तुझे बाहों मे भर लेने का,
तेरे कंधे रख के सर रोने का,
तुझसे मॅन का दर्द कह देने का,
माँ बड़ा दिल करता है!
तेरी उंगली पकड़ फिर चलने का,
तेरे साए मे बैठे रहने का,
तेरी लॉरी सुन कर सोने का,
माँ बड़ा दिल करता है!
दूर है तू मुझसे,या छुपी हुई है मुझमे ही,
ढूंडती हून तुझको हर कही,
तेरे आँचल मे छुप जाने का,
माँ बड़ा दिल करता…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 30, 2011 at 1:40pm — No Comments
क्या कहूँ की वो क्या हैं?
माँ तो बस होती माँ हैं,
खिलाकर बच्चें को खाना ख़ुद खाती हैं,
देख कर हमें सोता हुआ कहीं वो सो पाती हैं.
याद हैं आज भी आपका मुझे लोरी सुनाना,
बचाने को बुरी नज़र से बार-बार काला टीका लगाना.
सच में कितनी सीधी और सच्ची होती हैं…
ContinueAdded by Jaimangal Singh,Ek Aur Shayar on June 30, 2011 at 12:57pm — No Comments
क्या भरोसा जिन्दगी का कल रहे या ना रहे।
क्या पता यह बुलबुला कुछ पल रहे या ना रहे।।
है भयंकर इक समन्दर ये जहाँ उठ्ठे तूफां,
तैरती कागज की कश्ती तेज मौजों में यहाँ।
है किसे मालूम कब ये गल रहे या ना रहे।।
पूरी हो पायेंगी शायद ही खुशी ओ ख्वाहिशें,
मिट्टी के इस ढेले पे होतीं गमों की बारिशें।
क्या पता पानी में कब ये घुल रहे या ना रहे ।।
हो गई मुश्किल न कम है जिन्दगी अब बोझ से,
मौत रूपी माशूका की गोद में सब…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on June 30, 2011 at 8:00am — No Comments
Added by rajkumar sahu on June 30, 2011 at 12:57am — No Comments
Added by rajkumar sahu on June 29, 2011 at 11:17pm — No Comments
सच्ची प्रीति में पगी जो प्रार्थना की रीति ये तो
नेह नीति में विरह की गाँठ न लगाइए
जब भी प्रेम भाव से बुलाया जाय आपको तो
भक्तों के काज आप बनाने चले आइये
आप मूर्तिमान हैं निधान हैं दया के…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 29, 2011 at 10:54pm — No Comments
Added by Rash Bihari Ravi on June 29, 2011 at 7:00pm — No Comments
Added by Rash Bihari Ravi on June 29, 2011 at 4:30pm — 15 Comments
Added by rajkumar sahu on June 29, 2011 at 1:27pm — 1 Comment
नन्हा सा, अल्हड़ सा, वो प्यारा बचपन,
ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन
बचपन के वो दिन कितने अच्छे थे
जब संग सबके हम खेला करते थे
दुखी होते थे एक खिलौने के टूटने पर
और छोटी सी ज़िद्द पूरी होने पर,खुश हो जाया करते थे
हँसता, खिलखिलता वो निराला बचपन
ज़िंदगी की धूप से अछूता बचपन
वो बारिश के मौसम का भीगना याद आता…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 29, 2011 at 10:00am — 15 Comments
-: हिंदी सलिला :-
विमर्श १
भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन
-संजीव वर्मा 'सलिल'-
औचित्य…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on June 28, 2011 at 11:29pm — No Comments
Added by Prabha Khanna on June 28, 2011 at 6:50pm — No Comments
ज़िन्दगी तुझे जी लूंगी मैं...
नाकामियों से ऊपर उठते हुए,
समय के आगे न झुकते हुए,
मुश्किलों से हंस कर मिलूंगी मैं!
ज़िन्दगी तुझे जी लूंगी मैं...
रुठेंगी कब तक मंजिलें मुझसे,
मायूस होगी कब तक महफ़िलें मुझसे,
तूफ़ान भी अब डिगा न सकेंगे,
लहरों के वेग से अब न डरूँगी मैं!
ज़िन्दगी तुझे जी लूंगी मैं...
भिगोया हैं बहुत आँचल को अपने,
अरसा गुज़र गया मुस्कुराहटो की तलाश में,
अब भीगी पलकों पर…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 28, 2011 at 2:30pm — 4 Comments
Added by Prabha Khanna on June 28, 2011 at 10:30am — No Comments
मेरे साहित्यिक आदर्श डा. रामविलास शर्मा
डा॰ महेन्द्रभटनागर
प्रारम्भ से ही, साहित्य-लेखन के क्षेत्र में डा.रामविलास शर्मा जी ने मुझे प्रोत्साहित किया। उनसे मेरा परिचय सन् 1945 से है; जब मैं ‘विक्टोरिया कालेज’, ग्वालियर में बी.ए. के अंतिम वर्ष का छात्र था। तब कालेज में, डाक्टर साहब का भाषाण आयोजित था। वे प्रो.…
ContinueAdded by MAHENDRA BHATNAGAR on June 27, 2011 at 7:35pm — 1 Comment
जाने कैसा दौर गुज़र रहा है ये ,
खुदा का घर दहशत में है
जन्नत लिपटी पड़ी है नुकीले तारों में
खूब चलता है ब्योपार इन दिनों नुकीली तारों का |
बर्फ की चादर अब तो मैली हो चली है
खून के धब्बों से ,
जख्मी हो गए हैं
बन्दूक की नोक पर कदम…
ContinueAdded by Veerendra Jain on June 27, 2011 at 12:13pm — 6 Comments
विश्वासघात, क्या होता हैं यह विश्वासघात,
जो हिला देता हैं आपका संपूर्ण वजूद!
या फिर वो जो खोखला कर देता हैं आपकी जड़ो को,
और उठा देता हैं आपका विश्वास दुनिया से,
और क्या परिभाषा होता है विश्वास की,
जो बना देती हैं गिरो को भी अपना!…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on June 27, 2011 at 12:00pm — No Comments
Added by sangeeta swarup on June 26, 2011 at 3:58pm — 3 Comments
निस्शब्द स्वरों के कानफोड़ू शोर
चिलचिलाते मौन की बेधती टीस
लगातार भींचती जाती दंत-पंक्तियों में घिर्री कसावट
माज़ी का गाहेबगाहे हल्लाबोल करते रहना..... ....
जब एकदम से सामान्य हो कर रह जाय..
तो फिर...
कागज़ के कँवारेपन को दाग़ न लगे भी तो कैसे?
आखिर जरिया भर है न बेचारा ..
/एक माध्यम भर../
कुछ अव्यक्त के निसार हो जाने भर का
महज़ एक जरिया ... ...और....
किसी जरिये की औकात आखिर होती ही क्या है ?
उसके…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 24, 2011 at 8:09pm — 11 Comments
स्मृतियों के अनगढ़ कमरे से
अचानक बाहर फुदक आयी हैं कुछ नम रोशनियाँ... /आज फिर.. ..
एक बार फिर
मासूम सी कोशिश की है इनने..
कि, मनाँगन में
कशिशभरी आवारा धूप बन लहर-लहर नाचेंगी..
तुम मेरे साथ हो न हो.... ..
इन रोशनियों के साथ जरूर होना.. ..
...............कोशिश तो करना.. ..
मुझे पता है .. गया समय उल्टे पाँव नहीं चलता..
किन्तु इन भोली-निर्दोष रोशनियों को अब कौन समझाये..
और देखो.. ..
तुम भी मत समझाना..…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 24, 2011 at 7:30pm — 12 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |