कभी निकटता रिश्तों में ,
ज्यों सागर की गहराई !
कभी दूरियाँ अपनों में,
ज्यों अम्बर की ऊँचाई !
कभी सहजता चुप्पी में,
कभी जटिलता बोली में !
कभी बर्फ मैं ज्वाला किंतु,
आंच नहीं अब होली मैं !
कहीं मोहब्बत की म्यानों में,
रखी बैर की शमशीरें !
कहीं इबारत उलटी यारों ,
जहाँ लिखी हैं तक़दीरें !
कहीं सत्य एक झंझट,
कही झूठ है सुलझा !
कहीं किसी ने जाल बिछाया
खुद ही आकर उलझा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
और भाई, इस बार तो तूने पूरी राम लीला देख ली क्या सीखा ?
भईया, रामचरितमानस की कथा के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की पिता का कहना नहीं मानना चाहिए, इससे बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:55pm — 9 Comments
तू प्यार की राहों में चलना
बस प्यार ही जिंदगी होवे
तू यार तो सच्चा न हो
पर प्यार तो सच्चा होवे,-2
तू देख के लगे फकीरा
पर दिल का फ़कीर न होवे,
तू यार तो सच्चा न हो
पर प्यार तो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 10:00pm — 14 Comments
वसुंधरा की त्रासदी,
कारण था पतझार !
वसन्त आगमन हुआ,
उपवन में आया निखार !!
प्रफुल्लित हुई नव कोपल,
पल्लव मुस्करा रहे !
सतरंगी सुमनों पर,
भ्रमर हैं मंडरा रहे !!
प्रकृति की सात्विक सुन्दरता,
अपनी प्रकृति मैं उतार लें !
आस्था, विश्वास के सूखे,
पल्लव को फिर संवार लें !!
संस्कारों की पौध लगा,
धरा को निखार लें !
प्रकृति के सन्देश को,
जन-जन स्वीकार लें…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 4:30am — 10 Comments
कल से तुम नहीं
तुम्हारी यादें आएँगी
गिरेगी बूंदें आँखों से
समुन्दर बन जायेंगी
रो- रो कर मैं भी
समुन्दर भर दूंगा
पर तुम्हे मन की बात कहूँगा
जब नए शब्द बुन लूँगा !!
तुम साधारण नहीं
साधारण शब्द तुम्हारे नहीं
तुम्हे प्यार करता हूँ
इन अर्थहीन शब्दों को,
तुमसे कभी नहीं कहूँगा
नयी उपमायें गढ़ लूँगा
पर तुम्हे मन की बात कहूँगा,
जब नए शब्द बुन लूँगा !!
तुमसे बात नहीं…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 11:00am — 5 Comments
मैं सूर्य के
गर्भ में पला हूँ
मैं अपने ही
अंतर्द्वंदों की आग में
तिल -तिल जला हूँ
अनगिनत दी हैं
अग्नि परीक्षायें
और उन क्रूर परीक्षाओं में
हरदम खरा उतरा हूँ
आसमां से मैं
धरती पर गिरा हूँ
अपने आप से ही
मैं निरंतर लड़ा हूँ
मैंने प्रसन्नचित्
मर्मान्तक पीड़ा के
पहाड़ को झेला है
हसं हसं कर
आग से खेला है
तपस्वी सा तपा हूँ
नहाया हूँ डूबकर
समुद्र…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 4:30am — 12 Comments
भरी हुई मधुशालायें सारी
पीकर सारे मस्त पड़ें हैं ,
मदिरालय पर लोगों का जमघट
अब मंदिर पर बंध जड़ें हैं ,
मिटे दुःख दर्द गरीबी सारी
आया नव वर्ष उल्लास है ,
सुन्दर गति,सुन्दर मति सारी
अन्धकार…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:32pm — 15 Comments
कली तुझसे पूछूँ एक बात,
की जब होती है आधी रात,
कौन भवंरा बनके चुपचाप,
तेरी गलियों में आता है !!
कली से काहे पूछे बात,
की जब होती है आधी रात,
मैं महकती रहती हूँ चुपचाप,
बिचारा खिंच-खिंच आता है !!
कभी करता है मिलन की बात ,
सह काटों के आघात वो आधी रात,
नैन से नैन मिला कर चुपचाप,
वो भवंरा खुद शरमा जाता है !!
सखी क्या कह दूँ दिल की बात ,
की अब तो ढलती जाए रात,
नैनों के…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 19, 2014 at 12:00am — 6 Comments
महा-खुदा की अदालत में
खुदा आज रो रहा है
लाख मनाने पर भी वो
चुप नहीं हो रहा है !!
कभी जाता है, सदमें में
कभी जोर से चिल्लाता है
अपनी, अपनों की हत्या में
मैं शामिल हूँ, दुहराता है !!
अव्यक्त था चिर निद्रा में
व्यक्त हुआ ब्रम्हांड रचा है
शुन्य से हुआ अनंत में
सृष्टी का निर्माण किया है !!
अभिव्यक्त हुआ कण-कण में
मनुष्य का निर्माण किया है
इतने सुन्दर गुण डाले…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 2:00am — 11 Comments
जब भी कलम उठाता हूँ
तुम्हे यादों में पाता हूँ
शब्द नहीं मिलते लिखने को
तेरा चित्र बनाता जाता हूँ !!
कितना कुछ है कहने को
जड़ जुबान हो जाता हूँ
अंतर्मन व्याकुल हो जाता है
उलझन में फंस जाता हूँ !!
मैं दबा कुंठित स्वर को
कागज़ की लाशों पर, बस
अक्षर के फूल सजाता हूँ
फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!
कैसे करूँ दिल की बाते
जब हुई चार दिन मुलाकातें
मैं कैसे करूँ तुम्हे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 17, 2014 at 2:00am — 9 Comments
तेरा दिया जन्म
मुझे स्वीकार नहीं
जन्म स्थान
मुझे स्वीकार नहीं
यह नाम
मुझे स्वीकार नहीं
स्वीकार नहीं मुझे
कर्म करना, और
भाग्य से बंध जाना
मुझे स्वीकार नहीं
स्वीकार नहीं मुझे
तेरे तथा-कतिथ दूतों के
नैतिकता-अनैतिकता के निर्देश
उनके छल भरे उपदेश
तेरे नाम पर रचे, उनके
षडयन्त्र भरे परिवेश
मैं विद्रोही तेरी माया का
आ ,मुझे नरसिंह बनकर
हिरण्यकश्यप की तरह मार दे
या…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
छुपा कर दिल में रक्खी थी
बचपन में बनी प्रेम कहानी थी
तुम्हारे जिस पर नाम लिखे थे
दीवार वो, बहुत पुरानी थी
पगली ,इश्क में तेरे दीवानी थी
तूने फ़ौज मैं जाने की ठानी थी
तुझे सेहरा बाँध के आना था
निकाह की रस्म निभानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी
तेरी लाश तिरगे में आनी थी
उठ गए थे खुनी खंज़र
जान तो जानी ही थी
अरे आसमां से तो पूछ लेता
खुदा गर तुझे ,बिजली…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 1, 2014 at 11:00pm — 25 Comments
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