यह मन हो मानो घर तुम्हारा अपना
पार क्षितिज से जैसे कोई रहस्य-बिंबित
स्वरातीत गीत-सी याद तुम्हारी चली आई
थीं चाहे कितनी भी हम में अपूर्णताएँ अपार
विश्वास की आढ़ में था ठहरा सनातन प्यार
हर…
ContinueAdded by vijay nikore on November 1, 2022 at 11:55am — 5 Comments
दिशाविहीन
दयनीय दशा
दुख में वज़्न
दुख का वज़्न
व्यथित अनन्त प्रतीक्षा
उन्मूलित, उचटा-सा है मन
कि जैसे रिक्त हो चला जीवन
खाली लगती है…
ContinueAdded by vijay nikore on March 29, 2022 at 2:33pm — 11 Comments
"अन्तिम विदा" की शाम के बाद
कुछ पलों के लिए ही सही
एक बार पुन: तुम्हारा लोट आना
आँचभरी वेदना को छुपाती मेरी आँखों में देखना
मानवीय उलझनें, प्यार की तलाश
और अब अश्चर्य और उत्साह का सुप्रसार…
ContinueAdded by vijay nikore on December 27, 2021 at 4:00pm — 3 Comments
निर्णय तुम्हारा निर्मल
तुम जाना ...भले जाना
पर जब भी जाना
अकस्मात
पहेली बन कर न जाना
कुछ कहकर
बता कर जाना
जानती हो न, चला जाता…
ContinueAdded by vijay nikore on December 7, 2021 at 12:00pm — 3 Comments
तेरे स्नेह के आंचल की छाँह तले
पल रहा अविरल कैसा ख़याल है यह
कि रिश्ते की हर मुस्कान को
या ज़िन्दगी की शराफ़त को
प्यार के अलफ़ाज़ से
क़लम में पिरो लिया है,
और फिर सी दिया है... कि
भूले से भी कहीं-कभी
इस रिश्ते की पावन
मासूम बखिया न उधड़े
और फिर कस दिया है उसे
कि उसमें कभी भी अचानक
वक़्त का कोई
झोल न पड़ जाए।
सुखी रहो, सुखी रहो, सुखी रहो
हर साँस हर धड़कन दुहराए
स्नेह का यही एक ही…
ContinueAdded by vijay nikore on December 5, 2021 at 5:06pm — 18 Comments
बेमौसम पतझड़ आया हो जैसे
पेड़ से झड़ते पत्तों-सी थर्राती
परिक्लांत पक्षी की पुकार
बींधती कराह-सी
सारी हवा में घुल गई
शोक समाचार को सुनते ही
आज अचानक
हवा जहाँ कहीं भी थी
वहीं की वहीं रूक गई
कि जैसे वह दिवंगत आत्मा
मेरे मित्र
केवल तुम्हारी माँ ही नहीं, वह तो
सारी सृष्टि की माँ रही
पेड़, पत्ते, पक्षी, मुझको, तुमको
एक संग सभी को
आज अनाथ कर गई
पुनर्जन्म सच है यदि तो कैसे कह…
ContinueAdded by vijay nikore on October 3, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
एक आयु के उपरान्त
प्रेम मुदित तुम्हारा लौट आना
गुज़रती साँसों को मानो
संजीवनी की बूटी से
साँस नई दे देना
स्नेह का यह फल मीठा
और अति आनन्ददायक था…
ContinueAdded by vijay nikore on June 7, 2021 at 1:00pm — 8 Comments
अनजाना उन्माद
मिलते ही तुमसे हर बार
नीलाकाश सारा
मुझको अपना-सा लगे
बढ़ जाए फैलाव चेतना के द्वार
कण-कण मेरा पल्लवित हो उठे
कि जैसे नए वसन्त की नई बारिश
दूर उन खेतों के उस पार से ले आती
भीगी मिट्टी की नई सुगन्ध
कि जैसे कह रही झकझोर कर मुझसे ....
मानो मेरी बात, तुम जागो फिर एक बार
सुनो, आज प्यार यह इस बार कुछ और है
और तुम ...…
ContinueAdded by vijay nikore on May 9, 2021 at 2:30pm — 2 Comments
विदा की वह शाम
प्रबल झंझावात के बाद मानो
दिशा-दिशा आकुल अकथ सुनसान
निस्तब्ध शांत ... और इस पर
दिन से सम्बन्ध तोड़ रही
वैभव-विहीन शाम…
ContinueAdded by vijay nikore on April 27, 2021 at 2:30pm — 2 Comments
Added by vijay nikore on April 24, 2021 at 11:30pm — 3 Comments
झुक आई है एक और शाम
ग्रभ में गहरी-भूरी स्तब्धता लिए
कुछ फ़ासले, कुछ फ़ैसले
लगते थे जो कभी
थे हमारे लिए नहीं
हर किसी और के लिए
खड़े हैं अब वही फ़ासले
वही फ़ैसले
घूर रहे हैं सवाल बने बड़े-बड़े
सवालों के उत्तर की प्रत्याशा
ले आती एक और गंभीर शाम
और फिर एक और ...
मंज़िल तो लगती ही थी हमेशा
पकड़ के बाहर, पहुँच से दूर बहुतं
लेकिन उस आखरी शाम
कुछ तुमने कहा, जो मैंने सुना
"मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on February 16, 2021 at 7:00am — 5 Comments
अजीब था यह अनमोल नाता ... अमृता प्रीतम जी
कई दशक पहले मैं जब भी प्रिय अमृता प्रीतम जी के उपन्यास पढ़ता था, पुस्तक को रखते एक कसक-सी होती थी, यह इसलिए कि एक बार आरम्भ करके उनकी पुसत्क को रखना कठिन होता था। आज भी ऐसा ही होता है। जब से एक प्रिय मित्र पिंकी केशवानी जी ने अमृता जी की पुस्तक “मन मंथन की गाथा” मुझको भेंट में भेजी, जब भी ज़रा-सा अवकाश मिलता है, यह पुस्तक मुझको झट पास बुलाती है।
मित्र पिंकी ने पुस्तक में लिखा, “एक छोटी-सी भेंट,…
ContinueAdded by vijay nikore on September 25, 2020 at 10:51pm — 1 Comment
खालीपन का भारीपन
नहीं मालूम, नहीं मालूम मुझको
मेरा यह अनुभव केवल मेरा ही है
या है यह हर किसी का
कहीं कुछ खो देने की पीड़ा से निवर्त होने का
अनवरत प्रारम्भिक प्रयास…
ContinueAdded by vijay nikore on August 24, 2020 at 7:30am — 4 Comments
बदलाव !
तड़के प्रात:
स्वच्छ धूप की नरम दूब से
मिलने की उत्सुक्ता ...
कुछ इसी तरह कोई लोग
कितनी उत्सुक्ता से अपने बनते
निज को समर्पित…
ContinueAdded by vijay nikore on May 14, 2020 at 5:00am — 6 Comments
तृप्ति
चहुँ ओर उलझा कटा-पिटा सत्य
कितना आसान है हर किसी का
स्वयं को क्षमा कर देना
हो चाहे जीवन की डूबती संध्या
आन्तरिक द्वंद्व और आंदोलन
मानसिक सरहदें लाँघते अशक्ति, विरोध
स्वयं से टकराहट
व्यक्तित्व .. यंत्रबद्ध खंड-खंड
जब देखो जहाँ देखो हर किसी में
पलायन की ही प्रवृत्ति
एक रिश्ते से दूसरे ...
एक कदम इस नाव
एक ... उस…
ContinueAdded by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:30am — 4 Comments
चेतना का द्वार
उठते ही सवेरे-सवेरे
चिड़ियों की चहचहाट नहीं
आकुल क्रन्दन... चंय-चंय-चंय
शायद किसी चिड़िया का बीमार बच्चा
साँसे गिनता घोंसले से नीचे गिरा था
वह तड़पा, काँपा…
ContinueAdded by vijay nikore on May 4, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
आत्मावलंबन
बाहरी दबाव और आंतरिक आदर्श
असीम उलझन और तीव्रतम संघर्ष
ऐसा भी तो होता है कभी
कि मन का सारा संघर्ष मानो
किसी एक बिंदु पर केंद्रित हो उठा हो
और पीड़ा ... जहाँ कहीं से भी उभरी
सारी की सारी द्रवित हो कर
उस एक बिंदु के इर्द-गिर्द
ठहर-सी गई हो
बह कर कहीं और चले जाने का
उस पीड़ा का
कोई साधन न हो
वाष्प-सा उसका उड़…
ContinueAdded by vijay nikore on April 28, 2020 at 6:52am — 6 Comments
न सीखी होशियारी
सर्वसामान्य का संवाग रचाते
मानव में है मानो चिरकाल से
उथल-पुथल गहरी भीतर
पग-पग पर टकराहट बाहर
आदर्श, व्यवहार और विवेक में
असामंजस्य…
ContinueAdded by vijay nikore on April 13, 2020 at 10:00am — 2 Comments
असाधारण सवाल
यह असाधारण नहीं है क्या
कि डूबती संध्या में
ज़िन्दगी को राह में रोक कर
हार कर, रुक कर
पूछना उससे
मानव-मुक्ति के साधन
या पथहीन दिशा की परिभाषा
असाधारण यह भी नहीं है कि
ज़िन्दगी के पाँच-एक वर्ष छिपाते
भीगते-से लोचन में अभी भी हो अवशेष
नूतन आशा का संचार
चिर-साध हो जीवन की
सच्चे स्नेह की सुकुमार अभिलाषा
पर असाधारण है,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 10, 2020 at 5:00am — 2 Comments
मृदु-भाव
प्रात की शीतल शान्त वेला
हवा की लहर-सी तुम्हारी मेरे प्रति
मृदु मोह-ममता
मैं बैठा सोचता मेरे अन्तर में अटका
कोलाहल था बहुत
क्यूँ किस वातायन से किस द्वार से कैसे
चुपके से आकर मेरे जीवन में
घोल दिए सरलता से तुमने मुझमें
प्रणय के पावन गीत
किसी सपने की मधुरिमा-सी
सच, प्यारी है मुझको तुम्हारी यह प्रीत
नए प्यार के नवजात गीत की नई प्रात
तुम आई,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 4, 2020 at 4:31pm — 4 Comments
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