काफिया ;इल ; रदीफ़ : में है
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाने दिल में’ है
किन्तु का ज़िक्र दिल से दूगुना महफ़िल में’ है |१|
जानती है वह कि गलती की सही व्याख्या कहाँ
पंख बिन भरती उड़ाने, भूल इस गाफिल में’ है |२|
राम रब कृष्ण और गुरु अल्लाह सब तो एक हैं
बोलकर नेता खुदा पर, पड़ गए मुश्किल में है |३|
गर सफलता चाहिए तुमको करो दृढ मन अभी
जज़्बा’ विद्यार्थी में’ हो वैसा…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 26, 2017 at 9:00am — 7 Comments
काफिया : आन ,रदीफ़ : है
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है
सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |
अदभूत जीव जानवरों का जहान है
नीचे धरा, समीर परे आसमान है |
संसार में तमाम चलन है ते’री वजह
हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |
जो भी जमा किये यहाँ’ रह…
Added by Kalipad Prasad Mandal on November 20, 2017 at 3:37pm — 9 Comments
काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है
इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |
सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी
अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |
खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ
चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |
लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और
सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 7:30am — 8 Comments
काफिया :अर ; रदीफ़ : कहे बगैर
बह्र :२२१ २१२१ १२२१ २१२ (१)
ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बग़ैर
आता सदा वही बुरा’ अवसर कहे बग़ैर |
बलमा नहीं गया कभी’ बाहर कहे बग़ैर
आता कभी नहीं यहाँ’, जाकर कहे बग़ैर |
है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक
दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर |
दुर्बल के क़र्ज़ मुक्ति सभी होनी चाहिए
क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |
सब धर्म पालते मे’रे’ साजन, मगर…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 9, 2017 at 9:30pm — 10 Comments
काफिया : आला . रदीफ़ : है
बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२
हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है
रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |
छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है
ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||
आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर
धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |
सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता
अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |
राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब
वो…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 6, 2017 at 7:30am — 2 Comments
काफिया आम, रदीफ़ : बहुत है
बह्र : २२१ १२२१ १२२१ १२२ (१)
अकसीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है
बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है |
वादा किया’ देंगे सभी’ को घर, नहीं’ आशा
टूटी है’ कुटी पर मुझे’ आराम बहुत है |
प्रासाद विशाल और सुभीता सभी’ भरपूर
इंसान हैं’ दागी सभी’, बदनाम बहुत हैं |
है राजनयिक दंड से’ ऊपर, यही’ अभिमान
शासन करे स्वीकार, कि इलज़ाम बहुत है |
साकी की’ इनायत क्या’ कहे,दिल का…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 2, 2017 at 8:24am — 2 Comments
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