घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह
बिन माँ के भुतहा लगे, चाहे सज्जित गेह।१।
माँ ही जग का मूल है, माँ से ही हर चीज
माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।
सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल
हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।
शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप
जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।
रखे कसौटी पाँव को, कंटक बो संसार
करे सरल हर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2018 at 7:30am — 8 Comments
बढ़ते ही नित जा रहे, खादी पर अब दाग
नेता जी तो सो रहे, जनता तू तो जाग।१।
जन सेवा की भावना, आज बनी व्यापार
चाहे केवल लाभ को, कुर्सी पर अधिकार।२।
मालिक जैसा ठाठ ले, सेवक रखकर नाम
देश तरक्की का भला, कैसे हो फिर काम।३।
नेता जी की चाकरी, तन्त्र करे नित खूब
किस्मत में यूँ देश की, आज जमी है दूब।४।
मुखर हुए निज स्वार्थ हैं, गौंण हो गया देश
नेता खुद में मस्त हैं, क्या बदले परिवेश।५।
जाति धर्म तक हो गये, सीमित नेता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।
निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।
कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।
शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।
हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।
सुनकर अच्छे बोल दो, करता दूना काम।३।
वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।
तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।
आँधी वर्षा या रहे, सिर पर तपती धूप।
प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।
पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2018 at 7:39pm — 13 Comments
सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल
था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।
हम में दस ही मूर्ख हैं, नब्बे हैं हुशियार
लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।
मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान
इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।
भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास
मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।
दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 7:28am — 20 Comments
कविता कोरी कल्पना, कविता मन का रूप
कविता को कवि ले गया, जहाँ न पहुँचे धूप।१।
किसी फूल की पंखुड़ी, किसी कली का गाल
कविता रंगत प्यार की, नहीं शब्द का जाल।२।
आँचल में रचती रही, सुख दुख कविता रोज
पड़ी जरूरत जब कभी, भरती सब में ओज।२।
भूखों की ले भूख जब, दुखियों की ले पीर
कविता सबकी तब भरे, आँखों में बस नीर।४।
युगयुग से भाये नहीं, कविता को अनुबंध
हवा सरीखी ये बहे, लिए अनौखी गंध।५।
कविता सुख की थाल तो, है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2018 at 3:30pm — 12 Comments
माता भगिनी संगिनी, सुता रूप में नार
विपदा दुख पीड़ा सहे, बाँटे लेकिन प्यार।१।
रही जन्म से नार तो, सदा शक्ति का रूप
समझे कैसे खुद रहा, मर्द हवस का कूप।२।
जो नारी का नित करें, पगपग पर सम्मान
संतो सा उनका रहा, सचमुच चरित महान।३।
नारी को जो कह गये, यहाँ नरक का द्वार
सब जन उनको जानिए, इस भू पर थे भार।४।
मुझ मूरख का है नहीं, गीता का यह ज्ञान
देवों से बढ़ नार का, कर मानव सम्मान।५।
बन जायेगा सच कहूँ,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 11:30am — 15 Comments
होली के दोह
मन करता है साल में, फागुन हों दो चार
देख उदासी नित डरे, होली का त्योहार।१।
चाहे जितना भी करो, होली में हुड़दंग
प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।
तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल
रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।
फागुन में गाते फिरें, सब रंगीले फाग
उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।
घोट-घोट के पी रहे, शिव बूटी कह भाँग
होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments
221 2121 1221 212
सुनता खुदा न यार सदाएँ तो क्या करें
करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।
इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम
हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।
इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान से
देता न कोई आज सदाएँ तो क्या करें।३।
शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम
तूफान बन के टूटें हवाएँ तो क्या करें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:30pm — 6 Comments
दबे पाप ऊपर जो आने लगे हैं
सियासत में सब तिलमिलाने लगे हैं।१।
घोटाले वो सबके गिनाने लगे हैं
मगर दोष अपना छिपाने लगे हैं।२।
वतन डूबता है तो अब डूब जाये
सभी खाल अपनी बचाने लगे हैं।३।
रहे कोयले की दलाली में खुद जो
गजब वो भी उँगलीउठाने लगे हैं।४।
दिया था भरोसा कि लुटने न देंगे
वही बेबसी अब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 4:00pm — 20 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
खूब नजरें जो गढ़ाये हैं पराये माल पर
है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।
भूख बेगारी औ' नफरत है पसारे पाँव बस
अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।
आज सम्मोहन कला हर नेता को आने लगी
है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।
खुद पहन खादी चमकते पूछता हूँ आप से
दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।
ऐसा होता तो सुधर जाते सभी हाकिम यहाँ
वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 10:25pm — 8 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत
पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।
ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो
यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।
फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों
समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।
माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन
घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।
ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर
फतवों के मेरे हाकिम पैबंद लगाओ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2018 at 6:00am — 15 Comments
शीत के दोहे
बालापन सा हो गया, चहुँदिश तपन अतीत
यौवन सा ठिठुरन लिए, लो आ पहुँची शीत।१।
मौसम बैरी हो गया, धुंध ढके हर रूप
कैसै देखे अब भला, नित्य धरा को धूप।२।
शीत लहर के तीर नित, जाड़ा छोड़े खूब
नभ के उर में पीर है, आँसू रोती दूब।३।
हाड़ कँपाती ठंड से , सबका ऐसा हाल
तनमन मागे हर समय, कम्बल स्वेटर शॉल।४।
शीत लहर फैला रही, जाने क्या क्या बात
दिन घूँघट में फिर रहा, थरथर काँपे रात।५।
लगी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 7:27am — 8 Comments
विपदा से हारो नहीं, झेलो उसे सहर्ष
नित्य खुशी औ' प्यार से, बीते यह नववर्ष।१।
नभ मौसम सागर सभी, कृपा करें अपार
जनजीवन पर ना पड़े, विपदाओं की मार।२।
इंद्रधनुष के रंग सब, बिखरे हों हर बाग
नये वर्ष में मिट सके, भेद भाव का दाग।३।
खुशियों का मकरंद हो, हर आँगन हर द्वार
हो सब में सदभावना, जीने का आधार।४।
विदा है बीते साल को, अभिनंदन नव वर्ष
ऋद्धि सिद्धि सुख…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 8:00am — 12 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
रवैया हाकिमों का देश को बीमार कर देगा
यहाँ मिलजुल के रहना और भी दुश्वार कर देगा।१।
फँसाया जा रहा है यूँ अविश्वासों में हमको अब
न जाने कब सखा ही झट पलटके वार कर देगा।२।
सियासत तेल छिड़केगी हमारी बस्तियों में फिर
जलाने का बचा जो काम वो अखबार कर देगा।3।
परोसे झूठ सच जैसा बनाकर मीडिया जो नित
किसी दिन ये हमारी सोच को लाचार कर देगा ।४।
अबोला शक बढ़ाता है रखो सम्वाद भाई से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2018 at 8:30pm — 18 Comments
2122 2122 212
जीतने की जिस किसी ने ठान ली
मंजिलों की राह खुद पहचान ली ।1।
हार का अहसास उसको खा गया
पूछ मत अब ये कि क्यों कर जान ली।2।
है वचन शीशा न कोई टूटेगा
पत्थरों की बात चाहे मान ली ।3।
कोयलों ने होंठ अपने सी लिये
झुंड में आ मेंढकों ने तान ली ।4।
भ्रष्ट जब सारी सियासत है यहाँ
क्या है कैसे कितनी राशी दान ली।5।
मौलिक अप्रकाशित
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2017 at 1:54pm — 23 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 4:02pm — 22 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2017 at 11:13am — 11 Comments
गजल
2121 1221 1212 122
मेरे रहनुमा ही मुझसे मिले सूरतें बदल के
भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।
न सितारे बोले उससे मेरा हाल क्या है या रब
न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।
खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं
जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।
कहूँ लाल कह के उसने न गले लगाया क्यों मैं
न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।
बड़ा ख्वाब था खिलाऊँ उसे मोल की भी रोटी
न खरीद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments
1222 1222 1222 1222
ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी
किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।
सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।
हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए
मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।
हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो
किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।
नहीं उसको…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2017 at 1:19pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
जुबाँ पर वो नहीं चढ़ता मनन उसका नहीं होता
जो बाँटा खौफ करता हो भजन उसका नहीं होता।1।
जो करता बात जयचंदी वतन उसका नहीं होता
जिसे हो प्यार पतझड़ से चमन उसका नहीं होता।2।
जिसे लालच हो कुर्सी का जो करता दोगली बातें
वतन हित में कभी लोगों कथन उसका नहीं होता।3।
गगन उसका हुआ करता जो दे परवाज का साहस
जो काटे पंख औरों के गगन उसका नहीं होता।4।
समर्पण माँगता है प्यार निश्छल भाव वाला बस
नजर हो सिर्फ दौलत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:21am — 6 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |