वो मेरा कुछ नहीं लगता
और मैं कोई महान व्यक्ति भी नहीं
फिर भी बार बार वो
मेरे पैर पकड़ रहा था
पता है क्यों ?
मैंने सिर्फ दो रोटी दी उसे
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बहुत दुश्मन है उसके
गलती ?
बहुत अच्छा आदमी है वो
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सिसकियाँ मत लो ग़म-गीं हवाओ
चुप हो जाओ
पता है क्यों?
वो आ रहीं है
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लोग कहते है उनकी आँखों में
प्यार का समंदर है
फिर भी मैं क्यों ?
प्यासा…
Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 6:00pm — 14 Comments
खुद का भी अहसास लिखो!
एक मुकम्मल प्यास लिखो!!
उससे इतनी दूरी क्यों !
उसको खुद के पास लिखो !!
खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!
गलती उसकी बतलाना !
खुद का भी उपहास लिखो!!
हे ईश्वर ऊब गया हूँ!
मेरा भी अवकाश लिखो!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 1:11am — 28 Comments
मैंने चुप की आवाज़ सुनी !
जबसे गूँगे से बात करी !!
वर्षों तक देखा है उनको !
तब जाके ये तस्वीर बनी!!
चोर-चोर मौसेरे भाई!
उनकी आपस में खूब छनी!!
कोई कैसे घायल ना हो!
वो थी ही मृग सावक नयनी !!
बीवी साड़ी माँग रही थी!
मेरी तो तनख़्वाह कटनी!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 17, 2014 at 11:25am — 8 Comments
अपना फ़र्ज़ निभाने दे!
फिर से वही बहाने दे !!
तेरा भी हो जाऊँगा !
खुद का तो हो जाने दे !!
गैरों के घर खूब रहा!
अपने घर भी आनें दे !!
मूर्ख दोस्त से अच्छा है !
दुश्मन मगर सयाने दे!!
कागज़ की फिर नाव बनें !
बचपन वही पुराने दे !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 17, 2014 at 11:00am — 15 Comments
ख़्वाबों पे उसका पहरा है!
यादों का सागर गहरा है !!
चीखें वो फिर सुनाता कैसे!
मुझको तो लगता बहरा है !!
आईने में भी देखा कर !
क्या ये तेरा ही चेहरा है !!
बातें उसनें कर दी ऐसी !
दिल में सन्नाटा ठहरा है !!
कतरा -कतरा जीता हूँ मैं!
मेरे अन्दर भी सहरा है !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 12, 2014 at 1:00pm — 7 Comments
इक दिन अपना नाम बताकर !
हँसती है वो आँख चुराकर!!
पत्थर का है शहर जानलो!
घर से निकलना सर बचाकर !!
तेरी गर मासूका ना हो !
खुद को ही खत रोज़ लिखाकर!!
मुझको खुद से दूर कर दिया!
इतना अपने पास बुलाकर !!
इक दिन वो सुन लेगा तेरी !
बस तू जाके रोज़ कहाकर!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 12, 2014 at 12:30am — 4 Comments
इक ऐसा भी घर बनवाना!
जिसमे रह ले एक ज़माना !!
खुद से खुद की बातें करना !
जब खुद के ही हिस्से आना !!
वो मरा है तू भी मरेगा !
लगा रहेगा आना जाना !!
कुछ ऐसा भी कर ले पगले !
जो बन जाए एक फ़साना !!
खुद से ही भागेगा कब तक !!
खुद से चलता नहीं बहाना !!
भूल गया हो गर वो मुझको !
उसको मेरी याद दिलाना !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 11:21am — 8 Comments
मैं अपने ही साथ रहूँगा!
खुद में तुझसे बात करूँगा!!
अब चाहे जिससे मिलना हो!
दर्पण अपने साथ रखूँगा!!
मेरे कद को ढाँक सके जो !
ऐसी चादर साथ रखूँगा!!
उनको हँसकर मिलने तो दो!
मैं भी दिल की बात करूँगा!!
बातें बहुत ज़बानी कर लीं!
मैं भी खत इक बार लिखूँगा!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 11:00am — 12 Comments
१-ये कैसा दर्पण
जिसमे सबकुछ
मुझसा ही दिखता है
२-मेरी मर्ज़ी
उनके लम्हे भर का क़र्ज़
जीवन भर लौटाऊँ
३-वो सबकी नज़रों में था
लेकिन खुद को ही नहीं देख पाया
४- पहले मुझे ज़िंदा करो
फिर मरने की बात करना
५-उन्हें हँसी तो आयी
बहाना
मेरा रोना ही सही
६-देखते है
ज़िंदा रहने की धुन में
खुद को कितनी बार मारता है वो
७-मैं
मैख़ाने का रास्ता भूल जाऊँ
इसलिए आज
वो आँखों से पिला रही…
Added by ram shiromani pathak on August 8, 2014 at 3:16pm — 4 Comments
वीर हैं सपूत सारे, भारती के नैन-तारे!
युद्धभूमि में सदैव झंडा गाड़ देते हैं!!
प्रचंड तेज भाल पे,चाहे हो द्व्ंद्व काल से!
भारती के शत्रुओं का,सीना फाड़ देतेहै!!
विश्व धाक मानता है,वीरता को देख देख !
बड़े बड़ों को भी सदा,ये पछाड़ देते है!!
वज़्र के समान देह,नैनों में प्रचंड आग!!
काँप जाता शत्रु जब ,ये दहाड़ देते है!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 8, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
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