For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – November 2015 Archive (13)

धर्म-कर्म उत्क्रम (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (38)

"अब तो संतुष्ट हो न ! जी भर गया हो तो चलूं मैं ? लेकिन मैं ख़ुद नहीं जा सकती न, तुम ही मुझे छोड़ने चलो, तुम ही छोड़ोगे मुझे ! " - उसने झकझोरते हुए कहा।



"अभी नहीं, कुछ दिन और रुको , मुझे मालूम है कि एक दिन तुम्हें जाना ही है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी रवानगी से दीवानगी में इजाफा ही हो, मेरी ही नहीं, सभी की ! अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है !"



"नहीं बहुत हो गया । कितने एंगल से देखोगे मुझे ? तीन सौ साठ डिग्री हो चुका न , ढल चुकी हूँ मैं, संवर चुकी हूँ मैं ! अब मुझे आज़ाद… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 27, 2015 at 8:21am — 12 Comments

बेचारा सर्वहारा (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (37)

विजय उत्सव अपने चरम पर था। शहर के कुछ नामी नेता और मिल मज़दूरों में से दो अगुआ मज़दूरों के साथ बड़े कर्मचारी मिल मालिकों को बधाई दे रहे थे मज़दूरों के वापस काम पर लौटने पर।



"आपने पहले ही इशारा कर दिया होता, तो हम तो ये हड़ताल पांच-छह दिन में ही बंद करवा देते ! चारों अगुआ मज़दूरों को जेल भिजवाने में इतनी देरी हम होने ही नहीं देते ! " -एक नेता ने कहा।



"वो रूपकिशोर है न, वही उनकी ताक़त था, उसकी वो हालत करवा दी कि बीस दिनों से अस्पताल में भर्ती है"- एक दबंग ने मिल मालिक की तरफ… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2015 at 4:16am — 5 Comments

छोटी सी इबादत (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (36)

भीड़-भाड़ वाली सड़क पर पड़े केले के छिलके पर हमीद का पैर पड़ने ही वाला था कि उसने खुद को संभाल लिया और तुरंत उसे उठा कर हाथ में ले लिया। शबाना शौहर से बिना कुछ कहे बुरा सा मुँह बनाकर आगे चलती रही। अब्बूजान भी चुपचाप चलते रहे। कुछ दूर चलने पर जब एक गाय दिखाई दी, तो हमीद ने उसके नज़दीक जाकर अपने हाथ से उसे वह केले का छिलका खिला दिया। बाक़ी दोनों यथावत चलते रहे गन्तव्य की ओर । कुछ और दूर चलने पर एक बड़ा सा पत्थर बीच सड़क पर दिखा जिसे फांदते हुए राहगीर निकलते जा रहे थे जिन में कुछ बच्चे व बुज़ुर्ग… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2015 at 1:19am — 5 Comments

" आत्मघात " - [ लघुकथा ] _शेख़ शहज़ाद उस्मानी (35)

एक तरफ मुहब्बत, दूसरी तरफ ममता और दोनों ही तरफ़ सिर्फ उसके फर्ज़ । उलझे हुए रास्ते इस वक़्त सुधीर को बिछी हुई रेल की पटरियों की तरह लग रहे थे। वह करे भी तो क्या। उसके दिमाग़ में अपने और परायों की टिप्पणियाँ बिज़ली के प्रवाह की तरह उसे झकझोर रहीं थीं।



"माँ बीमार रहती है, बहू आ जायेगी तो एक सहारा हो जायेगा "



" ट्यूशन की कमाई से घर-गृहस्थी चलायेगा क्या ?"



"मुहब्बत तो कर ली, प्रेमिका जब बीवी बनेगी तब समझ में आयेंगे आटे-दाल के भाव और बीवी के ताव"



"अरे, उस… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 21, 2015 at 9:27am — 9 Comments

" सहिष्णुता-असहिष्णुता " - [ लघुकथा ] - 34 _शेख़ शहज़ाद उस्मानी

सर्दी क्या बढ़ी, उनकी 'सहिष्णुता' पर फिर चर्चा होने लगी। सहिष्णुता तो गर्मी और बारिश के मौसम वाले हालात की तरह अपना नियंत्रण खो रही थी। हीटर ने पंखे की सहिष्णुता की बात करते हुए कहा- "अब कर ले तू आराम, लो आ गई अब मेरी बारी ! अब मुझे ही जलना है सुबहो-शाम , रसोई के अलावा कई कमरों में अब मेरा ही है काम !"



पंखे ने अपने चक्कर यथावत जारी रखते हुए कहा- " क्यों मज़ाक करते हो, अनजाने से बनते हो ! मच्छर भगाने, धुले कपड़े सुखाने सर्दियों में मेरा है भारी काम, तुम्हें नहीं मालूम मीटर होता कितना… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 18, 2015 at 3:55am — 9 Comments

" श्रद्धा और अक़ीदत " - [ लघुकथा ] 32 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

जब नदीम उसके साथ चिंताहरण मंदिर में चल रही योगासन कक्षा में शामिल हो सकता है, तो वह उसके साथ मस्जिद में नमाज़ क्यों नहीं अदा कर सकता ? उसकी फ़रमाइश को नदीम हमेशा टाल देता है। मस्जिद न सही आज ईद के दिन सड़क पर तो नमाज़ में शामिल हो सकता है वह ! कौन समझ पायेगा ? वह भी तो महसूस करना चाहता है कि कैसा लगता है नमाज़ अदा करने में ! ये सब सोचकर नीली पोषाक पहने हुए विनोद अपने धार्मिक झाँकी वाले जुलूस में से निकल कर सड़क पर लगी जमात में नदीम को बग़ैेर बताये ठीक उसी के पीछे बैठ गया। ईद की नमाज़ का वक़्त हो… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 13, 2015 at 8:00am — 11 Comments

"खोटा साजन" - [लघुकथा] 31 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"खोटा साजन" - (लघुकथा)



"ठीक है कि तुम माँ-बाप पर बोझ नहीं हो, प्राइवेट स्कूल से कुछ कमा लेती हो, लेकिन अब तुम्हें पति के साथ ही रहना चाहिए।" - विनीता ने अपनी खास सहेली शाहीन को समझाते हुये कहा।



बड़े सपने देखने वाली शाहीन इस रिश्ते से ऊब चुकी थी। नम आँखों के साथ उसने कहा - "मुझे क्या पता था कि कोई पोस्ट-ग्रेजुएट आदमी भी साइकिल छाप निकलेगा।मैं इस रिश्ते के लिए सिर्फ इसलिए राजी हुई थी कि उन में क़ाबीलियत देखी सबने। सोचा सरकारी नौकरी लग ही जायेगी । लेकिन वे तो राजा हरीश्चंद्र… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2015 at 11:08am — 9 Comments

"मीडिया से आइडिया" - [लघुकथा] 30 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मीडिया से आइडिया" - (लघुकथा)



हालाँकि गुड्डन के तीनों बच्चे बहुत समझदार थे। काफी पहले से ही सब कुछ समझ रहे थे। कुछ ही दिनों में गुड्डन को फाँसी की सजा होने वाली थी। अम्मीजान के तो बुरे हाल हो रहे थे रो-रो कर। दादी माँ ने ही बच्चों को दिलासा देने के लिए उनसे कहा - " अच्छा-अच्छा सोचो, तो ग़म नहीं होगा। मुल्क के तमाम मशहूर लोगों की तरह तुम्हारे अब्बू मशहूर रहे हैं भले वो डकैती की दुनिया रही हो या दहशतग़र्दी की ! अखबारों में नाम छपता रहा है उनका। आज भी तो देखो , महान लोगों की तरह दुनिया… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2015 at 6:20pm — 10 Comments

"मिठाई का डिब्बा" - [लघुकथा] 29 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मिठाई का डिब्बा" -(लघुकथा)



"अरे सुनो, दीपावली पूजा का थोड़ा सा प्रसाद उसको भी तो दो "



"क्यों दें उसको ? साला न मीठी ईद पर बुलाता है घर पर, न कभी बकरीद पे गोश्त खिलवाता है काइयां, मनघुन्ना !"



"दे दो यार, भला आदमी है, ड्यूटी पे कभी टिफिन नहीं लाता, गंभीर होकर ड्यूटी करता है, और सभी धर्मों का आदर भी तो करता है !"



" तो ऐसा करते हैं कि ये वाला प्रसाद तू रख ले और जो प्रसाद अभी चपरासी ने अपन को दिया है, वो उसको दे देते हैं, साला याद रखेगा अगली ईद तक… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2015 at 1:10pm — 7 Comments

"कुछ पलों का चाँद" - (लघुकथा) 28 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"कुछ पलों का चाँद" - ---(लघुकथा)



"अब रोने से क्या फायदा ? पहले सेे पैसों का इन्तज़ाम रखना था, और डाक्टरनी को पहले से ही कुछ एक हज़ार एडवांस दे देते, कम से कम सही टाइम पर ओपरेशन तो हो जाता !"



"पैसों का अच्छा इन्तज़ाम ही हो जाता, तो सरकारी की बजाय तुम्हें प्राइवेट अस्पताल में ही वक़्त से पहले ही भर्ती न करवा देता ! " जमीला की बात का जवाब देते हुए उसके शौहर नासिर ने कहा। -"मैंने कहा था न कि बिटिया ही होगी ! कितनी ख़ूबसूरत बिटिया दी थी अल्लाह मियाँ ने। तुम्हारे पास ही लिटाया था… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2015 at 6:27am — 8 Comments

"नूर के उत्सव" - [लघुकथा] 27 - शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"नूर के उत्सव" - (लघुकथा)



"स्कूल में टोफी बांटेगा बर्थ-डे पर ! खिलौने चाहिए ! दीवाली पर पटाखे फोड़ेगा, काफिर ! ज़रा कमा के तो दिखा ! "- यही तो कहा था अब्बू ने। सचमुच कितना कठिन है पैसा कमाना, दो -तीन घंटे हो गये, दो दोस्तों के अलावा किसी ने दीपक नहीं ख़रीदे । हम मुसलमान हैं, तो क्या कोई हम से दिये नहीं ख़रीदेगा ? ये दीपक हिन्दू हैं क्या ? सड़क पर पेड़ के नीचे अपनी दियों की दुकान पर बैठे नूर को निराशा घेर रही थी। क्या उसकी गुल्लक के पैसों से ख़रीदवाये गये ये दीपक पूरे बिक पाएँगे ?… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2015 at 9:53pm — 10 Comments

"विधि-विधान व्यवधान" - [लघुकथा] 26 - शेख़ शहज़ाद उस्मानी

दोनों की अपनी अपनी व्यस्त दिनचर्या। बच्चों को सुबह स्कूल बस स्टॉप पर छोड़ने के बाद थोड़ी सी चहलक़दमी से थोड़ा सा साथ, थोड़ा सा वार्तालाप, शायद रिश्तों में छायी बोरियत दूर कर दे।



"तुम्हें जानकर शायद ख़ुशी हो कि फेसबुक और साहित्यिक वेबसाइट में कुल मिलाकर सत्तर लघु कथाएँ, दो ग़ज़लें, दो गीत, कुछ छंद..... मेरा मतलब तकरीबन हर विधा में विधि-विधान के साथ मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।" - लेखक ज़हीर 'अनजान' ने बीच रास्ते में अपनी बीवी साहिबा से कहा। लेकिन सब अनसुना करते उन्होंने एक…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 4, 2015 at 8:30am — 11 Comments

"शह और शिकस्त" - [लघुकथा] 25 (शतरंज संदर्भित) - शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"शह और शिकस्त" - (लघुकथा)



दोनों अलमारी में बहुत ही गोपनीय तरीके से रखे गए थे कई आवरणों से लपेट कर पैकेटों में। काले धन का पैकेट और कंडोम का पैकेट।



"आख़िर तुम गलकर सड़ ही गये न ! उत्पत्ति को रोकने के लिए किसने किया तुम्हारा उपयोग "- काले धन ने कहा।



"सच कहते हो" - कंडोम का पैकेट बोला - " जब तुम्हारी व्यवस्था करने में ही पुरुष दिन-रात एक करेगा, तो दाम्पत्य कर्तव्य वह कैसे निभायेगा , और निभायेगा भी तो उतावलेपन में मेरा इस्तेमाल करेगा कौन,भले उत्पत्ति होती रहे, कष्ट… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 5:09pm — 1 Comment

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service