याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।
कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चिराई।
अनुभव हुआ एक दिन तेरी, जब हो गई विदाई।
अमरबेल सी पाली थी, इक दिन में हुई पराई।
परियों सी प्यारी गुड़िया को जा विदेश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------
लाख प्रयास किये समझाया, मन को किसी तरह से।
बरस न जायें बहलाया, दृग घन को किसी तरह से।
विदा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सिखार्इ।
दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 27, 2014 at 8:00am — 5 Comments
यह जीवन महावटवृक्ष है।
सोलह संस्कारों से संतृप्त
सोलह शृंगारों से अभिभूत है
देवता भी जिसके लिए लालायित
धरा पर यह वह कल्पवृक्ष है।
यह जीवन महावटवृक्ष है।।
सुख-दु:ख के हरित पीत पत्र
आशा का संदेश लिए पुष्प पत्र
माया-मोह का जटाजूट यत्र-तत्र
लोक-लाज, मर्यादा,
कुटुम्ब, कर्तव्य, कर्म,
आतिथ्य, जीवन-मरण
अपने-पराये, सान्निध्य, संत समागम,
भूत-भविष्य में लिपटी आकांक्षा,
जिस में छिपा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 26, 2014 at 8:00am — 5 Comments
बस बात करें हम हिन्दी की।
न चंद्रबिन्दु और बिन्दी की।
ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।
हों घर-घर बातें हिन्दी की।
ना हिन्दू-मुस्लिम-सिन्धी की।
बस सर्वोपरि सम्मान करें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।
पथ-पथ प्रख्याति हो हिन्दी की।
ना जात-पाँत हो हिन्दी की।
बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।
एक धर्म संस्कृति हिन्दी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 25, 2014 at 7:44pm — 6 Comments
किससे क्या है शिकवा
किसको क्या शाबाशी।
नहीं कम हुए बढ़ते
दुष्कर्मों को पढ़ते
बेटे को माँ बापों पर
अहसाँ को गढ़ते
नेता तल्ख़ सवालों पर
बस हँसते-बचते
देख रहे गरीब-अमीर
की खाई बढ़ते
कितनी मन्नत माँगे
घूमें काबा काशी।
फिर जाग्रति का
बिगुल बजेगा जाने कौन
फिर उन्नति का
सूर्य उगेगा जाने कौन
आएगी कब घटा
घनेरी बरसेगा सुख,
फिर संस्कृति की
हवा बहेगी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 24, 2014 at 7:00pm — 3 Comments
ज़िन्दाबाद--ज़िन्दाबाद।
राष्ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्दी ज़िन्दाबाद।।
ज़िन्दाबाद- जि़न्दाबाद।
हिन्द की है शान हिन्दी
हिन्द की है आन हिन्दी
हिन्द का अरमान हिन्दी
हिन्द की पहचान हिन्दी
इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।
ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद।
वक़्त जन आधार का है
हिन्दी पर विचार का है
काम ये सरकार का है
जीत का न हार का है
हिन्दी से ही आएगा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 23, 2014 at 8:22am — 9 Comments
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।
क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।
कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।
कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।
देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,
सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।
देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।
आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।
सामर्थ्य कर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 22, 2014 at 9:00pm — 7 Comments
लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।
स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।
भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,
इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।
क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।
आ गया है फिर समय जुट एक होना ही पड़ेगा।
दुष्ट नरखांदकों से फिर दो चार होना ही पड़ेगा।
गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,
बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।
सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 21, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
कविता गीत ग़ज़ल रूबाई।
सबने माँ की महिमा गाई।।
जल सा है माँ का मन निर्मल
जलसा है माँ से घर हर पल
हर रँग में रँग जाती है माँ
जल से बन जाता ज्यों शतदल
माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल
माँ गुलाबजल, माँ है संदल
जल-थल-नभ, क्या गहरी खाई।
माँ की कभी नहीं हद पाई।
कविता गीत----------------
माँ फूलों की बगिया जैसी
रंगों में केसरिया जैसी
माँ भोजन में दलिया जैसी
माँ गीतों में रसिया जैसी
माँ…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 20, 2014 at 11:04pm — 12 Comments
यदा यदा हि धर्मस्य--------
1
मानव देह धरी अवतारी, मन सकुचौ अटक्यो घबरायो।
सच सुनके कि देवकीनंदन हूँ मैं जसुमति पेट न जायो।
सोच सोच गोकुल की दुनिया, सब समझंगे मोय परायो।
सुन बतियन वसुदेव दृगन में, घन गरजो उमरो बरसायो।
कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं, कौन घड़ी पल छिन इहँ आयो।
कछु दिन और रुके मधुसूदन, फिरहुँ विकल कल चैन न पायो।
परम आत्मा जानैं सब कछु, ‘आकुल’ मानव देह धरायो।
कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण, श्यामहिं चित्त तनिक…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 18, 2014 at 5:00pm — 7 Comments
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