For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

July 2011 Blog Posts (106)

चाँद उतर आएगा...

 

 

 

 

 

 

 

 

सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था  

कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद

कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ…

Continue

Added by Veerendra Jain on July 20, 2011 at 12:59pm — 10 Comments

दोहा सलिला: यमक झमककर मोहता --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: यमक झमककर मोहता --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

यमक झमककर मोहता

--संजीव 'सलिल'

*

हँस सहते हम दर्द नित, देते हैं हमदर्द.

अपनेपन ने कर दिए, सब अपने पन सर्द..

पन =… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 20, 2011 at 7:10am — 5 Comments

जिसकी ख़ातिर ख़्वाब जवाँ

जिसकी ख़ातिर ख़्वाब जवाँ,

उसे तलाशूँ कहाँ कहाँ,



लाख छुपाऊँ अश्कों को,

चेहरे से है दर्द अयाँ,



सौ शहरों में घूम लिया,

नहीं मिला है एक मकाँ.



कितना तल्ख़ सफ़र काटा,

उखड़ी साँसें घायल पाँ,



चाहत में क्या क्या गुज़री,

रिसते छालें करें बयाँ,



दिल रोशन सा एक दिया,

आज उगलता एक धुआँ.



खुशियों की यूँ शाम हुई,

खूँ में डूबा आज समाँ



तेरी यादों की माला,

टूटी बिखरी यहाँ…

Continue

Added by इमरान खान on July 19, 2011 at 7:30pm — 1 Comment

खामोश

यहां क्रांति की तैयारी चल रही है-

कोनों में दुबक कर

वे जोर से गरजते हैं

नारे की गरजना से

थरथराने लगता है सामने वाला

वे अपने मूंह में तोप फिट कर लिये हैं,

गरजने के लिए.

चुप रहो !

वे क्रांति की तैयारी कर रहे हैं.

देखते नहीं, वे अपना रायफल बंधक रख दिये हैं

पत्नी के गहने जो खरीदने हैं.

अरे, वो देखो वे कहीं जा रहे हैं.

चुप, इतना भी नहीं समझता,

मंत्री जी की अगुवानी मंे हैं.

अपने बेटे को विदेश जो भेजना है.

कल तक गरीब थे

-तो रहा… Continue

Added by Rohit Sharma on July 19, 2011 at 3:41pm — 1 Comment

फिल्म दलदल के लिए प्रस्तावित गजल /कव्वाली

ख़ुशी से कौन, लुटने के लिए, बाज़ार आता है |



यकीं कर लो जो आता है, वो हो लाचार आता है ||
खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियाँ लुटा रही हूँ |
बिजली गिरी थी मुझ पे, सो जगमगा रही हूँ ||
बचपन से आजतक का, हर पल है यद् मुझको |   
अपनों ने ही किया है, लोगो,…
Continue

Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 1:20pm — No Comments

कैसे उड़ेगा

वो नन्हा सा था,

थे पंख उसके छोटे, छोटी सी थी काया,

नन्ही सी उन आँखों में जैसे पूरा गगन समाया!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

छोटी छोटी प्यारी आँखों में उड़ने का था सपना,

पंख फैला सर्वत्र आकाश को बनाना था अपना,

हर कोशिश के बाद मगर फिसल-फिसल वो जाता!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

इक दिन फिर नन्हे-नन्हे से पर उसके थे खुले,

थी शक्ति क्षीण मगर बुलंद थे होंसले,

पूरी हिम्मत समेट कर घोसले से वो कूदा!

सोचती थी कैसे…

Continue

Added by Vasudha Nigam on July 19, 2011 at 10:06am — 3 Comments

chitr se kavy tak ank 4

जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं |

वो, खुदा समान, महान हैं ||

वो ही, पैदा करते हैं, फसल को |

वो ही, जिन्दां रखते हैं, नस्ल को ||

वो तो, ज़िन्दगी करें, दान है |

जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||

उन्हें, अपने काम से काम है |

वो कहें, आराम , हराम है ||

वो असल में, अल्लाह की शान हैं |

जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||

जिन्हें, बस ज़मीन से, प्यार है |

करें जाँ, ज़मीं पे, निसार हैं ||

वो तो, सब्र-ओ-शुक्र की, खान हैं |

जिन्हें, लोग कहते,…

Continue

Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 10:00am — No Comments

.चित्र से काव्य तक अंक ४ से

लिखे, आत्म-कथा, जो किसान है |



वही गीता, वही  कुरान है ||
जिसे पढ़ के, दिल मजबूत हो |
ये वो वेद  है, वो पुराण है ||
इसे सुब्ह-शाम  की,फ़िक्र न |
ज़मीं खाट, छत आसमान है || 
रहे मस्त अपनी ही, धुन में ये…
Continue

Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 9:18am — No Comments

वलवले

यह जो ज़िन्दगी की किताब है |
यह अजीब है, यह अज़ाब है ||
कभी खुश्क सहरा को, मात दे |
कभी खूब तेज़, सैलाब है ||
कभी दिन को, तारे दिखाई दें |
कभी शब् को, आफताब है ||
यह किसी पहेली से कम नहीं |
यह तो ला-जवाब हिसाब है ||
'शशि' याद रखना, यह फलसफा |
यहाँ नेकी करना, सबाब है ||

Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 8:42am — 2 Comments

भ्रष्टाचार है कि मुरब्बा

देखो भाई, यदि आपने भ्रष्टाचार नहीं किया हो तो लगे हाथ यह सौभाग्य पा लो और बहती गंगा में हाथ धो लो। फिर कहीं समय निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आने वाला है। भ्रष्टाचार की अभी खुली छूट है, जब जैसा चाहो, कर सकते हो। बाद में न जाने मौका मिलेगा कि नहीं, कहीं पछताने की नौबत न आए। फाइलों की सुरंग से बारी-बारी एक-एक भ्रष्टाचार का दानव बाहर निकलकर आ रहा है, ये इतने शक्तिशाली हैं कि इन पर हाथ डालने कतराना पड़ता है और जब दबाव में उसकी कमीज से मक्खी उड़ा भी लिए और वह जेल की चारदीवारी में पहुंच गया तो वहां भी मौज… Continue

Added by rajkumar sahu on July 18, 2011 at 11:17pm — No Comments

ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है

ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,

रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |



मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,

काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |



कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,

पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |



दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,

औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है |



किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,

बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |

  • रावी…
Continue

Added by Prabha Khanna on July 18, 2011 at 7:00pm — 11 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के नेतृत्व में 12 हजार से अधिक पौधे रोपे गए।

पहारू - अगले बरस तक 12 पौधे नहीं बचेंगे, बस ठंूठ के दर्शन होंगे।





2. समारू - यूपीए के खिलाफ भाजपा का अभियान शुरू होने वाला है।

पहारू - इधर छग कांग्रेस, भाजपा का ‘भ्रष्टाचार पुराण’ बनाने में लगी है।





3. समारू - केन्द्रीय राज्यमंत्री डा. चरणदास महंत 18 जुलाई को रायपुर आएंगे।

पहारू - अब देखना होगा, कितने गुट नदारद रहते हैं, यही तो छग में कांग्रेस की दस्तूर रह गई… Continue

Added by rajkumar sahu on July 18, 2011 at 6:52pm — No Comments

चित्र से काव्य तक no. 4 k liye preshit

चित्र से काव्य तक
जहाँ को जिसने बनाया, खुदा है, दाता है |
किसान खल्क-ए-खुदाई का, अन्न-दाता है ||
बहा के खून-पसीना, जो अन्न उगाता है |
सुना है,खुद वो कभी, पेट भर न खाता है ||
उम्र भर, जिसका रहे, गुर्बतों से नाता है |
वो सब्र-ओ-शुक्र, न जाने, कहाँ से पाता है ||
अजीब बात है, मुश्किल में, मुस्कराता है |
'शशि' सलाम, करे उसको, सर झुकाता है ||

Added by Shashi Mehra on July 17, 2011 at 9:21pm — No Comments

chitr se kavy tak ki oratiyogyta no 4 k liye preshit

तरक्की जिसको कहते हैं, हुई है बस फसानों में |

हकीकत देख लो जाकर के, गावों में, किसानों में ||

किसी हसरत को, दिल में सर, उठाने वो नहीं देते |

जुबां से बदनसीबी के, उलाहने वो नहीं देते ||

ख़ुशी वो ढूंढ़ लेते हैं, वैसाखी के तरानों में |

हकीकत देख लो जाकर के, गावों में, किसानों में ||

है, पूजा काम करना, वो ज़माने को, सिखाते हैं |

उमीदों के भरोसे ही, ज़मीं पे हल चलाते हैं ||

उन्हें मालूम है, जो फर्क है, वादों-बयानों में ||

हकीकत देख लो जाकर के, गावों में,… Continue

Added by Shashi Mehra on July 17, 2011 at 9:16pm — No Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - प्री-पीएमटी की तीसरी बार आयोजित परीक्षा में एक ही प्रश्न दो बार पूछे गए।

पहारू - व्यापमं कुछ भी कारनामा कर ले, बहुत कम है।



2. समारू - अलग बस्तर राज्य मांग का समर्थन करने की आग ठंडी पड़ गई है।

पहारू - बयान देने वाला छग कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भी तो ठंडा पड़ गया है।



3. समारू - उज्जैन में दिग्विजय सिंह को भाजपाईयों ने दिखाया काला झंडा।

पहारू - बन गया, किसी ने जूता नहीं फेंका, आजकल यही चलन तो चल पड़ा है।



4. समारू - अन्ना हजारे ने कहा - आंदोलन… Continue

Added by rajkumar sahu on July 17, 2011 at 8:48pm — No Comments

अब तक

एक बात कही थी याद है अब तक

लहज़े-वह्ज़े याद नहीं

एक दर्द हुआ एहसास है अब तक

दिल या ज़हन में याद नहीं,



अक्सर यूँ होता है जब भी,

बात से बात उलझती है,

सोची हुई कहते हैं कुछ,

और कुछ तो यूँ ही फिसलती है

वो अन-सोची बातें ही दिल में,

रह जाती हैं क्या कहिये,

सोच-सोच कर जो भी कहा था

नापा-तौला याद नहीं,



जो साथ खड़े हो तुम मेरे,

तो इनती बात तो सच होगी,

जिस राह से तुम चल कर आये,

हमने भी वही तो चुनी होगी,

राहें वापस… Continue

Added by Aradhana on July 17, 2011 at 7:30pm — 9 Comments

मानसरोवर -- 4

(दहेज़ के लिए पत्नी को जलाने,हत्या करने जैसी घटनाएँ आज भी हमारे समाज में घट रही हैं. हम कैसे मान लें हम पहले से अधिक शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं. मानसरोवर --4 इसी अमानुषिक कृत्य पर आधारित है.

OBO के सभी मित्रों से अनुरोध है कि इस अमानवीय घटना की कड़ी भर्त्सना करें.)
मानसरोवर -- 4

 

दहेज़ -तिलक का यह रिवाज़, मानवता में है एक…
Continue

Added by satish mapatpuri on July 17, 2011 at 6:30pm — 2 Comments

पर ये तन्हाई ही हमें रहना सिखाती है.

ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,

हमें कुछ करने के काबिल बनाती है.

सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,

पर ये तन्हाई ही हमें रहना सिखाती है.



यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,

वीरान कर देते हैं जिंदगी.

उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,

अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है.



मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,

ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.

ये तन्हाई की ही सलाहियत है,

जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.



शालिनी कौशिक…



Continue

Added by shalini kaushik on July 17, 2011 at 2:30pm — No Comments

हिन्दुस्तान मेरा था

तुम्हारे दर पे वो सारा सामान मेरा था,
गली के दायें से चौथा मकान मेरा था,
और तुम जिसे कहते हो पाक़ मुल्क हुज़ूर,
पुराने वक़्त में हिन्दुस्तान मेरा था;

आज तुम मानवता की सारी मिसाल भूल गए,
पडोसी होकर के अपनी दीवार भूल गए,
हमें देखकर नुक्लिअर होना याद रहा,
हम सब का एक ही 'परवरदिगार' भूल गए;

Added by neeraj tripathi on July 17, 2011 at 10:25am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदाब, मुसाफ़िर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई खूँ सने हाथ सोच त्यों बर्बर सभ्य मानव में फिर नया क्या है।३।…"
28 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशायरा का आग़ाज़ करने के लिए दाद के साथ…"
32 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, ध्यान दिलाने का बहुत शुक्रिया। ग़ज़ल दोबारा पोस्ट कर दी है। "
42 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमन, रिया जी , खूबसूरत ग़ज़ल कही, आपने बधाई ! मतला भी खूसूरत हुआ । "मूसलाधार आज बारिश है…"
43 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या हैअपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले वो…"
43 minutes ago
Prem Chand Gupta replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"इश्क में दर्द के सिवा क्या है।रास्ता और दूसरा क्या है। मौन है बीच में हम दोनों के।इससे बढ़ कर कोई…"
52 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ओ.बी.ओ के नियम अनुसार तरही मिसरे को मिलाकर  कम से कम 5 और…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमस्कार, आ. आदरणीय भाई अमित जी, मुशायरे का आगाज़, आपने बहुत खूबसूरत ग़ज़ल से किया, तहे दिल से इसके…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service