उस बापू की जरुरत हैं ,
आज हिंदुस्तान की चाह हैं ,
हमारी सोच को आंदोलित कर ,
नई राह दिखने के लिए ,
उस बापू की जरुरत हैं ,
उस बाबु की नहीं ,
जो स्वघोषित हो ,
उस बापू का भी नहीं ,
जो चमचो द्वारा बिकसित हो ,
जो मन पे राज करे ,
उस बाबु की जरुरत हैं ,
Added by Rash Bihari Ravi on November 6, 2010 at 6:30pm —
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आज का दौर बड़ा कठिन हो गया है। जब भी कोई भ्रष्टाचार करना हो या फिर कोई अपराध करना हो तो पहुंचे हुए होना बहुत जरूरी है। ऐसा काम कोई विशेष व्यक्ति ही कर सकता है, ऐसे महत्वपूर्ण काम करने की हम जैसे कायरों की हिम्मत कहां। बीते कुछ समय से पहुंच की महिमा बढ़ गई है, तभी तो जब भी किसी बड़े पदों पर किसी को काबिज होना होता है तो वहां उसकी योग्यता कम काम आती है, बल्कि पहुंच का पूरा जलवा होता है। पहुंच वाले का भला कोई बाल-बांका कैसे कर सकता है। हम तो अदने से और तुच्छ प्राणी हैं, जो पहुंच जैसी बात सोचकर खुश हो…
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Added by rajkumar sahu on November 6, 2010 at 3:08pm —
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नव गीत
संजीव 'सलिल'
मौन देखकर
यह मत समझो,
मुंह में नहीं जुबान...
शांति-शिष्ट,
चिर नवीनता,
जीवन की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल
मचल रहे अरमान.
श्याम-श्वेत लख,
यह मत समझो
रंगों से अनजान...
ऊपर-नीचे
हैं हम लेकिन
ऊँच-नीच से दूर.
दूर गगन पर
नजर गड़ाये
आशा से भरपूर.
मुस्कानों से
कर न सकोगे
पीड़ा का अनुमान...
ले-दे बढ़ते,
ऊपर चढ़ते,
पा लेते हैं…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:38pm —
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विश्वास
ढके शब्दों में नंगे हमाम पर लिखेंगे ,
समय थम कर पढ़ेगा इतना प्राणवान लिखेंगे,
हमने जब ठाना तो तस्वीर का रुख बदलकर माना,
हम सोच का एक स्रोत है, जब भी निकले अपनी जगह बना के माना
कुछ इतना खास कर गुजरेंगे ,
जब सचे-सच्चे अहसास शब्दों में ढालेंगे ,
हम वो जड़ है, जब चाहा तभी जड़ हुए ,जब चाहा जड़ कर दिया
बंद शब्दों में खुले आसमान पर लिखेंगे.
अलका तिवारी
Added by alka tiwari on November 4, 2010 at 2:01pm —
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बोधकथा
''भाव ही भगवान है''.
संजीव 'सलिल'
*
एक वृद्ध के मन में अंतिम समय में नर्मदा-स्नान की चाह हुई. लोगों ने बता दिया की नर्मदा जी अमुक दिशा में कोसों दूर बहती हैं, तुम नहीं जा पाओगी. वृद्धा न मानी... भगवान् का नाम लेकर चल पड़ी...कई दिनों के बाद उसे एक नदी... उसने 'नरमदा तो ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गै मतारे औ' बाप रे' गाते हुए परम संतोष से डुबकी लगाई. कुछ दिन बाद साधुओं का एक दल आया... शिष्यों ने वृद्धा की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि यह तो नाला है. नर्मदा जी तो…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:29am —
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बढ़ते तापमान और दिनों-दिन घटते जल स्तर से भले ही सरकार चिंतित न हो, मगर मुझ जैसे गरीब को जरूर चिंता में डाल दिया है। सरकार के बड़े-बड़े नुमाइंदें के लिए मिनरल वाटर है और कमरों में ठंडकता के लिए एयरकंडीषनर की सुविधा। ऐसे में उन जैसों के माथे पर पसीने की बूंद की क्या जरूरत है, इसके लिए गरीबों को कोटा जो मिला हुआ है। पसीने बहाने की जवाबदारी गरीबों के पास है, क्योंकि यही तो हैं, जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं होते या फिर उन जैसे नुमाइंदों को फिक्र नहीं होती कि खुद की तरह तो नहीं, पर इतना जरूर सुविधा दे दे,…
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Added by rajkumar sahu on November 3, 2010 at 8:21pm —
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मेरे दरवाजे पे दस्तक हुई,
मैंने अन्दर से ही पूछा,
आप कौन हो,
उत्तर मिला,
सुख समृद्धि,
झट से दरवाजा खोला,
अन्दर आइये उनसे बोला,
उनका जबाब था,
मैं हमेशा से उनके साथ रहता हूँ,
जो प्यार से मिल कर रहते हैं,
जहा भी मेल मिलाप रहेगा,
वहाँ मैं दस्तक देता रहूँगा,
एक दिन घर में हो गया,
अपनों में झगड़ा,
बिना मतलब का,
बाते बढ़ी,
कोई भी किसी काम में,
विचार लेना देना छोड़ दिया,
घर को विपत्ति के रूप में,
कलह जकड़…
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Added by Rash Bihari Ravi on November 3, 2010 at 12:30pm —
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ग़ज़ल
आग नहीं कुछ पानी भी दो
परियों की कहानी भी दो |
छोटे होते रिश्ते नाते
मुझको आजी नानी भी दो |
दूह रहे हो सांझ-सवेरे
गाय को भूसा सानी भी दो |
कंकड पत्थर से जलती है
धरा को चूनर धानी भी दो |
रोजी रोटी की दो शिक्षा
पर कबिरा की बानी भी दो |
हाट में बिकता प्रेम दिया है
एक मीरा दीवानी भी दो |
जाति धर्म का बंधन छोडो
कुछ रिश्ते इंसानी…
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Added by Abhinav Arun on November 3, 2010 at 10:00am —
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गुँजन करता एक भँवरा,जब फूल के पास आया
देख कली की सुन्दरता को मन ही मन मुस्काया ,,
खिली कली को देखकर ,मन ही मन शरमाया
रहा नहीं काबू जब मन पर ,तो एसा फ़रमाया ,,
अरे कली तू बहुत ही सुन्दर ,क्या करूँ तेरा गुणगान
तेरे लिए तो लोग मरते हैं , तू है बड़ी महान, ,
देख तरी सुन्दरता को मन पे रहा न काबू है
दुनिया का मन मोह ले तू ,तुझमे तो वो जादू है ,,
तेरी एक झलक पाने को मैं जीता और मरता हूँ
तेरे न मिलने पे तो मैं, दिन रात आहें भरता हूँ
महक से तेरी महके…
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Added by Ajay Singh on November 3, 2010 at 12:00am —
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दीपावली का पर्वोत्सव प्रारंभ हो गया है.....अंधकार पर प्रकाश की विजय....असत्य पर सत्य की विजय और मर्यादित जीवन की अमर्यादित जीवन पर विजय के इस पावन पर्व पर आप सभी का अभिनन्दन एवं शुभकामनाए.....सत्य कभी पराजित नही हो सकता और असत्य कभी सम्मानित नही हो सकता...मूल्यों का कभी अवमूल्यन नही हो सकता और नारी-शक्ति कभी अपमानित नही हो सकती......
Added by Priyanath Pathak on November 2, 2010 at 11:10pm —
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सन्नाटे की साँय-साँय
झींगुर की झाँय-झाँय
सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट
दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट
हरेक मानो मौत की डगर पर...
चलने को अग्रसर...
पपडाए होंठ सूखा हलक
ज़िन्दगी नहीं दूर तलक
चाँद की रौशनी भी
हो चली मद्धम जहाँ..
ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,
हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर
ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..
ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..
एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..
जेब को अपनी…
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Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 11:00pm —
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एक बार सब अपने रूठ गये मुझसे
पर क्यों थे रूठे यह पता नही
क़दमों में ला के रख दीं सब नैंमतें उनके
पर उनके दिलों में नफरत वही रही
कोशिश की उनके दिलों में वसने की
मगर उनकी सोच तो वही रही
कशिश की लाख मानाने क़ी मैंने उनको
पर उन पर इसका कोई असर नही
उनके लिए मांगी थीं लाखों दुआएं
पर उनको शायद यह खबर ही नही
दिल खोलकर भी रख देता सामने उनके
पर शायद वो पत्थर दिल पिघलते नही
न जाने वो सब क्यों शक करते हैं मुझपे
अब तक मुझे इस नाइंसाफी की खबर…
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Added by Ajay Singh on November 2, 2010 at 3:30pm —
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कल मर गया
किशनु का बूढा बैल,
अब क्या होगा...
कैसे होगा...
चिंतातुर,सोचता-विचारता
मन ही मन बिसूरता
थाली में पड़ी रोटी
टुकड़ों में तोड़ता
सोचता,,,बस सोचता...
बोहनी है सिर पर,
हल पर
गडाए नज़र,
एक ही बैल बचा...
हे प्रभु,
ये कैसी सज़ा...!!!
स्वयं को बैल के
रिक्तस्थान पे देखता..
मन-ही-मन देता तसल्ली
खुद से ही कहता,
मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा...
बैल ही तो हूँ मै,
जीवन भर ढोया बोझ,
इस हल का भी…
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Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 2:00pm —
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सरकार के काम करने के अपने तौर-तरीके होते हैं और वह जैसा चाहती है, वैसा काम कर सकती है। भला आम जनता की इतनी हिम्मत कहां कि उन्हें रोक सके। सरकारी कामकाज में सरकार और उनके मंत्रियों की मनमानी तो जनता वैसे भी एक अरसे से बर्दाष्त करती आ रही है। जनता तो बेचारी बनकर बैठी रहती है और सरकार भी हर तरह से उनकी आंखों में धूल झोंकने से बाज नहीं आती। विकास के नाम पर सरकार के सरकारी पुलाव तो जनता पचा जाती है, मगर जब सुुरक्षा की बात आती है तो फिर जनता के पास रास्ते नहीं बचते। वैसे तो सरकार का दायित्व बनता है…
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Added by rajkumar sahu on November 2, 2010 at 11:37am —
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पांच छत्तीस थे...घडी में जब...
शाम की धूप वेंटिलेटर से सरकी थी,
दूर तक साये चले आये थे... बीते मौसम को छोड़ने के लिए....
दर्द बहने लगा था पलकों से,
तुमने आँखों से उतारी थी...आंसुओं की नज़र..
ठंडी काफी में घुल गए थे जाने कितने पहर,
पांच छत्तीस हैं घडी में अब,
शाम की धूप वेंटिलेटर से सरकी है,
वक़्त गुज़रा है मगर,अब तलक नहीं बीता
Added by Sudhir Sharma on November 2, 2010 at 9:03am —
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मैंने स्वीकार तो कर ली है हार
किन्तु मैं कभी हारा नहीं हूँ
मेरी अपने ही दृष्टि में सही
मैं पूर्वाग्रहों में घिरा नहीं हूँ
मेरी हार में भी विजय हुई है
मैं इस मर्म को बिसरा नहीं हूँ
तुमसे तर्क वितर्क नहीं करता
किन्तु मैं कोई बेचारा नहीं हूँ
मैं हँसता भी संजीदा ही हूँ
किसी गम का मारा नहीं हूँ
मेरे जीवन में बहुत सुख है
दर्द का तलाशता सहारा नहीं हूँ
Added by Udaya Shankar Pant on November 1, 2010 at 9:57pm —
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ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के नये सदस्यों को दिक्कत हो रही है कि "OBO लाइव महा इवेंट" मे अपनी रचना कैसे पोस्ट करे ?
मैं कुछ स्क्रीन शाट के सहयोग से बताना चाहूँगा ...................
१- सबसे पहले मुख्य पृष्ठ से फोरम से "OBO लाइव महा इवेंट" को क्लिक करे ........
२- जो बॉक्स खुला उसमे अपनी रचना लिख पोस्ट करे
३- यदि किसी की रचना के ऊपर टिप्पणी देनी हो तो नीचे दिये स्क्रीन शाट को देखे ...…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2010 at 5:58pm —
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मिटा सके जो
अन्तस का अंधेरा
रौशनी कहाँ
सागर में भी
गहराइयाँ कहाँ
डुबा सके जो
पैसा ही पैसा
पर नहीं है कहीं
मन का सुख
खुश हो सकें
सबकी खुशी पर
वो खुशी कहाँ
Added by Neelam Upadhyaya on November 1, 2010 at 1:55pm —
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आपको हँसना हसाना चाहिए
pyar का vaada निभाना चाहिए
कब तलक मैं ही निभाऊं रस्म-ए-इश्क़
आपको भी कुछ निभाना चाहिए
याद तो आएगी पल भर को मगर
भूलने को इक ज़माना चाहिए
खुद सर-ए-आईना हों वो एक दिन
खुद को भी तो आज़माना चाहिए
बोया जो है काटना होगा बही
सोच कर ही कुछ उगाना चाहिए
सारी फसलें खुद रखो कि))सान जी
चिड़िया को बस एक दाना चाहिए
मंदिर-ओ-मस्जिद ना जाओ हर्ज़ क्या
मैकदे हर शाम जाना चाहिए
फिर…
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Added by vikas rana janumanu 'fikr' on November 1, 2010 at 11:30am —
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गीत:
आँसू और ओस
संजीव 'सलिल'
*
हम आँसू हैं,
ओस बूँद मत कहिये हमको...
*
वे पल भर में उड़ जाते हैं,
हम जीवन भर साथ रहेंगे,
हाथ न आते कभी-कहीं वे,
हम सुख-दुःख की कथा कहेंगे.
छिपा न पोछें हमको नाहक
श्वास-आस सम सहिये हमको ...
*
वे उगते सूरज के साथी,
हम हैं यादों के बाराती,
अमल विमल निस्पृह वे लेकिन
दर्द-पीर के हमीं संगाती.
अपनेपन को अब न छिपायें,
कभी कहें: 'अब बहिये' हमको...
*
ऊँच-नीच…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 1, 2010 at 9:25am —
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