मैं कैसे सोऊँ ??
नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ
व्याकुल जग पंथ निहारता
गर्भ नाल में जब हुई पीड़ा
रक्त माँ- माँ कह पुकारता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब बिस्तर उसका हुआ गीला
वो करवट करवट जागता
मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर
पय उदधि हिलौरे मारता
मैं कैसे सोऊँ ?
रोटी का कौर लिए फिरती
वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता
मैं कलम किताब दूँ हाथों…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 11, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
बस पांच मिनट का पड़ाव
Added by rajesh kumari on May 7, 2013 at 11:58am — 18 Comments
Added by rajesh kumari on May 3, 2013 at 10:00am — 35 Comments
खुरदुरी हथेलियाँ
Added by rajesh kumari on May 1, 2013 at 11:37am — 23 Comments
नीर के बापू ये तुम ठीक नहीं कर रहे हो एक ही तो रोजी रोटी का सहारा है ये बकरी उसे भी बेचना चाहते हो गोमती ने कलुवे के हाथ से रस्सी छुडाते हुए कहा कलुआ गुस्से में लगभग चीखता हुआ बोला बकरी तो फिर आ जायेगी भागवान देश का इतना बड़ा मंत्री एक गरीब के झोंपड़े में रोज थोड़े ही आता है आएगा तो चार आदमियों के खातिरदारी का बंदोबस्त तो करना ही पड़े है न तभी तो हमारा भी कुछ उद्धार हो पायेगा । अगले दिन सुबह से कलुवे के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मंत्री जी का स्वागत सजी धजी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 18, 2013 at 12:19pm — 13 Comments
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज
हुआ यकायक मुझे अंदेशा
भेजा उसने कोई संदेशा
नेह नीर बिना शुष्क हुई थी
देह प्रीत बिना रुष्ट हुई थी
लिपट पवन संग हिय तरु की डारि हिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
आह्लादित मन लहका- लहका
प्रीत उपवन है महका- महका
मिले गले जब भ्रमर औ कलिका
हया दीप संग जलती अलिका
विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 15, 2013 at 11:54am — 33 Comments
हिंदी भाषा के शिंगार रस छंद अलंकार
नव शब्द माल लेके गीत तो बनाइए
संधि प्रत्यय समास, हों मुहावरे भी ख़ास
भाव रंगों में डुबो के कविता रचाइए
गीत या निबन्ध हो नवल भाव सुगंध हो
साहित्य सरोवर में डुबकी लगाइए
विद्या वरदान मिले लेखनी को मान मिले
अपनी राष्ट्र भाषा का मान तो बढाइए
भाव गहन बढे जो ध्यान नदिया चढ़े जो
लेखनी की नाव लेके पार कर जाइये
ह्रदय में प्रकाश हो मुट्ठी भरा आकाश…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 12, 2013 at 12:22pm — 16 Comments
कमला बाई को सुबह सुबह दरवाजे पर बुरी हालत में देख रीना का माथा ठनका , एक्सीडेंट के कारण हास्पिटल में भर्ती हुई कल ही तो एक हफ्ते बाद वापस लौटी है ।सर पर पट्टी गले की हँसली टूटने पर पीछे हाथ कर बाँधी हुई पूरी छाती पर पट्टी ,आँखे सूजी हुई देखते ही फफक- फफक कर रो पड़ी कमला रीना के बहुत बार पूछने पर बताया "मेमसाब मेरी पट्टी देखकर मेरे दो साल के बच्चे ने जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 3, 2013 at 10:08am — 19 Comments
फूलों को तू सूंघ मत, आज अप्रैल फूल|
हो सकता है फूल में, हो मिर्ची की धूल||
तू देख वतन पश्चिमी, कितने होते…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 1, 2013 at 3:00pm — 19 Comments
जिस ख्वाब की बदौलत ताउम्र सो न पाये
ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये
बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके
पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये
पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते
कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये
चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना
सरसब्ज़ हसरतों की कश्ती डुबो न पाये
कुदरत को जालिमो ने इस तरह से सताया
ना हँस सके परिन्दे अब्रपार रो न पाये
मायूस तू न…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 31, 2013 at 12:00am — 18 Comments
मौसम में भी मच रही, फागुन की अब धूम|
झूमें हँस-हँस मंजरी, भँवरे जाते चूम||
डाल-डाल पर खिल रहे,केसर टेसू फूल|
आपस में घुल मिल गए ,बैर भाव को भूल||
महकी डाली आम की,मादक-मादक भोर|
लिखती पाती प्रेम की,होकर मस्त विभोर||
कान्हा को फुसला रही,फागुन प्रीत बयार|
राधा जी को भा रही,स्नेहिल रंग फुहार||
चन्दा ने फैला दिया,चाँदी भरा रूमाल|
सूरज ने बिखरा दिया,पीला ,लाल गुलाल||
क्यारी-क्यारी दे…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2013 at 4:32pm — 10 Comments
आज इतनी जल्दी क्लिनिक बंद कर के कैसे आ गए डॉक्टर साहब निशा ने दरवाज़ा खोलते ही अपने पति से पूछा|डॉक्टर अरुण बोले आज एक ऐसी पेशेंट आई जो तीन बेटियों की माँ थी और चौथी बार गर्भवती थी बोली डॉक्टर साहब मुझे गर्भ से ही एहसास हो रहा है कि ये उस कमीने का होने वाला बीज लड़का ही है जो मुझे नही चाहिए मैं नही चाहती कि कल वो भी किसी की बेटी पर उतने ही जुल्म ढाये जो इसके बाप ने मेरे और मेरी बेटियों के ऊपर ढाये|और हैरानी की बात ये थी कि वो सच ही कह रही थी उसके गर्भ में लड़का ही था,और मैं नियम क़ानून से…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2013 at 11:09am — 16 Comments
उदित सौर मंडल शिखर, ऊर्जस्वी आदित्य
विद्याभूषण में जड़ित, नग हिन्दी साहित्य
नग हिंदी साहित्य, संकलन काव्य निरूपम
छंदों की रसधार, नव निरवच्छिन्न अनुपम
काव्य कोष में छंद, मधुर कविताएँ अन्वित
ज्ञान अमिय मकरंद, पिए हिय कलिका प्रमुदित…
Added by rajesh kumari on March 2, 2013 at 1:00pm — 18 Comments
जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर
टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||
Added by rajesh kumari on February 25, 2013 at 12:07pm — 22 Comments
घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल|
दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||
बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|
बेटी से बेटे मिलें ,बेटा आँखें खोल||
घर की रौनक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 23, 2013 at 10:33am — 15 Comments
उफ्फ ये स्वप्न!!
हृदय विदारक
कैसे जन्मा
सुषुप्त मन में ?
रेंगती संवेदनाएं
कंपकपाएँ
जड़ जमाएं
भयभीत मन में
अतीत है या
भावी दर्पण
उथल पुथल है
मन उलझन में
गर…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 19, 2013 at 10:00am — 24 Comments
कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)
मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||
भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||
टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||
फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||
रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…
Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments
प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |
प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?
सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |
निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||
पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |
अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||
युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |
खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||
पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |
प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments
पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले
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Added by rajesh kumari on February 12, 2013 at 10:30am — 16 Comments
122, 122 22 (ग़ज़ल)
जमाया हथौड़ा रब्बा
कहीं का न छोड़ा रब्बा
बना काँच का था नाज़ुक
मुकद्दर का घोड़ा रब्बा
हवा में उड़ाया उसने
जतन से था जोड़ा रब्बा
तबाही का आलम उसने
मेरी और मोड़ा रब्बा
बेरह्मी से दिल को यूँ
कई बार तोड़ा रब्बा
रगों से लहू को मेरे
बराबर निचोड़ा रब्बा
चली थी कहाँ मैं देखो
कहाँ ला के छोड़ा रब्बा
मुकद्दर पे ताना कैसे
कसे मन निगोड़ा रब्बा
लगे ए …
ContinueAdded by rajesh kumari on February 7, 2013 at 10:00am — 27 Comments
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