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SANDEEP KUMAR PATEL's Blog – July 2012 Archive (34)

करमजली



"करमजली"



गुलाबो की अम्मा

बचपन में ही छोड़ गयी थी

बचपन क्या १ दिन की थी

१ दिन की थी तभी

छोड़ गयी थी

इस करमजली को

ममत्व मर कैसे गया

उसकी माँ का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 31, 2012 at 12:39pm — 1 Comment

मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी

"मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी "



लिखता हूँ

जो मन करता है

दिमाग की नशें नहीं खींचता

जोर आजमाइश कर कुछ नहीं निकलता

सिवाए तेल के

अब कोल्हू का बैल तो हूँ नहीं

मोती तो गहराई में होते हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 30, 2012 at 2:00pm — 3 Comments

स्याही

"स्याही"



पता है तुम्हे

तुम जानती हो

तुम हर्फ़ हर्फ़ की रूह हो

गलत कुछ भी नहीं

सफाह तुम बिन तन्हा है

खाली है, कोरा है

धूल जम चुकी है

डायरी में…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 30, 2012 at 1:08pm — No Comments

चाय

"चाय "



आज सुबह उठा तो सोचा चाय बना लूं

पानी लिया

श्याही सा

हर्फ़ हर्फ़

चाय के दाने

तैरने लगे

एहसासों की चीनी डाल

चढ़ा दिया पतीली को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 29, 2012 at 9:48am — No Comments

पल्लू

"पल्लू"



मुख

मलीन हो रहा है

तेज नष्ट भ्रष्ट

मुझे छोड़ दिया न

तुमने

गोरी के पल्लू ने

धीरे से कानों में कहा

देखो सब घूर रहे हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:56pm — 6 Comments

किताबें

"किताबें "

 

किताबें

खटखटा रही हैं

दरवाजे दिमाग के

लायी हैं कुछ

सवाल कुछ जबाब

छू रहीं है

दिल को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:13pm — 5 Comments

मैं शून्य का उपासक हूँ

मैं शून्य का उपासक हूँ

मुझे मेले में भी सब अकेले लगते हैं

इसीलिए सबसे मिल के हँस बोल लेता हूँ

न जाने हंगाम के हंगामे में

कब मुझे मेरा इष्ट (खुदा) मिल जाए

मुकम्मल रास्ते इख्तियार करता हूँ

मंजिल तक जाने के लिए…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 2:42pm — 4 Comments

ग़ज़ल

==========ग़ज़ल==============



दिलो जिगर निसार दूं है गर हसीन आपसा

किसे न चाहिए यहाँ 'प' महजबीन आपसा



बिना मिले बिना सुने दिलो के हाल जान लूं

हुनर कमाल का लिए न दूरबीन आपसा



बदल रहे अजीब रंग बात बात पर गुमा

नहीं दिखा अभी तलक…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 1:30pm — 5 Comments

"गाँव जायेंगे "



"गाँव जायेंगे "



हरियाली ही हरियाली

चहुँ ओर

प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य

हरी कारपेट आलौकिक माधुर्य

अहा

सोच रहा हूँ

क्यूँ न इन घटाओं को छू लूं

चूम लूं इस माटी…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 26, 2012 at 3:56pm — 5 Comments

महल-अटारी

महल-अटारी

या गाय दुधारी

सम्मोहन है

खूबसूरती का

अहा

ब्यूटीफुल

वाह

काश !!!!!!

फूलते पिचकते सीने

आह…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 26, 2012 at 2:00pm — 3 Comments

=============छन्द/ग़ज़ल==============

===============छन्द================

तुम राह हसीं तुम मंजिल हो, दिल सागर है तुम साहिल हो

महताब तुम्ही बनके चमको, इस चाहत का तुम हासिल हो

हद भी तुम हो तुम बेहद भी, रख शर्म हया तुम फाजिल हो

गुल हो तुम एक गुलिस्ताँ का, खुशबू बनके तुम शामिल हो



संदीप पटेल "दीप"…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 26, 2012 at 12:34pm — 1 Comment

ये वीरों का आँगन है भारत सुहाना

ये वीरों का आँगन है भारत सुहाना

है उसके लिए ही ये दिल आशिकाना



था इतिहास में जो परिंदा सुनहरा, हिमालय जहाँ अब भी देता है पहरा

जहाँ चाँद बनता है बच्चों का मामा, वो भारत है मेरा वतन आशियाना



ये वीरों का आँगन है भारत सुहाना

है उसके लिए ही ये दिल आशिकाना…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 25, 2012 at 12:51pm — 4 Comments

"ग़ज़ल"

"ग़ज़ल"



मंजिलों को पा रहा हूँ, दूर खुद से जा रहा हूँ

आइने से रू-ब-रू होकर के धोखा खा रहा हूँ



इश्क हूँ मैं हूँ सनम भी, हू-ब-हू हूँ औ जुदा भी

रूह बनके मैं समाया फिर भी खोजा जा रहा हूँ



दर्द दे ऐ दोस्त मुझको, गमगुसारे यार हूँ मैं

बाँट ले हर दर्द अपना, नज्म मीठी गा रहा हूँ



जिंदगी भर प्यास ले के जी रहा था दीद की मैं

आज मेरा है खुदा वो प्यार उसका पा रहा हूँ



हूँ बड़ा ही भ्रष्ट लोगो, और हूँ मैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 2:00pm — No Comments

सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में

सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में

आओ ऐसा नव दीप जलाएं भारत में



अब छेड़ प्रेम की तान मिलाएं हाथ चलो 

रख याद वतन की आन मिलाएं हाथ चलो

अब आपस का ये द्वेष भुलाएँ भारत में



सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में

आओ ऐसा नव दीप जलाएं भारत में



गंगा यमुना भी भेद नहीं करती लोगो

है सबकी पावन गोद यही धरती लोगो

ये जाति-पाति का रोग मिटाएं भारत में



सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में

आओ ऐसा नव…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

"गांधी जी के बन्दर"

"गांधी जी के बन्दर"



राहों में चलते जाइए

और चलिए

थोडा और

देखिये

देखिये न

देखा !!!!!!!!!!!!!!!

राम राम !!

ये राम को क्यूँ याद किया…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 10:55am — No Comments

हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर {नज्म/गीत}

==========नज्म/गीत ==========



हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर

इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर



पल पल भी मुश्किल से कटता है तुम बिन

इक पल भी इक साल सा लगता है तुम बिन

घडी का काँटा रुक रुक चलता है तुम बिन

सूरज चढ़ के  देर से…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 22, 2012 at 10:45am — 5 Comments

ऐ मेरे सजन

============= गीत =============



मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन

मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन



सुबहो शाम, रात दिन, याद मुझे आ रहे

वो बिताये पल सुहाने नैनों में समा रहे

खिल रहे नए पुष्प, मन की वाटिका में गा रहे

तुमसे ही चलती हैं साँसे तुमसे है जीवन, ऐ मेरे सजन



मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन

मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन



छा रहे है मेघ घने आपकी ही प्रीत के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 12:28pm — 8 Comments

मुक्तिका "सावन"

मुक्तिका "सावन"

मेघों का गर्जन है सावन
बूंदों का अर्पण है सावन

हरियाली चहुँ ओर बिखेरे
कितना मन रंजन है सावन

दीनों की छत से टप टप स्वर
दुःख का अनुरंजन है सावन

शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन

छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन

"दीप" सजे सब मंदिर देखो
भोले का पूजन है सावन

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 9:00am — 3 Comments

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से

जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से



मेरी रूह वही है, मेरा जिस्म वही है

मेरी आह  वही है, मेरी राह वही है

मेरा रोग वही है, औ दवा भी वही है

मेरा साया पीछे छूटे भला कैसे मुझी से

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से



जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से



मेरी यार वही है , दिलदार भी वही है

वो ही सावन है , औ फुहार भी वही है

वो ही…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 18, 2012 at 1:00pm — 11 Comments

"क्या कहूँ "

"क्या कहूँ "



धीरे धीरे चलती पवन

गंभीर हो

चिंतन में डूबे को

समय देख रहे हो

या प्रवाह को महसूस कर रहे हो मेरे

या पदचाप सुन रहे हो

आने वाले समय के

क्यूँ आज…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2012 at 1:38pm — 3 Comments

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