For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2012 Blog Posts (251)

रिश्तों का सच

यकीन उठ जाने के बाद,

झूटे रिश्तों की अनचाही लाश

ढोते रहते है कंधे झुक जाने तक

एक टीस जो झकझोरती है दिल दिमाग
 भर देती है हलाहल नस नस में
 
उसी टीस से लड़ते रहे हम 
 
सब धारणाएं टूट जाने तक,
 
 अविश्वास की दीवारों पर
 
सजाते हैं शीशे टूटे दिल…
Continue

Added by Iti Sharma on June 29, 2012 at 10:57am — No Comments

ये अंतर क्यों है ?

ओ सर्वव्यापी , ओ सर्वशक्तिमान

जब सब में है तू विद्यमान

तो इस दुनियाँ में ये

ऊँच-नीच का अंतर क्यों है ?



कोई कहे तुझे खुदा , कोई कहे तुझे भगवान्

करते जब सब तेरा ही गुणगान

तो इस मृत्युलोक  में

तेरे नाम में ये अंतर क्यों है ?



ओ सर्वरक्षक , सर्वगुणों की खान

कैसा है तेरा विधान

जब सब तेरे बनाये हुए हैं

तो ये गोरे काले का अंतर क्यों है ?



तू है सबका प्यारा , तू है सबसे महान

कोई पढ़े गीता यहाँ , कोई पढ़े कुरआन…

Continue

Added by Yogi Saraswat on June 29, 2012 at 10:00am — 10 Comments

लघु कथा - बैकवर्ड

 
कैलाश एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सीईओ हैं सो ऑफिस में बहुत सारी जिम्मेदारियां उन्हें निभानी पड़ती है.
सुबह दफ्तर पहुँचने के बाद दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता.  लेकिन इन सब के बीच भी दूर गाँव रह
रहे माता-पिता से फ़ोन पर बात कर के उनका हाल चाल लेना नहीं भूलते.  रोज रात को सोने से पहले  उनसे
बात करने का उन्होंने नियम बना लिया था.
कैलाश जी के दफ्तर के हेड ऑफिस से आये हुए चेयरमैन के सम्मान में पार्टी का…
Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 29, 2012 at 10:00am — 1 Comment

आई मिस यू माई डैडी

 मेरे सर पर ,'सुख की छाया ' का पता , प्रभु आप थे .

उस रूप को शत शत नमन जब आप मेरे बाप थे .

सारा जग था आप से आरम्भ , और था आप तक .

आप आप आप प्रभु जी हर तरफ बस आप थे .

आप के सीने से आती वो पसीने की महक .

आप के सीने पे सर था मेरे सीने आप थे .

आपकी आई नही थी , आई बेशक थी मेरी .

मैं गया था इस…

Continue

Added by DEEP ZIRVI on June 29, 2012 at 8:30am — No Comments

चाहिए थोडा सा प्यार

चाहिए थोडा सा प्यार 

एक लड़की होती है माँ-बांप की जान 
स्त्री बन रखती अपने सुहाग का मान
माँ बन करती बच्चे का लालन-पालन 
जीवन भर रखती परिवार का ध्यान ||
 
संकट में हो जाती वह तुम पर…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 29, 2012 at 5:41am — No Comments

एक ग़ज़ल कहने की कोशिश ...

अब हवा न हो हमारे दरम्यां;
एक मन हैं ;एक तन हों ,एक जां.

तेरी जुल्फों में जो टांगा फूल तो ;
देर तक महकी हैं मेरी उंगलीयां .

तुम मिले होते न हम को गर सनम
मैं समझता जिंदगी है राए-गां.

एक नगमा बन गई हैं जिंदगी ;
कह रही मुझ को तू आ के गुनगुना .

पारसाई तेरी रास आने लगी ;
कर रही है तेरा मुझको निगेह -बाँ.

इश्क ने सब को सिखाई बन्दगी ;
वरना मेरी काविश गई थी राए -गां .

दीप जीरवी

Added by DEEP ZIRVI on June 29, 2012 at 12:00am — No Comments

कौन करेगा तुझे मुझसे जुदा जानम...

यूं तो

मिलते हैं

बिछड़ते हैं

कई लोग मुझसे ;

तेरी बात और है तुम ने

सिर्फ

मुझसे

हाँ मुझ से

मुहब्बत क़ी है

...मेरी झोली में डाले हैं

मुहब्बत के सच्चे मोती ...

...मेरी मुहब्बत क़ी देवी

तुम ने मुझ पे ये

ख़ास इनायत की है .

आती जाती हुई साँसों में

बसी तू तू तू ही ...

...तेरी नजरे करम ने

मेरी ये हालत क़ी है .

सौ जन्म लेकर भी

पा ना पाता हीरा तुम सा ...

... भर के अपनी मुहब्बत से

मेरी झोली

...इनायत क़ी है

. तू…

Continue

Added by DEEP ZIRVI on June 28, 2012 at 11:30pm — No Comments

...पंजाब है .

{भाव निर्झर }



कितना भोला कितना सादा ;

देखिये पंजाब है .

कटता आया बंटता आया ,

देखिये पंजाब है.

भोलेपन की इंतिहा है ,

सोच के देखे कोई ;

लीडरों की घर की मुर्गी ,

देखिये पंजाब है.

अन्नदाता देस क़ा

खुद फांकता सल्फास है

डालरों की धौंस सहता ,

देखिये पंजाब है..

फिल्म टी वी में दिखे

जो हर चरित्र मसखरा

उनमें पागल दिखने वाला ;

देखिये पंजाब है.;

इन शहीदों की कभी लिखे

अगर कोई किताब

हर जगह पंजाबियों क़ा…

Continue

Added by DEEP ZIRVI on June 28, 2012 at 11:30pm — 1 Comment

"निशानी"

थाम कर तुम्हारी उँगलियाँ
जब ये चलेगा
मोहब्बत की एक नयी इबारत
लिखी जाएगी,
पहली मुलाक़ात की
'निशानी'
अपना कलम मैं तुमको दे आया हूँ
जो भी लिखोगे इस से
वो तकदीर मेरी
बन जाएगी.......

Added by AjAy Kumar Bohat on June 28, 2012 at 4:38pm — 1 Comment

एक ग़ज़ल

मिल कर तुमसे न फिर देर तलक होश आया
जैसा सोचा था, उस से कहीं बढ़कर तुम्हें पाया
 
उस मोड़ से आप तो कर गए 'खुदा-हाफ़िज़' लेकिन

चलता रहा देर तलक साथ मेरे आपका साया

 
तेरे हाथों की खुशबु हो जाये क़ैद मुठ्ठी में

यही सोच, किसी शै को देर तक न मैं छू…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on June 28, 2012 at 2:34pm — 1 Comment

क्यों अकड़ते है लोग

न जाने क्यों अकड़ते है लोग

जब मालूम होता है सभी को

जाना है एक दिन इस जहां से

प्यार से जीने में क्या जाता है

अकड़ से क्या मिल जाता है

इतने अनजान भी नहीं लोग

बचपन में ही जान जाते है

प्यार से मिलता है प्यार

अकड़ से मिलती है डांट

तब भी न जाने कहां से

जुबान में आ जाती है खटास

इतिहास की बात करता नहीं

खुद देखा है मैंने

कल तक जिन्हें अकड़ते हुए

रूखसत हो गए जहां से

अब वो रहते प्यार से

करते रहते…

Continue

Added by Harish Bhatt on June 28, 2012 at 1:53pm — 2 Comments

सलामे मोहब्बत

ना देख यूँ प्यार से ऐ मेरे हमदम, ये दिल जला है.

हूँ अकेला, ये तेरी नेकी का शिला है.....00
.
कदम क्यों बढाया साथ चलने को,
जब छोड़ना ही था खाक मलने को,
तनहइयो का अब हुआ ऐसा काफिला है,
हूँ अकेला, ये तेरी नेकी का शिला है...०१
.
आँखों का तेरे वो पैगाम अच्छा था.
जहर के प्यालो का, वो इनाम अच्छा था,
उजड़ गई बस्ती, और सुना दिल का किला है,
हूँ अकेला, ये तेरी नेकी का…
Continue

Added by Pradeep Kumar Kesarwani on June 28, 2012 at 1:30pm — No Comments

अर्धांगिनी [लघु कथा ]

आरती और वैभव के बीच  में कल रात से ही झगड़ा चल रहा था ,मुद्दा वही उपर की आमदनी का ,जिसे आरती अपने घर में  कदापि भी खर्च करना नही चाहती थी | वैभव ने अपनी पत्नी  आरती को पैसे की अहमियत के बारे में बहुत समझाया और बताया कि उसके दफ्तर  में सब मिल बाँट कर खातें है लेकिन आरती के लिए रिश्वत तो पाप कि कमाई थी , वैभव के लाख समझाने पर भी जब आरती नही मानी तो गुस्से में उसने आरती से साफ़ साफ़ कह दिया था कि अगर आरती ने इस मुद्दे पर और बहस की तो वह उससे  सदा के लिए सम्बन्ध विच्छेद कर…

Continue

Added by Rekha Joshi on June 28, 2012 at 11:42am — 4 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ४

सूरज चढ़ गया है गर्मी के पहाड़ पे.....

---------------------------------------------------------------------------------------

सूरज फिर चढ़ गया है गर्मी के पहाड़ पे और फेंक रहा है आग के गोले समूची कायनात में. सुबह के आठ बजे हैं, पर दिन इतना पीला हो गया है जैसे कि बस दोपहर होने को है. सड़कों पे लोग आ जा तो रहे हैं मगर दिख रहें हैं कुछ इस तरह जैसे स्लो मोशन में कोई सत्तर के दशक की फिल्म चल रही हो.

 

फेरी वाले की आवाज या ऑटोरिक्शा की घरघराहट किसी आर्तनाद जैसी लगती है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:58am — No Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १८

बुरा करते हैं और कहते हैं बुरा न मानना

बुतोंको सजदे करना है तो खुदा न मानना

 

प्यारकी इब्तिदा होती है इन्कारसे तोफिर

वफ़ा का अव्वल सबक है वफ़ा न मानना

 

तुम्हें क्या खबर कि हम जानतेहैं हालेदिल 

ये उनकी आदत है हमें आशना न मानना 

 

अहसाँ समझके ही दो टुक तो कुछ बोलिए 

भला कुबूल है पे ये क्या, भला न मानना 

 

मैं तो बस इत्तेफाक़से हमराह हो गया था

हमें अपना दोस्त याकि हमनवा न मानना

 

ज़रा संभल के…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:53am — No Comments

एक ग़ज़ल....

फ़ित्ने-नौ यूँ उठाने लगी ज़िंदगी |

आँख उनसे लड़ाने लगी ज़िंदगी ||

ताज़ा दम होने को आए थे बज़्म में,

सूलियों पे चढ़ाने लगी ज़िंदगी ||

होश खाने लगी मौत भी देखिये,

फिर ये क्या गुनगुनाने लगी ज़िंदगी ||

उनकी आवाज़ फिर आईना बन गई,…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on June 28, 2012 at 8:52am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १७

तेरेही रंगमें रंगी खुदाई दिखती है

दुनिया तमाम तमाशाई दिखती है

 

कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै

एक- एक राह आजमाई दिखती है

 

ये कैसा शोर है घरमें नयानया सा

छतपे एक चिड़िया आई दिखती है

 

दूरसे महसूस किया बिछडनेका पर

ज़िंदगानी करीबसे पराई दिखती है 

 

दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो 

गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है

 

उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के

कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:41pm — 8 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १६

जबहो जुनून सवार मिस्लेअस्प सर में

तब की फर्क पैंदा आबेहयातओज़हर में

 

खुदाभी यही कहता है लौट आओ पास

कितना सुकून है बैठे बैठे अपने घर में

 

कितने तज़ब्जुब से भरा है सफरेज़ीस्त

कोई कल्ब ज्यूँ भटकताहो राहगुज़र में 

 

दुनियामें कुछ नहींहै दीदनी दिखावा है 

तमाम तिलिस्मात बस भरे हैं नज़र में

 

तमाम दुनियामें जो महसूस करे तन्हा

समूची कायनात समाई है उस बशर में

 

कम लोग जाने हैं तामीरेखल्कका…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:00pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १५

ओबीओ के मित्र जनाब अलबेला खत्री साहेब ने एक शेर मुझसे फर्माया वो ये कि- ‘सबकुछ है इस जहान में तन्हाई नहीं है, अफ़सोस की है बात कि शनासाई नहीं है’

 

इस शेर से मुतास्सिर होके ये पूरी गज़ल लिखी गई है, पेश कर रहा हूँ, मुलाहिजा फरमाइए:  

 

तू नहीं है जिन्दगी में तो लुत्फेतन्हाई भी नहीं है

ये यूँ हैकि आग लगाई नहीं तो बुझाई भी नहीं है

 

ठहरा ठहरा है दरख्तों पे शामका इक तवील साया

शब लिखनेवालेके कलममें जैसे रोशनाईभी नहीं है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 2:55pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १४

तुमको चाहा हमने तो मायूसी मिली

और न पाया तुझे तो जिन्दगी मिली

 

गले मिल के साथ साथ दोनों रोते थे

कल रात मेरे दुखोंसे जब खुशी मिली

 

आह तेरा दीद अश्कसे सूखी आँखोंको

समा न पाए जो इतनी रौशनी मिली

 

दामानेयार की सबा से मरनेवालों को

साअतेमर्ग दो पल की जिन्दगी मिली

 

कलशब कोई आधीरात कहके रोताथा

वफ़ा नीमशबहै मिली पे अधूरी मिली  

 

नसीब देताहै पर क्या ये बात दीगरहै

दिल की लगी चाही पे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:58pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service