धीरे से कहा जो तुमने,
वो मेरे मन ने सुन लिया।
तुम नहीं थे समीप मेरे,
फिर भी मैंने तुम्हें देख लिया।
अधरों पर थी बात ही और,
जिसका अर्थ हृदय ने समझ लिया।
तुम भूले नहीं थे मुझे,फिर भी
तुमने भूलने का-सा अभिनय किया।
है निवास हृदय में मेरा ही,
किन्तु कुछ और ही दिखला दिया।
सोचा करते हो केवल मुझे,
पर काम कुछ और बता दिया।
कहते हो कि कुछ भी नहीं,
पर अधिकार अपना जता दिया।
मेरी समीपता से ही होते हो
विचलित,स्वभाव इसे…
Added by Savitri Rathore on May 23, 2015 at 7:30pm — 3 Comments
आज मन के भाव को,
प्रेम का शुभ संचार दो।
आज हृदय की पीर को,
आत्मा में विस्तार दो।।
मैं तुम्हारे गीत गाती
ही रहूँगी जन्म भर।
तुम्हारे प्रेम-दीवानी हो,
ये कहूँगी मृत्यु तक।।
मुझे विरह में लीन रखो,
तुम चाहे तो आजीवन।
दो न अपने दर्शन मुझे,
तुम चाहे तो आमरण।।
सुनो,मैं तुम्हारी प्रेयसी,
औ मैं ही तुम्हारी प्रेरणा।
चैन कब आएगा तुमको,
इस जन्म में मेरे बिना।।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Added by Savitri Rathore on June 24, 2014 at 5:24pm — 9 Comments
तू मेरी मोहब्बत है,तू मेरी इबादत है।
कैसे मैं तुझसे कहूँ,मुझे तेरी ज़रुरत है।
हरदम मैं लूँ नाम तेरा,चाहे शाम हो या सवेरा,
ये तुझको भी है मालूम, मुझे तेरी आदत है।
पाने को न कुछ पाया,जो तुझको नहीं पाया,
फिर चाहे जहाँ भर की,मेरे पास ये दौलत है।
ये साँस भी छिन जाये,जो पास न तू आये,
आकर आगोश में ले ले,बस इतनी हसरत है।
तुझसे ज़िंदगानी मेरी,तुझसे ही कहानी मेरी,
तेरे बिन जीना कैसा,कह दे,मरने की इज़ाज़त है।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक…
Added by Savitri Rathore on June 21, 2014 at 8:36pm — 6 Comments
तुझे अपनी ज़िंदगी में इस तरह शामिल कर लूँ मैं,
कि तू मेरे पास न भी हो तो तेरा दम भर लूँ मैं।।
हर घड़ी रहता है इन आँखों को इन्तज़ार तेरा,
जो तू आये तो तुझे अपनी आँखों में क़ैद कर लूँ मैं।
तेरे तसव्वुर में डूबी हैं तन्हाइयाँ और ज़िंदगी मेरी,
ग़र तुझे पा लूँ तो अपनी हर हसरत पूरी कर लूँ मैं।
तेरी बाँहों में आज पिघल जाने को जी चाहता है,
तेरे सीने से लगकर हमेशा को आँखें बंद कर लूँ मैं। …
Added by Savitri Rathore on May 5, 2014 at 4:26pm — 13 Comments
मेरा परिचय क्या है?
क्या एक मानवी का ?
अथवा किसी की दासी का,
क्या मेरा परिचय यही है?
कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
मैं बहुत कुछ होकर भी,
स्वयं में कुछ नहीं हूँ।
क्या पुरुष की सहचारिणी
होने के कारण,मैं अस्तित्वहीन हूँ?
क्या एक स्त्री होने के कारण,
मैं केवल अबला,असहाय हूँ?
क्या पत्नी होना कोई अभिशाप है,
जो स्त्री को पुरुष की दासी बना देता है,
अथवा पुरुष सर्वश्रेष्ठ है,
जो स्त्री और प्रकृति सबका
अधिकारी बन जाना चाहता है।
जो…
Added by Savitri Rathore on March 9, 2014 at 12:06am — 9 Comments
[वसंतपंचमी के पावन अवसर पर माँ सरस्वती के श्रीचरणों में श्रद्धा स्वरुप ये कविता-सुमन]
हे माँ सरस्वती!
तुमसे है मेरी विनती।
सदा करूँ तुम्हारी भक्ति,
यही वर दो भगवती।
हे माँ सरस्वती!
मेरे मनमंदिर में सदा
रहो, इसी तरह से माँ।
मुझे कभी छोड़ न देना,
किसी तरह से, हे माँ !
यही आशीष दो भगवती।
हे माँ सरस्वती !
सदा रखना मेरे मस्तक पर,
अपना हाथ,हे आदिशक्ति।
लीन रहूँ तुम्हारी साधना में,
करती रहूँ…
Added by Savitri Rathore on February 3, 2014 at 8:00pm — 19 Comments
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
माना बहुत दूर है किनारा मेरा,
पर उस तक मुझे पहुँचना है।
कुछ भूल रहा था मेरा हृदय,
कुछ ध्यान भटक गया था।
थी घोर निराशा मुझे घेरे हुए,
जिसमें जीवन अटक गया था।
तुमने मुझे आगे बढ़ाकर कहा,
नहीं,अभी तुम्हें ऐसे रूकना है।
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
मेरे टूटे हुए विश्वास को जगाया,
तुमने आशा से प्रकाशित किया।
दूर कर मेरे हृदय की निराशा…
Added by Savitri Rathore on January 15, 2014 at 8:47pm — 21 Comments
तुम विरह की पीड़ा हो,
या हो मिलन की मधुरता।
तुम प्रेम का उन्माद हो,
या हो हृदय की आकुलता।
तुम जीवन की गति हो,
या हो प्राणों का संचार।
तुम मात्र आकर्षण हो,
या हो मेरा पहला प्यार।
तुम मेरे जीवन की तपन हो,
या हो शीतल मंद बयार।
तुम इच्छाओं का सागर हो,
या प्रेम की उन्मुक्त फुहार।
हो तुम कहीं निशीथ तो नहीं,
या सचमुच 'सूर्य' मेरे जीवन के।
तुम सच में मेरी सम्पूर्णता हो,
या हो अपूर्ण स्वप्न मेरे मन के। …
Added by Savitri Rathore on November 28, 2013 at 9:33pm — 11 Comments
अब ये तन्हाइयाँ हमें डरातीं हैं,
अक्सर तुम्हारी याद दिलातीं हैं।
ये होंठ ख़ामोश रहते हैं अब तो
और आँखें बस आँसू बहातीं हैं।
तुम मुझसे इतने दूर हो गए क्यूँ
कि न ख़बरें तुम्हारी पास आतीं हैं।
यूँ तो कुछ भी नहीं रहा पहले-सा
जाने क्यूँ तुम्हारी यादें सतातीं हैं।
हर दिन बीतता है तेरे इंतज़ार में,
न तू और न हिचकियाँ ही आतीं हैं।
तुझे देखे हुए,सुने हुए अरसा बीता,
पर तेरी बातें मुझे अब भी रूलातीं हैं।
अपनी मुहब्बत का यकीं दिलाऊँ तुझे कैसे,
ये…
Added by Savitri Rathore on November 22, 2013 at 8:21pm — 5 Comments
काश ! कोई साथी होता।
एक अच्छा-सा साथी होता।।
खुशियों में जो साथ निभाता,
दुःख में भी नहीं घबराता।
घिरे होते दुःख में हम,
वो बाँटता हमारे ग़म।
दूर करता दर्द सारे,
आँसू पोंछता हमारे।
होता उसका हमें सहारा,
होता वो एक हमारा।
ऐसा एक साथी होता।
काश ! कोई साथी होता।
ज़िन्दगी की राहें सुनसान,
ख़तरों से हम अनजान।
जब रास्ता जाते भटक,
मुश्किलों में जाते अटक।
थाम लेता हाथ हमारा,
देता फिर हमें सहारा।
भटकने से हमें बचाता,
एक नयी राह…
Added by Savitri Rathore on October 6, 2013 at 11:38am — 22 Comments
हे विधि! क्यों आस पल में तूने तोड़ दी,
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक ममता की आस,कुछ स्वप्नों के छोर,
नवजीवन का संचार,एक श्वांसों की डोर।
हाय ! पल में तूने क्यों तोड़ दी?
हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,
एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।
आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
गर्भ धारण की समस्त पीड़ा,जो मैंने सही,
हृदय की वो वेदना,जो अंतरतम में…
Added by Savitri Rathore on September 19, 2013 at 8:15pm — 18 Comments
रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
जीवन है एक कठोर संग्राम,
इसे विजित कर आगे निकल तू।
क्या रखा है इस जगत में,
यह तो केवल छाया-माया है।
क्या रखा है इस जीवन में,
इसने तो केवल भरमाया है।
तेरा अपना कुछ भी नहीं है,
केवल भ्रम की एक छाया है।
जब छोड़कर जाना है सब,
तो क्यों तू इतना इतराया है।
जब झूठे हैं ये सारे बंधन,
क्यों इनमें स्वयं को रमाया है।
फिर तोड़ दे तू ये सारे बंधन,
इनके भ्रम से बाहर निकल तू।
रे मन ! दृढ़ता का बीज…
Added by Savitri Rathore on September 16, 2013 at 10:52pm — 22 Comments
आकाश में काली घटा छाई,
आज फिर तुम्हारी याद आई।
लगा तुमने जैसे मुझे छू लिया,
जब चली झूमकर ये पुरवाई।
मन्द -मन्द चली शीतल पवन,
मन में जल उठी विरह-अगन।
मन को शीतल करने के लिए
वर्षा में भिगोया मैंने अपना तन।
नन्हीं-नन्हीं -सी बूँदें,ये जल की,
और मेरे विरह की ये जलन बड़ी।
अब तो आकर मुझे लगा लो अंग,
बस यही सोच रही मैं खड़ी -खड़ी।
जाने कब साकार होगी ये कल्पना,
कब होगा पूरा मेरा सुन्दर सपना?
है जो मुझसे अभी तक पराया-सा,…
Added by Savitri Rathore on July 31, 2013 at 7:30pm — 2 Comments
ये दर्द कुछ ऐसा है,जो सबको बताया नहीं जाता।
ये ग़म कुछ ऐसा है,जो सबको सुनाया नहीं जाता।
ज़िन्दगी तेरा साथ अब तक बहुत निभाया हमने,
पर अब हमसे यह साथ और निभाया नहीं जाता।
हर ज़ख्म पर रोने की जगह हँसते रहे हम उम्र भर,
पर अब हमसे बेवजह और मुस्कराया नहीं जाता।
छोटी -छोटी खुशियाँ ही तो मांगीं थी तुझसे हमने,
पर दर्द मिला जो इस दिल में समाया नहीं जाता।
हर वक़्त सही नाउम्मीदी,नाकामी और बेबसी,
पर अब तुझसे अपना मज़ाक उड़वाया नहीं जाता।
सपने देखकर हमने भी…
Added by Savitri Rathore on July 10, 2013 at 1:06pm — 9 Comments
पुष्प से सुन्दर,कोमल हृदय में
लिए एक मधुर-सी- आकांक्षा।
सुन्दर होंगे क्षण प्रिय-मिलन के ,
सदा करती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा।
मेरे इस जीवन का एकमात्र
सुन्दर-मधुर स्वप्न हो तुम।
जिसे अब तक नहीं जानती मैं,
मेरे वो अज्ञात प्रियतम हो तुम।
तुम्हारे दर्शन को व्याकुल आत्मा।
सदा करती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा।
तुम स्वप्न हो मेरे जीवन का,
अनुपम आनंद देती ये कल्पना।
पर उस क्षण मैं जाती हूँ काँप,
जब पाती हूँ तुम्हें केवल सपना।
कैसे…
Added by Savitri Rathore on June 25, 2013 at 9:03pm — 10 Comments
उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा ने जहाँ एक ओर जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है,वहीं दूसरी और पूरे देश को हिला कर रख दिया है।यह विषम परिस्थिति हम सभी के धैर्य की परीक्षा है और परस्पर एक-दूसरे के सहयोग की,सहायता की आवश्यकता का ये परम अवसर है।यही समय मानवता रुपी धर्म के पालन का उचित समय है, परन्तु कुछ लोग इस समय मानवता को लज्जित कर रहे हैं।वे प्रकृति की मार से त्रस्त भूखे-प्यासे लोगों से ५ रूपये के बिस्किट के स्थान पर एक सौ रूपये,तीस-चालीस रुपये के दूध के स्थान पर दो सौ रुपये, किसी को अपने…
ContinueAdded by Savitri Rathore on June 20, 2013 at 9:21pm — 8 Comments
कुछ भी बनने से पहले
एक अच्छा इन्सान बनो।
कुछ भी करने से पहले,
दूसरों का सम्मान करो।
समझो दूसरों की भावनाएँ,
न उनका अपमान करो।
मत दो किसी को दुःख,
सबको प्रेम समान करो।
जो तोड़ दे किसी हृदय को,
ऐसी उपेक्षा,न अपमान करो।
यदि कोई गहराई से चाहे तुम्हें,
तो उस प्रेम का सदा मान रखो।
खेल कर किसी के भावों से,
उस प्रेम का न अपमान करो।
ठुकरा कर प्रेम किसी का,
न आहत आत्मसम्मान करो।
तुम्हारी उपेक्षा,आत्मग्लानि में
न…
Added by Savitri Rathore on June 8, 2013 at 12:20am — 15 Comments
माँ सचमुच माँ ही होती है,
उसके जैसी कोई और नहीं होती है।
वो हँसती है हमारे साथ ,
और हमारे साथ ही रोती है।
वो देती है तसल्ली दुःख में,
वो मुस्कराती है हमारे सुख में।
वो निराशा में नया सवेरा लाती है,
कष्ट में धीरज बंधाती है।
जब होता है कोई दुःख तो,
अक्सर माँ की याद आती है।
लगता है जैसे भाग कर,
उसके पास मैं चली जाऊँ।
और उसे अपने सारे दुखड़े,
अपने सारे दर्द कह सुनाऊँ।
जब आये कोई मुसीबत तो,मैं
उसकी गोद में सिमटकर छिप जाऊँ।
वो बचा ले…
Added by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:03pm — 4 Comments
रामनवमी के सुअवसर पर मुझे आगरा -मथुरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर यमुना किनारे स्थित सूरकुटी के नेत्रहीन विद्यालय के नेत्रहीनों के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।यह क्षेत्र सूर-सरोवर (कीठम-झील) के समीप हैऔर महाकवि सूरदास की कर्मस्थली गऊघाट पर अवस्थित है।यहीं सूर-श्याम मंदिर भी है,जहाँ सूरदास जी श्यामसुंदर की भक्ति में डूबे रहते थे।इसके समीप ही पाँच सौ वर्ष प्राचीन वह कुआँ भी है,जिसके विषय में यह किवदंती प्रचलित है कि एक बार जन्मांध सूरदास जी इस कूप में गिर गए थे,तब भगवान श्रीकृष्ण ने…
ContinueAdded by Savitri Rathore on April 23, 2013 at 1:57pm — 12 Comments
ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए।
अश्कों का दरिया बहता है तुम्हारे लिए।।
मैं जी नहीं पा रही हूँ तुमसे अलग होकर,
सीने में एक दर्द पिघलता है तुम्हारे लिए।।
जाने क्यों मैं आज भी ज़िंदा हूँ तुम्हारे बिन,
मैं आख़िर मर क्यों नहीं जाती तुम्हारे लिए।।
तू मेरी ज़िन्दगी,मेरी जान,मेरा सब कुछ है,
ये साँस आज भी चलती है सिर्फ़ तुम्हारे लिए।।
ताउम्र रहेगा तेरा इंतज़ार मुझको मेरे साथी,
मरकर भी ये आँखें खुली रहेंगी…
Added by Savitri Rathore on April 20, 2013 at 11:30pm — 10 Comments
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