होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ।
अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = गंगा जी
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 29, 2013 at 10:50am — 9 Comments
मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥
नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 28, 2013 at 4:44pm — 8 Comments
सवैया -
(1)
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |
गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |
शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |
धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |
(2)
सवैया -
नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |
कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |
दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा |
हिम्मत से तब फौज…
Added by रविकर on June 28, 2013 at 9:30am — 4 Comments
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।
बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।
करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 26, 2013 at 3:58pm — 6 Comments
रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |
सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |
शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||
त्रिसोता= गंगा जी
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by रविकर on June 26, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।…
ContinueAdded by रविकर on June 25, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
तपत तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।
ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।
ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।
अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।…
ContinueAdded by रविकर on June 24, 2013 at 9:30am — 6 Comments
Added by रविकर on June 6, 2013 at 8:30am — 8 Comments
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