तरही ग़ज़ल अल्लामा इकबाल जी का मिसरा
“ तेरे इश्क की इम्तिहाँ चाहता हूँ “
काफिया : आ ; रदीफ़ :चाहता हूँ
बहर : १२२ १२२ १२२ १२२
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कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ
इनायत तेरी आजमा चाहता हूँ |
'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ
तेरे इश्क की इम्तिहा चाहता हूँ |
जो’ भी कोशिशे की हुई सब विफल अब
हूँ’ बेघर मैं’ अब आसरा चाहता हूँ |
ज़माना हमेशा छकाया मुझे है
अभी…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2017 at 11:00am — 5 Comments
काफिया : अर ;रदीफ़ : है
बह्र ; १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर है
विपक्षी मौन, जनता में खमोशी, सिर्फ डरकर है |
समय बदला, जमाने संग सब इंसान भी बदले
दया माया सभी गायब, कहाँ मानव? ये’ पत्थर हैं |
लिया चन्दा जो’ नेता अब वही तो है अरब धनपति
जमाकर जल नदी नाले, बना इक गूढ़ सागर है |
ज़माना बदला’ शासन बदला’ बदली रात दिन अविराम
गरीबो के सभी युग काल में अपमान मुकद्दर है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments
काफिया –आँ , रदीफ़ –पर
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कुटिल जैसे बिना कारण, किया आघात नादाँ पर
भरोषा दुश्मनों पर है, नहीं है फ़क्त यकजाँ पर |
अयाचित आपदा का फल, कहे क्या? अब पडा जाँ पर
गुनाहों की सज़ा मिलती है’, फिर क्यों प्रश्न जिन्दां पर ?
चुनावों में शरारत कर, सभी सीटों को’ जीता है
सिकंदर है वही जो जीता,’ क्यों आरोप गल्तां पर ?
वो’ मूसलधार बारिश, कड़कती धूप सूरज की
सभी मिलकर उजाड़े बाग़ को,…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 22, 2017 at 2:50pm — 2 Comments
काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार
बहर : १२१२ ११२२ १२१२ २२(१ )
कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार
जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |
हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे
नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |
सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन
अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |
कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात
हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |
गए विदेश को’ महबूब…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 10:00am — 8 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है
ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?
नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन
अगर पहन लिया’ वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |
हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले
नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |
किया करार बहुत आम से चुनावों में
वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?
हो’ वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी
उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 9, 2017 at 8:30am — 8 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२(१)/ ११२(१) ११२२
रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद
रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |
जीस्त में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद
मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |
हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ
जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |
रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन
अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |
साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2017 at 8:30am — 4 Comments
काफिया : आल ; रदीफ़ अच्छा है
बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२(११२)
११२२
दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा है
खुद करो भूल, अदू को सज़ा’ ख्याल अच्छा है |
नाम है रहनुमा’ क्या राह दिखाई किसी’ को
झूठ पर झूठ, तुम्हारा ये’ कमाल अच्छा है |
आज कोई नहीं’ सुनते किसी’ की दुनिया में
उत्तरी कोरिया’ का बम्ब धमाल अच्छा है |
चाँद में दाग है’, मालूम है’ दुनिया को भी
प्रियतमा मेरी' तो' बेदाग़ जमाल अच्छा है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2017 at 11:00am — 9 Comments
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