२२१/ २१२१/२२२/१२१२
जीवन हो जिसका संत सा गुणगान कीजिए
शठ से हों कर्म उसका ढब अपमान कीजिए।१।
साड़ी शराब ले न अब मतदान कीजिए
लालच को अपने, देश पर कुर्बान कीजिए।२।
करता है जो भी भीख का वादा चुनाव में
जूतों से ऐसे नेता का सम्मान कीजिए।३।
कुर्सी को उनकी और मत साधन बनो यहाँ
वोटर हो अपने वोट का कुछ मान कीजिए।४।
मंशा है जिनकी राज हित जनता को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 26, 2019 at 6:52pm — 4 Comments
दोहे
कदम थिरकने लग गए, मुख पर छाए रंग
फागुन में मादक हुआ, मानव का हर अंग।१।
टेशू महका हैं इधर, उधर आम के बौर
रंगों की चौपाल है, खूब सजी हर ठौर।२।
अमलतास को छेड़ती, मादक हुई बयार
भर फागुन हँसती रहे, रंगों भरी फुहार।३।
धरती से आने लगी, मादक-मादक गंध
फागुन का है रंग से, जन्मों का अनुबंध।४।
हवा पश्चिमी ले गयी, पर्वों की बू-बास
कैसे बाँचें पीढ़ियाँ, रंगों का इतिहास।५।
हिन्दू मुस्लिम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2019 at 3:15pm — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
मखमली वो फूल नाज़ुक पत्तियाँ दिखती नहीं
आजकल खिड़की पे लोगों तितलियाँ दिखती नहीं।१।
साँझ होते माँ चौबारे पर जलाती थी दीया
तीज त्योहारों पे भी वो बातियाँ दिखती नहीं।२।
कह तो देते हैं सभी वो बेचती है देह पर
क्यों किसी को अनकही मजबूरियाँ दिखती नहीं।३।
अब तो काँटों पर जवानी का दिखे है ताब पर
रुख पे कलियों के चमन में शोखियाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2019 at 7:41pm — 7 Comments
२२२२/ २२२२/२२२२/ २२२२
खेतों खलिहानों तक पसरी नीम करेला बरगद यादें
खूब सजाकर बैठा करती फुरसत के पल संसद यादें।१।
आवारापन इनकी फितरत बंजारों सी चलती फिरती
कब रखती हैं यार बताओ खींच के अपनी सरहद यादें।२।
कतराती हैं भीड़ भाड़ से हम तो कहते शायद यादें
तनहाई में करती हैं जो सबको बेढब गदगद यादें।३।
बचपन रखता यार न इनको और सहेजे खूब बुढ़ापा
होती हैं लेकिन विरहन को सबसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2019 at 8:00pm — 4 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जमा पूँजी थी बरसों की जरुरत ने हजम कर ली
मुहब्बत अपनी लोगों ने सियासत से है कम कर ली।१।
जमाना अब तो हँसने का हँसेंगे सब तबाही पर
किसी दूजे के गम से कब किसी ने आँख नम कर ली।२।
सदा से नाज था जिसके वचन की सादगी पर ढब
उसी ने आज हमसे भी बड़ी झूठी कसम कर ली।३।
मुहब्बत रास आती क्या जफाएँ हर तरफ उस में
हमीं ने यूँ हर इक रंजिश खुशी से हमकदम कर ली।४।
बिगड़ जाती थी जो छोटी बड़ी हर बात पर हमसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2019 at 6:36am — 3 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
क्या कीजिएगा आप यूँ पत्थर उछाल कर
आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर।१।
कितने जहीन आज-कल नेता हमारे हैं
मिलके चला रहे हैं सब सन्सद बवाल कर।२।
वो चुप थे बम के दौर में ये चुप हैं गाय के
जीता न कोई देश का यारो खयाल कर।३।
पुरखे हमारे एक हैं मजहब से तोल मत
तहजीब जैसी कर रहे उस पर मलाल कर ।४।
माना की मिल गयी तुझे संगत वजीर की
प्यादा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2019 at 5:31am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२/१२१२
जब से वफा जहाँन में मेरी छली गयी
आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी।१।
नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे
हर बार मुँह पे प्यार के कालिख मली गयी।२।
अब है चमन ये राख तो करते मलाल क्यों
जब हम कहा करे थे तो सुध क्यों न ली गयी।३।
रातों के दीप भोर को देते सभी बुझा
देखी जो गत भलाई की आदत भली गयी।४।
माली को सिर्फ शूल से सुनते दुलार ढब
जिससे चमन से रुठ के हर एक कली…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2019 at 12:05pm — 6 Comments
रूप सँवरा और खुशबू है बनेली जिस्म की
हो गयी है क्यों हवस ही अब सहेली जिस्म की।१।
ये शलभ यूँ ही मचलते पास तब तक आयेंगे
जब तलक यारो जलेगी लौ नवेली जिस्म की।२।
ये चमन ऐसा है जिसमें साथ यारो उम्र के
सूखती जाती है चम्पा औ'र चमेली जिस्म की।३।
रूप का मेहमान ज्यों ही जायेगा सब छोड़ के
हो के रह जायेगी सूनी ये हवेली जिस्म…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2019 at 7:25pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
नींद में भी जागता रहता है जो सोता नहीं
हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं।१।
है जवानी भी कहाँ अब चैन के परचम तले
सिर्फ बचपन ही कभी चिन्ताओं को ढोता नहीं।२।
ज़िन्दगी यूँ तो हसीं है, इसमें है बस ये कमी
जो भी अच्छा है वो फिर से यार क्यों होता नहीं।३।
नफरतों का तम सदा को दूर हो जाये यहाँ
आदमी क्यों…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2019 at 7:30pm — 6 Comments
२२१/२१२१/ २२२/१२१२
पाषाण पूजने को जब अन्दर किया गया
हर एक देवता को तब पत्थर किया गया।१।
उनके वतन से थी अधिक कुर्सी निगाह में
दूश्मन को इसके वास्ते सहचर किया गया।२।
यूँ तो चुनाव जीतने बातें विकास की
पर हाल देश का सदा कमतर किया गया।३।
शासक कमीन दे गये हमको वफा का दंड
गद्दार बन गये जो ढब आदर किया गया।४।
जन की भलाई में बहुत करना था काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2019 at 8:05pm — 7 Comments
१२२२/१२२२-/१२२२/१२२२
किसी के घर बहुत आवागमन से प्यार कम होगा
इसी के साथ हर बारी सदा सत्कार कम होगा।१।
जरूरत सब को पड़ती है यहाँ कुछ माँगने की पर
हमेशा माँगने वाला सही हकदार कम होगा।२।
खुशी बाँटो कि बँटकर भी नहीं भंडार होगा कम
अगर साझा करोगे दुख तो उसका भार कम होगा।३।
नजाकत देख रूठो तो मिलेगा मान रिश्तों को
जहाँ रूठोगे पलपल में सुजन मनुहार कम होगा।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 5:58pm — 8 Comments
संस्कार की नींव दे, उन्नति का प्रासाद
हर मन बंदिश में रहे, हर मन हो आजाद।१।
महल झोपड़ी सब जगह, भरा रहे भंडार
जिस दर भी जायें मिले, भूखे को आहार।२।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।३।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।४।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।५।
निर्धन को नव वर्ष की, बस इतनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2018 at 5:54pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
अब किसी के मुख न उभरे कातिलों के डर दिखें
इस वतन में हर तरफ खुशहाल सब के घर दिखें।१ ।
काम हासिल हो सभी को जैसा रखते वो हुनर
फैलते सम्मुख किसी के अब न यारो कर दिखें।२।
भाईचारा जब हो कहते हम सभी के बीच तो
आस्तीनों में छिपाये लोग क्यों खन्जर दिखें।३।
हौसला कायम रहे यूँ सच बयानी का सदा
आईनों के सामने आते न अब पत्थर दिखें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 10:51am — 3 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
हुआ कुर्सी का अब तक भी नहीं दीदार जाने क्यों
वो सोचें बीच में जनता बनी दीवार जाने क्यों।१।
बड़ा ही भक्त है या फिर जरूरत वोट पाने की
लिया करता है मंदिर नाम वो सौ बार जाने क्यों ।२।
तिजारत वो चुनावों में हमेशा वोट की करते
हकों की बात भी लगती उन्हें व्यापार जाने क्यों ।३।
नतीजा एक भी अच्छा नहीं जनता के हक में जब
यहाँ सन्सद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2018 at 3:35pm — 12 Comments
छलकते देख कर आँसू ग़मों की प्यास बढ़ जाये
कभी ऐसा भी मौसम हो चुभन की आस बढ़ जाये।१।
लगे ठोकर किसी को भी न चाहे घाव खुद को हो
मगर देखें तो दिल में दर्द का अहसास बढ़ जाये।२।
भला कब चाहते हैं ये जिन्हें हम शूल कहते हैं
मिटे पतझड़ चमन का साथ ही मधुमास बढ़ जाये।३।
लगाई नफरतों ने है यहाँ हर सिम्त ही बंदिश
घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये।४।
रखो ये ज्ञान भी यारो जो चाहत घुड़सवारी की
नहीं घोड़ा सँभलता है अगर जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2018 at 12:36pm — 6 Comments
घर में किसी के और अब अनबन कोई न हो
सूना पड़ा हमेशा ही आगन कोई न हो।१।
कुछ तो सहारा दो उसे हँसने जरा लगे
होकर निराश घुट रहा जीवन कोई न हो।२।
झुकना पड़े तनिक तो खुद झुकना सदा ही तुम
यारो मिलन की राह में उलझन कोई न हो।३।
आओ बनायें आज फिर ऐसा समाज हम
ओढ़े बुढ़ापा जी रहा बचपन कोई न हो।४।
जल जाएँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2018 at 12:22pm — 14 Comments
221 2121 1221 212
तुमको खबर है खूब खतावार कौन है
दो सोच कर सजाएँ गुनहगार कौन है।१।
यारो सिवा वो बात के करता ही कुछ नहीं
हाकिम से इसके बाद भी बे-ज़ार कौन है।२।
हम तो रहे जहीन कि जिस्मों पे मर मिटे
पहली नज़र का बोल तेरा प्यार कौन है।३।
सबसे बड़ा सबूत है मुंसिफ का फैसला
खाके कसम वफा की वफादार कौन है।४।
अपना तो फर्ज एक है तदबीर कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2018 at 1:14pm — 6 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/२१२
आप कहते पंछियों के , 'हमने पर कतरे नहीं'
आँधियों के सामने फिर क्यों भला ठहरे नहीं।१।
जो भी देखा उस पे उँगली झट उठा देता है तू
क्यों कहा करता जमाने ख्वाब पर पहरे नहीं।२।
एक जुगनू ही बहुत है वक्त की इस धुंध में
साथ देने चाँद सूरज गर यहाँ उतरे नहीं।३।
आईना वो बनके चल तू पत्थरों के शहर में
जिन्दगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2018 at 7:34pm — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
अकेला हार जाऊँगा, जरा तुम साथ आओ तो
अमा की रात लम्बी है कोई दीपक जलाओ तो।१।
ये बाहर का अँधेरा तो घड़ी भर के लिए है बस
सघन तम अंतसों में जो उसे आओ मिटाओ तो।२।
कहा बाती मुझे लेकिन जलूँ कैसे तुम्हारे बिन
भले माटी, स्वयं को अब चलो दीपक बनाओ तो।३।
गरीबी, भूख, नफरत, वासनाओं का मिटेगा तम
इन्हें जड़ से मिटाने को सभी नित कर बटाओ तो।४।
महज दस्तूर को दीपक जलाते इस अमा को सब
बने हर जन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2018 at 7:36am — 13 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की बद्दुआ से गर कोई बीमार हो जाता
दुआ सा आखिरी वो भी बड़ा हथियार हो जाता।१।
ललक से धन की थोड़ा भी कहीं दो चार हो जाता
कसम से आईना भी तब महज अखबार हो जाता।२।
घड़ी भर को ही हमदम का अगर दीदार हो जाता
सुकूँ से मरने का यारो तनिक आधार हो जाता।३।
कहानी प्यार की अपनी किनारे लग कहाँ पाती
कहीं हद तोड़ कर तट भी अगर मझधार हो जाता।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2018 at 6:00am — 20 Comments
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