलता रहा.
गीत पग-पग साथ मेरे,
हर समय चलता रहा
पीर लिख कर कागजों में
रोज दिल अपना दुखाया.
प्रेम के दो शब्द लिखकर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:00am — 10 Comments
हो सके तो वन बचा लो
दे रहे जीवन सभी को,
खेत, वन, उपवन सजा लो.
हैं जरूरी जिन्दगी को,
हो सके तो वन बचा लो.
हो चुके हैं, मत करो इन,
पर्वतों को और…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 7, 2018 at 8:30pm — 18 Comments
गर्म होती जा रहीं है,
शहर में पागल हवाएँ.
क्या पता इन बस्तियों में,
कब पटाखे फूट जाएँ.
ढूँढता अस्तित्व अपना,
सच बहुत बेचैन है.
डस रहा है दिन उसे तो,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 11:16am — 18 Comments
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