मापनी - 2122 2122 2122 212
जिन्दगी है कीमती यूँ ही लुटाने से रहे
हर किसी के गीत हम तो गुनगुनाने से रहे
पैर अंगद से जमे हैं सत्य की दहलीज पर
हो रही मुश्किल बहुत लेकिन हटाने से रहे
अर्जियाँ सब गुम गईं या…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2018 at 12:00pm — 17 Comments
मस्त हुए वे प्रभुताई में
देश झुलसता महँगाई में
घास तलक उगना हो मुश्किल
क्या रक्खा उस ऊँचाई में
फटी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 25, 2018 at 10:00am — 6 Comments
लोकतंत्र
अर्जी लिए खड़ा है बुधिया,
भूखा प्यासा खाली पेट.
राजा जी कुर्सी पर बैठे,
घुमा रहे हैं पेपरवेट.
कहने को तो लोक तंत्र है,
मगर लोक को जगह कहाँ है.
मंतर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2018 at 1:29pm — 18 Comments
भले थोड़ी रुकावट आज है
पतवार के आगे
किनारा भी मिलेगा कल,
हमें मँझधार के आगे.
अमन की क्यारियाँ सींचो,
मुहब्बत को महकने दो.
हृदय में आज अपने तुम,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 12, 2018 at 12:08pm — 10 Comments
कब यहाँ पर प्यार की बातें हुईं
जब हुईं तकरार की बातें हुईं
दो मिनट कचनार की बातें हुईं
फिर अधिकतर खार की बातें हुईं
बाढ़ में जब बह चुका सब, तब कहीं
नाव की, पतवार की बातें हुईं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 10, 2018 at 9:30am — 10 Comments
स्वर्ण-कलश हो गए लबालब,
क्यों हूँ अब तक रिक्त पड़ा.
जाने कब नंबर आयेगा,
यही सोचता रहा घड़ा.
नदिया सूखी, पोखर प्यासी,
तालाबों की वही कहानी.
झरने खूब बहे पर्वत से,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 3, 2018 at 4:33pm — 2 Comments
स्वर्ण-कलश हो गए लबालब,
क्यों हूँ अब तक रिक्त पड़ा.
जाने कब नंबर आयेगा,
यही सोचता रहा घड़ा.
नदिया सूखी, पोखर प्यासी,
तालाबों की वही कहानी.
झरने खूब बहे पर्वत से,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 3, 2018 at 4:33pm — 2 Comments
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