२२२२/२२२२/२२२२/२२२
झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण देने वाले नेता सारे यार मवाली हैं
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इन के दिन की बातें छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
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कहते तो हैं नित्य ग़रीबी यार हटाएँगे लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
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देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
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काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments
खेत मन का एक जोता हमने बाजी मार ली
तन का सौदा रोक डाला हमने बाजी मार ली।१।
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रेत पर लिख करके गुस्सा हमने बाजी मार ली
पत्थरों पर प्यार साधा हमने बाजी मार ली।२।
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हर नदी की हर लहर पर पार जाना लिख दिया
मोड़ डाला रुख हवा का हमने बाजी मार ली।३।
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छोड़ आये चाँद आधा यूँ सितारों के लिए
किन्तु पहलू में है पूरा हमने बाजी मार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 24, 2020 at 6:30am — No Comments
आँख से काजल चुराने का न कौशल हम में था
दूर रह कर याद आने का न कौशल हम में था।१।
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नाम पेड़ों पर तो हम भी लिख ही लेते थे मगर
पुस्तकों में खत छिपाने का न कौशल हम में था।२।
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दोस्ती सूरज सितारों से तो अपनी थी गहन
चाँद को लेकिन रिझाने का न कौशल हम में था।३।
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पा गये विस्तार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 23, 2020 at 7:00am — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहने को जिसमें यार हैं अच्छाइयाँ बहुत
पर उसके साथ रहती हैं बरबादियाँ बहुत।१।
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सजती हैं जिसके नाम से चौपाल हर तरफ
सुनते हैं उस को भाती हैं तन्हाइयाँ बहुत।२।
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कैसे कहें कि गाँव को दीपक है मिल गया
उससे ही लम्बी रात की परछाइयाँ बहुत।३।
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पाँवों तले समाज को करके बहुत यहाँ
चढ़ता गया है आदमी ऊँचाइयाँ बहुत।४।
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बैठी हैं घर किये वहाँ अब तो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2020 at 7:30am — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
जिनके धन्धे दोहन वाले कब धरती का दुख समझे
सुन्दर तन औ' मन के काले कब धरती का दुख समझे।१।
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जिसने समझा थाती धरा को वो घावों को भरता नित
केवल शोर मचाने वाले कब धरती का दुख समझे।२।
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ताल, तलैया, झरने, नदिया इस के दुख में सूखे नित
और नदी सा बनते नाले कब धरती का दुख समझे।३।
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पेड़ कटे तो बादल रूठा और हवाएँ सब झपटीं
ये सड़कों के बढ़ते जाले कब धरती का दुख समझे।४।
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नित्य सितारों से गलबहियाँ उनकी तो हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2020 at 5:58am — 6 Comments
अकेलेपन को भी हमने किया चौपाल के जैसा
बचा लेगा दुखों में ये हमें फिर ढाल के जैसा।१।
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भले ही दुश्मनी कितनी मगर आशीष हम देते
कभी दुश्मन न देखे बीसवें इस साल के जैसा।२।
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इसी से है जगतभर में हरापन जो भी दिखता है
हमारे मन का सागर ये न सूखे ताल के जैसा।३।
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सितारे अपने भी जगमग न कमतर चाँद से होते
अगर ये भाग्य भी होता चमकते भाल के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ
दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।
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हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल
है दुश्मनों से आज भी कोई मिला हुआ।२।
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स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए
फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।
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रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली
ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।
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कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था
रोता है आज देख के निज घर जला हुआ।५।
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मैं जुगनुओं को मुँह…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
शीशे को भी रखने वाले पत्थर लोगों नहीं रहे
यौवन के अब पहले जैसे तेवर लोगों नहीं रहे।१।
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ढूँढा करते हैं गुलदस्ते तितली भौंरे आज यहाँ
काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
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केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
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एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की आँख का काँटा न तू होना गँवारा कर
किसी की आँख का तारा स्वयम् को हाँ बनाया कर।१।
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ये जननी जन्म भूमि तो सभी को स्वर्ग से भी बढ़
गढ़ी हो नाल जिस भूमी उसे हर पल सँवारा कर।२।
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उतर जाये तो जीवन ये रहे लायक न जीने के
उतरने दे न पानी निज न औरों का उतारा कर।३।
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जो अपनी नींद सोता हो जो अपनी नींद जगता हो
उसी सा होने की जिद रख उसी को बस सराहा कर।४।
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हँसी की बात लगती पर हँसी में मत उड़ा देना
अगर दाड़ी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 4:01pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2020 at 11:05am — 14 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पूछो न आप गाँव को क्या क्या हैं डर दिये
खेती को मार खेत जो सेजों से भर दिये।१।
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पाटे गये वो ताल भी पुरखों की देन जो
रख के विकास नाम ये अन्धे नगर दिये।२।
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आँगन वो चौड़ा खेत के छूटे रहट वहीं
दड़बों से आगे कुछ नहीं जितने भी घर दिये।३।
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वो भी धरौंदे तोड़ के हम से ही थे गहे
कहकर सहारा आप ने तिनके अगर दिये।४।
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कोई चमन के फूल को पत्थर बना रहा
कोई था जिसने शूल भी फूलों से कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 6:30am — 5 Comments
अपना क्या है इस दुनिया में है जो कुछ भी धरती का
आग, हवा ये, फूल, समन्दर, चिड़िया, पानी धरती का।१।
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क्या सुन्दरवन क्या आमेजन कोलोराडो क्या गौमुख
ये हरियाली, रेत के टीले, सोना, चाँदी धरती का।२।
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हिमशिखरों की चमक चाँदनी बारामूदा का जादू
पीली नदिया, हरा समन्दर ताजा बासी धरती का।३।
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बाँध न गठरी लूट धरा को अपना माल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2020 at 4:20am — 7 Comments
जमाने की नजर में यूँ बताओ कौन अच्छा है
भले ही माँ पिता के वास्ते हर लाल बच्चा है।१।
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हदों में झूठ बँध पाता नहीं है आज भी लोगों
जुटाली भीड़ जिसने बढ़ लगे वो खूब सच्चा है।२।
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लगे बासी भरा जो भोर को घर में जिन्हें सन्ध्या
मगर बोतल में जो पानी कहा करते वो ताजा है।३।
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महज चाहत का रिस्ता है यहाँ हर चीज से मन का
सुना है नेह से मिलता …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 5:11pm — 2 Comments
अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा
समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।
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कहोगे भार जब उनको तुम्हें कोसेगा अन्तस नित
कहोगे तब स्वयम् को ही यहाँ पर भार अछूतों सा।२।
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करोना वैसा ही लाया करें व्यवहार जैसा हम
उसी का भोगता अब फल लगे सन्सार अछूतों सा।३।
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पता पाओगे पीड़ा का उन्हें जो नित्य डसती है
कहीं पाओगे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 6:30am — 10 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
रात से बढ़कर दिन में जलना कितना मुश्किल होता है
सच कहता हूँ निज को छलना कितना मुश्किल होता है।१।
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जब रिश्तों के बीच में ठण्डक हद से बढ़कर पसरी हो
धूप से बढ़कर छाँव में चलना कितना मुश्किल होता है।२।
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पेड़ हरे में जो भी मुश्किल सच में हल हो जाती पर
ठूँठ बने तो धार में गलना कितना मुश्किल होता है।३।
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साथ समय तो लक्ष्य सरल पर समय हठीला होने से
सच में धारा संग भी चलना कितना मुश्किल होता है।४।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2020 at 5:00pm — 8 Comments
सुनो सखी इस सावन में तो झूलों पर भी रोक लगी
जिससे लगता नेह भरी सब साँसों पर भी रोक लगी।१।
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घिरघिर बदली कड़क दामिनी मन को हैं उकसाती पर
भरी उमंगों से यौवन की पींगों पर भी रोक लगी।२।
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कितने मास करोना का भय देगा कारावास हमें
मिलकर हम सब कैसे गायें गीतों पर भी रोक लगी।३।
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सूखी तीज बितायी सब ने कैसी होगी राखी रब
कोई कहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 1:15pm — 8 Comments
ठूँठ हुआ पर छाँव में अपनी नन्हा पौधा छोड़ गया
कैसे कह दूँ पेड़ मरा तो मानव चिन्ता छोड़ गया।१।
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वैसे तो था जेठ हमेशा लेकिन जाने क्या सूझी
अब के मौसम हिस्से में जो सावन आधा छोड़ गया।२।
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"दिखे टूटता तो फल देगा", चाहे ये किवँदन्ती पर
आशाओं के कुछ तो बादल टूटा तारा छोड़ गया।३।
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या रोटी की रही विवशता या सीमा की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2020 at 12:08pm — 6 Comments
भाव अब तो पाप - पुण्यों के बराबर हो गये
देवता क्योंकर जगत में आज पत्थर हो गये।१।
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थी जहाँ पर अपनेपन की लहलहाती खेतियाँ
स्वार्थ से कोमल ह्रदय के खेत ऊसर हो गये।२।
**
न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ
तब से जुर्मोंं के महावत और ऊपर हो गये।३।
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दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब
पैग व्हिस्की मय पिलाना आज आदर हो गये।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2020 at 5:30pm — 10 Comments
पनघट पोखर बावड़ी, बरगद पीपल पेड़
उनकी बातें कर न अब, बूढ़े मन को छेड़।१।
**
जिस पनघट व्याकुल कभी, बैठे थे हर शाम
पुस्तक में ही शेष अब, लगता उस का नाम।२।
**
पनघट सारे खा गया, सुविधाओं का खेल
फिर भी सुख से हो सका, नहीं हमारा मेल।३।
**
पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल
कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।
**
पथिक ढूँढ नव राह तू, अगर बुझानी प्यास
पनघट ही जब ना रहे, क्या गोरी की आस।५।
**
सब मिल पनघट थीं कभी, बतियाती चित खोल
घर- घर नल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2020 at 9:59am — 13 Comments
हम जरूरत के लिए विश्वास जैसे हैं
नाम पर सेवा के लेकिन दास जैसे हैं।१।
**
सेज पर बिछने को होते फूल जैसे पर
वैसे पथ के पास उगते घास जैसे हैं।२।
**
है हमारा मान केवल जेठ जैसा बस
कब तुम्हारे वास्ते मधुमास जैसे हैं।३।
**
दूध लस्सी धी दही कब रहे तुमको
कोक पेप्सी से बुझे उस प्यास जैसे हैं।४।
**
रोज हमको हो निचोड़ा आपने लेकिन
स्वेद भीगे हर किसी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 14, 2020 at 10:01am — 10 Comments
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