कोई भी लगता नहीं अपना , तेरे जाने के बाद
हो गया ऐसा भी क्या , इक तेरे जाने के बाद १
ढूँढता रहता हूँ , हर इक सूरत में
खो गया मेरा भला क्या , इक तेरे जाने के बाद २
न महफिलें कल थी , ना है दोस्त आज भी कोई
अब मगर तन्हा बहुत हूँ , इक तेरे जाने के बाद ३
बिन बुलाए ख़ामोशी , तन्हाई , बे -परवाहपन
टिक गये हैं घर में मेरे , इक तेरे जाने के बाद ४
पूँछते हैं सब दरोदिवार मेरे , पहचान मेरी
अब तलक लौटा नहीं घर , इक तेरे जाने के बाद ५
तोड़ कर सब रख दिए मैंने ,…
Added by ajay sharma on August 28, 2017 at 11:46pm — 3 Comments
देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।
हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.
तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे
तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।
दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक
घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।
दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम
पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।
वो समन्दर था , मगर भटका नहीं
हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।
दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब
छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।
सच्चे इक प्यार के मोती के लिये
हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे…
Added by ajay sharma on January 8, 2016 at 12:05am — 6 Comments
चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................
जब छा जाएँगे रिश्तों के निपट अंधेरे
और थकन की धूल पाँव से सर तक बोलेगी
थकते थकते जब इक दिन चुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................
जब जब बोले हैं , बोले हैं खामोशी से हम
और प्रति-उत्तर भी पाए हैं , वैसे ही हमने
मिलते मिलते मौन कहीं जब थक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप…
ContinueAdded by ajay sharma on April 1, 2015 at 11:29pm — 7 Comments
बद -गुमानी थी मुझे क़िस्मत पे , मगर
मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर
हज़ार बार मुझे टोंका उसने , सलाह दी ,
ख़याल आया मुझे उसका , ठोकर पे , मगर
सुबह से हो गयी शाम और अब रात भी
पैर हैं कि थकने का , नाम नहीं लेते , मगर
वो खरीददार है , कोई क़ीमत भी दे सकता है
अभी आया है कहाँ , वो मेरी चौखट पे , मगर
करो गुस्सा या कि नाराज़ हो जायो "अजय"
सितम जो भी करो , करो खुद पे , मगर
अजय कुमार…
ContinueAdded by ajay sharma on March 10, 2015 at 11:59pm — 9 Comments
मैं रोज़ ढलता हूँ पर , निकलता हूँ , क्या करूँ
सूरज हूँ , मगर रोज़ जलता हूँ , क्या करूँ //
मैं मिट्टी नहीं , न हि पानी न कोई खुश्बू
मैं हवा का इक झोंखा हूँ , आँख मल्ता हूँ , क्या करूँ //
मैं बचपन भी कहाँ अब , जवानी भी नहीं हूँ मैं
बुढ़ापा हूँ मैं , इसीलिए खलता हूँ , क्या करूँ//
न कोई सफ़र हूँ मैं , न कोई पड़ाव न सराय कोई
मील का पत्थर हूँ मैं , बस टलता हूँ , क्या करूँ //
कहाँ खुद्दार हूँ मैं , अना वाला भी नहीं हूँ…
ContinueAdded by ajay sharma on February 24, 2015 at 12:29am — 8 Comments
मन का मीत मन को छल गया
आँख का पानी मचल गया
वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी
वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी
देह का सागर जल गया
पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक
पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक
समय के हाथ से सावन फिसल गया
लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी
वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी
आस का संबल गल गया
मौलिक अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा
Added by ajay sharma on February 16, 2015 at 11:00pm — 11 Comments
दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो
दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो
लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो
क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?
क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो
इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का
सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो
घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया
आँसुयों सा ये सफ़र कर…
Added by ajay sharma on February 12, 2015 at 12:30am — 10 Comments
कुछ तो आपस मे बनी रहने दे
आसमाँ तेरा सही मेरी ज़मीं रहने दे
बिछड़ के होगा तुझे अफ़सोस इस खातिर
अपनी आँखों में नमी रहने दे
मिल गया तू मुझे , तो फिर क्या होगा
मेरे मौला ये कमी रहने दे
मेरे ईमान की आँखें बे-नूर हो जाएँ
तरक़्क़ी तू मुझे ऐसी रोशिनी रहने दे
गैरों पे यक़ीन करना पड़े , "अजय"
तू मुझसे ऐसी दुश्मनी रहने दे
अजय कुमार शर्मा
मौलिक & अप्रकाशित
Added by ajay sharma on February 4, 2015 at 11:27pm — 9 Comments
मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ
ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ
हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं
वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें
महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे
क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के
चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ
यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता
सबक देती क़ुरान कहती है गीता
हो पैदा ये अहसास…
Added by ajay sharma on February 2, 2015 at 11:29pm — 8 Comments
बडा मंदिर न मस्जिद , न कोई गिरजा शिवाला है
न कोई अर्चना , पूजा बडी , अरदास , माला है
वतन सबसे बडा मंदिर , वतन सबसे बडी पूजा
है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है ।
जो सच की पैरवी और झूठ का प्रतिकार करता है ,
मोहब्बत हो जिसे इंसानियत से और एतबार करता है
जरूरी है नहीं हर शख्स सरहद पर लडे जाकर ,
वही सच्चा सिपाही है , जो वतन से प्यार से करता है ।
न कोई आरजू , ख्वाहि श , न कोई शर्त रखते हैं ।
न बोझा कोई सीने पर , न सर पे कर्ज…
Added by ajay sharma on January 25, 2015 at 11:01pm — 9 Comments
खामोशी ने ऐसी खता की
बात न की पर उसने जता दी
दिए हैं उसने ज़ख़्म अगर तो
दवा भी उसने हमें लगा दी
न जाने क्या-क्या था सोच रखा
मिला जो उसने , शरत लगा दी
मेरी अना थी , गुरूर उसका
मगर ये रिश्ते में इक वफ़ा थी
खत इक लिखा , फिर ज़वाब उसका
था काम इतना , उमर लगा दी
बग़ैर उसके , सफ़र कहाँ था
कभी था चेहरा , कभी सदा थी
अजय कुमार शर्मा
मौलिक प्रकाशित
Added by ajay sharma on January 18, 2015 at 11:08pm — 7 Comments
जिसे उम्र भर मैं सुना किया ,
जिसे चुपके-चुपके पढा किया ,
मैं समझ सका न जिसे कभी ,
मेरी हाथ की वो किताब हो ।।
एक बाल था मिरी पलक का ,
जो छुपा रहा मिरी आँख में ,
मुझे जिसकी फिक्र न थी कभी ,
मेरी जिन्दगी का वो ख्वाब हो ।।
जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी ,
जो सॅवर गया तेरा ख्याल था ,
जो उतर गयी मेरे दिल के आँगन में ,
वो ठण्डी छॉव हो ।।
तेरे इन्तजार का सिलसिला ,
कभी टूूटता तो मैं जानता ,
मुझे मिला…
Added by ajay sharma on December 23, 2014 at 10:30pm — 9 Comments
शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |
शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||
सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही
धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही
शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को
समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को …
Added by ajay sharma on December 15, 2014 at 11:10pm — 7 Comments
माँ होती तो ऐसा होता
माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा
तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता
माँ…
Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:12pm — 9 Comments
मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I
मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…
ContinueAdded by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:00pm — 14 Comments
पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे
मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे
फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया
किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे
उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे
इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे
कर्म के ही हल…
ContinueAdded by ajay sharma on December 9, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
साथ मेरे चलों , तो चलों उम्र भर ,
दो कदम साथ चलना गॅवारा नहीं।
तुम अधूरे इधर , मैं हूँ अधूरा उधर ,
दोनों आधे जिये , ये गॅवारा नहीं ।
तुम जो कह दो शुरू, तो शुरूआत हो
तुम जो कह दो खतम , सॉस थम जोयगी ।
पंथ कांटों का हो या कि फूलों भरा
तुम नहीं साथ में , ये गॅवारा नहीं ।
लाख नजरों में दिलकश नजारे रहे
किंतु आँखों की देहरी को न छू सके
मेरे सपनों के घर में सिवाय तेरे ,
चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं
मैं अकेला रहूँ या रहूँ भीड…
ContinueAdded by ajay sharma on December 1, 2014 at 11:00pm — 11 Comments
धीरज धर कर जीवन को , पाला होता काश
पुष्प ना बनता मैं भले , बन ही जाता घास
कितने जमनों का भँवर लिपटा मेरे पाव
धूप भी अब लगती सुखद जैसे ठंडी छाव
प्यासे को पानी मिले , गर भूखे को अन्न
हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न
आकर बैठो पास में मेरे भी , कुछ वक़्त
आगे का लगता सफ़र होने को है सख़्त
मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट
इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट
नींदे जगती रात भर , सोते रहते…
ContinueAdded by ajay sharma on October 29, 2014 at 10:30pm — 8 Comments
उन्मीदों से भी ज़्यादा, बहुत ज़्यादा मिल गया है
ख्वाहिशों का मेरी बे-नूर चेहरा खिल गया है
वो दौलतमंद है इक सिक्के की क़ीमत मालूम क्या उसको
कि इक सिक्के में इस बच्चे का बस्ता सिल गया है
ना चप्पल पाव में न सर पे कोई टोपी भी थी उसके
सुबह इस ठंड में जो बच्चा मज़ूरी को निकल गया है
मुफ़लिसी से नहीं अपनी अमीरी से बहुत लाचार था
वो बदन नंगे जो चौराहे पे , बुत में ढल गया है
वो सवारी बैठाने से पहले ही , किराया बोल देता…
ContinueAdded by ajay sharma on August 4, 2014 at 10:30pm — 7 Comments
सच कहता है शख्स वो ,भले बोलता कम है
बहुत सोचता है , भले वो लब खोलता कम है
कितनी भी हावी सियासत हो गयी हो आज भी
वो वादे निभाता तो नहीं , मगर तोड़ता कम है
कहीं जज़बात के रस्ते में कोई दुश्वारियां न हों
वो ख़त भी रखता है , तो लिफाफा मोड़ता कम है
मशीनी हो गयी है , रफ़्तार-ए -ज़िन्दगी , अब
आदमी हाँफता ज़िआदा , मगर दौड़ता कम है
फुटपाथों पे वो नंगे ज़िस्म सो रहा है , "अजय"
चीथड़े पहनता तो है वो , मगर ओढ़ता कम…
Added by ajay sharma on January 23, 2014 at 11:30pm — 5 Comments
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