For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Arpana Sharma's Blog – October 2016 Archive (7)

अर्पणा शर्मा -"दीपोत्सव" कविता

मंगलमय हो दीपोत्सव यह शुभ-शुचित,

झिलमिलाये अमावस यह कार्तिक,

नेह-पुष्प तोरण हर द्वार सुसज्जित

सुंदर अल्पनायें आँगन-देहरी रचित,

विकारजन्य स्वदोषों से मुक्ति समाहित,

अंतस के भावों में हो यह कामना सन्निहित,

बैर, अहिंसा, अशांति ना हो किंचित,

ऐसी ज्योति करें सर्वत्र प्रज्वलित,

जनकल्याण सुख-सौभाग्य दीप प्रकाशित,

दीपज्योति वीर-बलिदान समर्पित,

सानंद न्यौछावर हुए जो देश के हित,

तम का क्षय हो, सर्वजन हों आनंदित,

नवचेतना, जागृति हो सर्वत्र… Continue

Added by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 6:48pm — 6 Comments

अर्पणा शर्मा : "गोलगप्पा"/हास्य कविता

रसना लपलपाये देख गोलगप्पा,

चलो हो जाये कुछ धौल धप्पा,

धनिया, पुदिना, कैरी की चटनी,

और जोरदार इमली का खट्टा,

है मिलाया इसमें गुड़ का मीठा,

हींग और जीरे का लगाया है तड़का,

हरदिल अजीज, लाजवाब शै है

ये गोलगप्पा ,

भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े,

ना होता कोई हक्का-बक्का,

मुँह में घुलाया, फिर जीभ से,

दिया अंदर धक्का,

गले में यह जा अटका,

साँस आधी ऊपर आधी नीचे,

बड़ी मुश्किल से गटका,

पर तब भी मन न माना,

जल्दी से एक और… Continue

Added by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:02pm — 8 Comments

अर्पणा शर्मा: कविता - "अक्षर"

अक्षर-अक्षर माला जुड़ी,

मिली मानुष मन को वाणी,

अक्षर की रचना बनी,

विश्व में प्रगतिवाहिनी,

लिखें या बोलें , संप्रेषण में,

अक्षर का ना कोई सानी,

दर्द, दर्प, दुख, प्रेम-विरह,

शंका, उल्लास या सनसनी,

अक्षरों में निहित भावों से,

हर मन की थाह जानी,

अक्षर हैं संवदिया,

महत्ता इनकी जिसने गुनी,

वश में कर ली दुनिया उसने,

बोल सच्ची-मधुर वाणी,

अक्षर-अक्षर में छिपी,

सभ्यता के उत्थान की कहानी,

रच लो सृजन का अमर संसार,

बन कर… Continue

Added by Arpana Sharma on October 25, 2016 at 3:59pm — 4 Comments

कविता :"विजयादशमी " - अर्पणा शर्मा, भोपाल

हम सब कठपुतलें हैं,

करते परंपरागत दहन,

रावण के पुतलों का,

मनाते पर्व विजय का,

पर छुपे हुए रावण,

हर जगह फैलें हैं,

ऊपर से उल्लासित हम,

भीतर से त्रस्त और खोखले हैं,

आतंक,दुराचार,विभीषिकाओं के,

भीषण दौर इस विश्व में,

सभी धर्मों, सभ्यताओं,

और समाजों ने झेले हैं,

छुपी हुई दुराचारी,

अहंकारी मनोवृत्ति के,

आतंक और भ्रष्टाचार के,

युद्ध और विनाश के,

अशिक्षा और दरिद्रता के,

इन रावणों का दहन करने,

हे राम…

Continue

Added by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 10:30am — 15 Comments

लघुकविता - "मेहरबानी" - अर्पणा शर्मा

" चूँकि,
मुश्किल थी,
देखभाल,
अंततः वह,
छोड़ ही आया,
वृद्धाश्रम में
माँ को,
वर्षों पहले,
इसी कारण से,
वह ले आई थी,
अनाथाश्रम से,
एक नन्हा बालक,
अपने घर को....!!"

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Arpana Sharma on October 7, 2016 at 3:20pm — 6 Comments

लघुकथा- फर्क (अर्पणा शर्मा)

 "अरे , मकान का काम देखने मम्मी जी , पापाजी को भेज दें।", राखी कुनमुनाई, "बेकार ही घर में बैठे हैं" वो सोचने लगी, " हम तो खाना निपटा कर फिर थोड़ी देर वहाँ काम देख आएँगे", सास-ससुर के जाते ही उसने आजादी की साँस ली और जल्दी से मायके फोन लगाया । वैसे तो सुबह उठकर सबसे पहले अपने पिताजी से बात करके ही उसका दिन शुरू होता है पर फिर भी पूछना था कि उन्होंने ठीक से खाना खाया कि नहीं । तभी नन्ही पलक ठुमकती आई-"मम्मी सू आरही है", "अरे भई, अपन से नहीं होता ये सब, बच्चों की सू-सू, पाॅटी", राखी ने…

Continue

Added by Arpana Sharma on October 5, 2016 at 11:00pm — 4 Comments

कविता - "उत्कर्ष"/अर्पणा शर्मा

“उत्कर्ष“

एक टिमटिमाते, बुझते तारे का उत्कर्ष,

देख लोग, होते चमत्कृत,

लेकिन वे बूझने में असमर्थ,

उसका नैपथ्य में छिपा,

गहन, सतत संघर्ष,

रुपहली चमक के पीछे छिपे,

कालिमा के सुदीर्घ, लंबे वर्ष,

फिर भी आशाओं से परिपूर्ण,

बाधाएँ, चुनौतियाँ पार कर,

उत्साहित, प्रसन्नचित्त, प्रकाशमान सहर्ष,

प्रोत्साहन देता अनूठा, गांभीर्य शब्द संघर्ष,

छिपा गूढ इसमें तात्पर्य,

ड़टे रहो कर्तव्यपथ पर “ संग + हर्ष",

अब दूर कहीं मुसकुराता है,…

Continue

Added by Arpana Sharma on October 4, 2016 at 5:41pm — 6 Comments

Monthly Archives

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"जय-जय"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और असीम उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार। आपको…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी.मैं आपकी टिप्पणी को समझ पाने में असमर्थ हूँ.मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट…"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब,'नूर' साहब, सुन्दर  रचना है, मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में…"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
Thursday
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
Thursday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service