२२१/२१२१/२२२/१२१२
मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया
जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।
करते नमन हैं उस को नित छोटा भले सही
जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।
कहते हैं राह रच के ही रहजन हुए मगर
अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।
साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी
पर अब फरेब झूठ को साधन बना लिया।४।
जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में
कैसा सुलगता देश का बचपन बना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2020 at 6:32am — 4 Comments
बर्षों से जब रहते आये दुख से मालामाल यहाँ
सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।
तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले
हमने तो हर पल है खोया उम्मीदों का साल यहाँ।।
शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो
खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।
साल नया कितनी उम्मीदें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2020 at 5:51am — 10 Comments
सँस्कार की नींव हो, उन्नति का प्रासाद
मन की ही बंदिश रहे, मन से हों आजाद।१।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।२।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।३।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।४।
मदिरा में ना डूब कर, भजन करें भर रात
नये साल की दोस्तों, ऐसे हो शुरुआत।५।
स्नेह संयम विश्वास का,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2019 at 6:12am — 16 Comments
समय ने हद से बढ़ के जब नयी मजबूरियाँ दी हैं
उन्हीं मजबूरियों ने ही तनिक चालाकियाँ दी हैं।१।
सफर में राह ने काँटे उगाये पाँव बेबस कर
मगर इक हौसले ने ही कई बैशाखियाँ दी हैं।२।
बढ़ाया हाथ भी ठिठका कहा भौंरे ने जब इतना
खिले फूलों के रंगों ने चमन को तितलियाँ दी हैं।३।
भुला बैठे हैं सब शायद यही …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 17, 2019 at 8:29pm — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२
अमरता देवताओं का खजाना है
मनुज तूने कभी उसको न पाना है।१।
यहाँ मुँह तो बहुत पर एक दाना है
लिखा जिसके उसी के हाथ आना है।२।
सरल है चाँद तारों को विजित करना
कठिन बस वासना से पार पाना है।३।
रही है धर्म की ऊँची ध्वजा सब से
उसी पर अब सियासत का निशाना है।४।
व्यवस्था जन्म से लँगड़ी बुढ़ापे तक
उसी के दम यहाँ पर न्याय काना है।५।
जला पुतला निभा दस्तूर देते हैं
भला लंकेश को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 10:59am — 4 Comments
आदम युग से आज तक, नर बदला क्या खास
बुझी वासना की नहीं, जीवन पीकर प्यास।१।
जिसको होना राम था, कीचक बन तैयार
पन्जों से उसके भला, बचे कहाँ तक नार।२।
तन से बढ़कर हो गयी, इस युग मन की भूख
हुए सभ्य जन भेड़िए, बिसरा सभी रसूख।३।
तन पर मन की भूख जब, होकर चले सवार
करती है वो नार की, नित्य लाज पर वार।४।
बेटी गुमसुम सोच ये, कैसा सभ्य विकास
हरमों से बाहर निकल, रेप आ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2019 at 8:30pm — 5 Comments
दोहे
तोड़ो चुप्पी और फिर, कह दो मन की बात
व्याकुल तपती देह पर, हो सुख की बरसात।१।
लाज शरम चौपाल की, यू मत करो किलोल
जो भी मन की बात हो, अँखियों से दो बोल।२।
मन से मन की बातकर, कम कर लो हर पीर
बाँध रखो मत गाँठ में, दुख देगा गम्भीर।३।
मन से निकलेगी अगर, दुखिया मन की बात
जो भी शोषक जन रहे, देगी ढब आधात।४।
कहना मन की बात नित, करके सोच विचार
जोड़े यह व्यवहार को, तोड़े यह …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2019 at 6:00am — 10 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
धन से न आप तोलिए लम्हों की तितलियाँ
कहना फजूल खोलिए लम्हों की तितलियाँ।१।
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उड़ती हैं आसपास नित सबके मचल - मचल
पकड़ी हैं किस ने बोलिए लम्हों की तितलियाँ।२।
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सुनते जमाना उन का ही होता रहा सदा
फिरते हैं साथ जो लिए लम्हों की तितलियाँ।३।
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किस्मत हैं लाए साथ में तुमसे ही ब्याहने
कहती हैं द्वार खोलिए लम्हों की तितलियाँ।४।
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जिसने न खोला द्वार फिर आती कभी नहीं
कितना भी चाहे रो लिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2019 at 5:24am — 14 Comments
जले दिवस भर धूप में, चलते - चलते पाँव
क्यों ओ! प्यारी शाम तुम, जा बैठी हो गाँव।१।
रोज शाम को झील पर, आओ प्यारी शाम
गोद तुम्हारी सिर रखूँ, कर लूँ कुछ आराम।२।
जब तक हो यूँ पास में, तुम ओ! प्यारी शाम
थकन भरे हर पाँव को, मिल जाता आराम।३।
बेघर पन्छी डाल पर, बैठा है उस पार
आयी प्यारी शाम है, खोलो कोई द्वार।४।
कितनी प्यारी शाम है, इत उत फैली छाँव
निकले चादर छोड़ कर, जी बहलाने पाँव।५।
आयी प्यारी शाम…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2019 at 6:00am — 10 Comments
दोहे
भिड़े प्रहरी न्याय के, लेकर निज अभिमान
मुसमुस जनता हँस रही, ले इस पर संज्ञान।१।
खाकी का ईमान क्या, बिकता काला कोट
वह नेता भी भ्रष्ट है, जन दे जिसको वोट।२।
लूट पीट जन आम को, करें न्याय का खून
खाकी, काला कोट खुद, बन बैठे कानून।३।
खाकी, काले कोट को, है इतना अभिमान
आम नागरिक कब भला, हैं इनको इन्सान।४।
रहा न जिनका आचरण, जैसा सूप सुभाय
वही सुरक्षा माँगते, वही कह रहे न्याय।५।
काली वर्दी पड़ गयी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2019 at 8:09pm — 12 Comments
याद बीते कल का वो सुख क्यों करें
ऐसे दूना अपना ही दुख क्यों करें।१।
पंक की कर मन्च से आलोचना
और गँदला बोलिए मुख क्यों करें।२।
छोड़ दुत्कारों से आये तब भला
उनके घर की ओर आमुख क्यों करें।३।
एक भी छाता न हो जिस शह्र में
बारिशें उस शह्र का रूख क्यों करें।४।
इसकी उनके पास में जब ना दवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 2, 2019 at 5:07pm — 2 Comments
२२१/ २१२१/ २२२/१२१२
रस्ते सभी जहाँ के ढब आसान जिंदगी
तू ही उलझ के रह गयी नादान जिंदगी।१।
पानी हवा बहुत है यूँ जीने के वास्ते
करती इकट्ठा मौत का सामान जिंदगी।२।
जीवन नहीं करे है तू जीवन सा पर करे
सासों पे झूठ - मूठ का अहसान जिंदगी।३।
क्यूबा बनी सोमालिया, ईराक, सीरिया
कब होगी तू पता नहीं जापान जिन्दगी।४।
देती है उसको मान ढब आती है मौत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2019 at 6:54am — 8 Comments
२२२२/२२२२/२२२
अश्क पलक से भीतर रखना सीख लिया
गम थे बेढब फिर भी हँसना सीख लिया।१।
जख्म दिए हैं जब से हँसकर फूलों ने
काँटों को भी फूल हैं कहना सीख लिया।२।
कदम- कदम पर खंजर रक्खे अपनों ने
हम भी शातिर जिन पर चलना सीख लिया।३।
दीप बुझा करते है जिसके चलने पर
उस आँधी से हमने जलना सीख लिया।४।
उनकी कोशिश थी पत्थर से अटल रहें
नदिया बनकर हम ने बहना सीख लिया।५।
मौलिक/अप्रकाशित
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 18, 2019 at 7:29pm — 4 Comments
दोहे
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वो तो बढ़चढ़ बाँटते, नफरत जिसका नाम
जन्नत में सद्भावना, शेष वतन का काम।१।
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वैसे तो हम सब रहे, विविध रंग के फूल
किन्तु सूख अब हो गये, जैसे तीखे शूल।२।
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पड़े जंग आतंक की, निसदिन जिन पर मार
उन्हें जिन्दगी फिर लगे, बोलो क्यों ना भार।३।
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तन से तो अब देश में, बिलय हुआ कश्मीर
मन से भी जब हो बिलय, बदलेगी तस्वीर।४।
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बिस्थापित थे जो हुये, समझो उनकी पीर
जा पायें निज ठाॅ॑व वो, कश्मीरी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2019 at 6:55am — No Comments
गाँव के दोहे
संगत में जब से पड़ा, सभ्य नगर की गाँव
अपना घर वो त्याग कर, चला गैर के ठाँव।१।
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मिलना जुलना बतकही, पनघट पर थी खूब
सब अपनापन मर गया, मोबाइल में डूब।२।
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बिछी सड़क कंक्रीट की, झुलसे जिसमें पाँव
पीपल कटकर गुम हुये, कौन करे फिर छाँव।३।
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सेज माल के वास्ते, कटे खेत खलिहान
जिससे लोगों मिट गयी, गाँवों की पहचान।४।
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सड़क योजना खा गयी, पगडंडी हर ओर
पहले सी होती नहीं, अब गाँवों की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2019 at 8:36am — 10 Comments
कभी किसी को ना करे, भूख यहाँ बेहाल
रोटी सब दो जून की, पाकर हों खुशहाल।१।
मुश्किल से दो जून की, रोटी आती हाथ
खाने को यूँ आज तो, मिल बैठो सब साथ।२।
रोटी को दो जून की, अजब गजब से खेल
इसकी खातिर जग करे, दुश्मन से भी मेल।३।
रोटी को दो जून की, क्या ना करते लोग
झूठ ठगी दैहिक व्यसन, सब इसके ही योग।४।
रोटी बिन दो जून की, बिलखाती है भूख
रोटी पा दो जून की, ढूँढें लोग रसूख।५।
सदा भाग्य ने है लिखा,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 11, 2019 at 4:30pm — 6 Comments
दोहे
तरुवर देते फूल फल, नदिया देती नीर
मानव मानव को मगर देता नित क्यों पीर।१।
ओछा मन हद तोड़ता, ओछी नदिया कूल
जैसे चन्दन से अधिक, माथे चढ़ती धूल।२।
जो बोता है पेड़ इक, बाँटे सबको छाँव
काटे जो वट रात दिन, जलते उसके पाँव।३।
अर्थी, पूजा, प्रीत को, मिले न आगन फूल
इस युग बोने सब लगे, कैक्टस कैर बबूल।४।
मरने पर जिसको रही, गंगाजल की चाह
उसने गंगा ओर की, हर नाले की राह।५।
जहाँ पसीना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2019 at 6:03pm — 8 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
सजती चुनाव में यहाँ जब तस्तरी बहुत
फिर भी बढ़े है रोज क्यों ये भुखमरी बहुत।१।
उतरा न मन का मैल जो सियासत ने भर दिया
दे कर भी हमने देख ली है फ़िटकरी बहुत।२।
अब खेल वो दिखाएगी उसको चुनाव में
जनता से जिसने है करी बाज़ीगरी बहुत।३।
नेता न आया एक भी सेवा की राह पर
लोगों ने कह के देख ली खोटी खरी बहुत।४।
क्या होगा उनके राज का जनता बतायेगी
करते सदन में जो रहे गत मशखरी बहुत।५।
आता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2019 at 7:04pm — 11 Comments
२२१/ २१२१/२२२/१२१२
लेकर शराब साड़ियाँ मतदान कीजिए
फिर पाँच साल जिन्दगी हलकान कीजिए।१।
देता है जो भी सीख ये तुमको चुनाव में
फूलों से ऐसे नेता का सम्मान कीजिए।२।
बाँटेंगे जात धर्म की सरहद में खूब वो
मत खाक उनका आप ये अरमान कीजिये।३।
सीढ़ी हो उनके वास्ते कुर्सी की राह पर
हर लक्ष्य उनका आप ही परवान कीजिए।४।
सेवक हैं उनको आप मत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2019 at 8:04pm — 5 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
दिल से निकल के बात निगाहों में आ गयी
जैसे हसीना यार की बाहों में आ गयी।१।
धड़कन को मेरी आपने रुसवा किया हुजूर
कैसे हँसी, न पूछो कराहों में आ गयी।२।
रुतबा है आपका कि सितम रहमतों से हैं
हमने दुआ भी की तो वो आहों में आ गयी।३।
कैसा कठिन सफर था मेरा सोचिये जरा
हो कर परेशाँ धूप भी छाहों में आ गयी।४।
सौदा जो सिर्फ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2019 at 7:25am — 10 Comments
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