उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं
मगर पहले मुझे अपना बनाएं
खुदा पर है यकीं तनकर चलूँगा
जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं
जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो बैठे कहीं आँसू बहाएं
तुम्हारे आफताबों की वज़ह से
अभी कुछ सर्द है बाहर हवाएं
तिरा दरबार है मुंसिफ भी तेरे
कहूँ किससे यहाँ तेरी खताएं
खता उल्फत की करने जा रहा हूँ
कहो अय्याम से पत्थर…
ContinueAdded by Arun Sri on April 3, 2012 at 11:00am — 20 Comments
मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में
जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !
ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम
और फिर भी उनके जख्म
गहरे के गहरे रहतें हैं !
टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप
नहीं सुखा पाती
सिसकती हुई छाँव की सीलन !
जिनके छिल चुके होंठ
नहीं उठा पाते
गूंगी हँसी का बोझ तक
लेकिन वो उठाए…
ContinueAdded by Arun Sri on April 2, 2012 at 10:37am — 10 Comments
और किसको शाद करने जा रहे हो
क्यों मुझे बरबाद करने जा रहे हो
बज्म में चर्चा मेरी बदनामियों का
और तुम इरशाद करने जा रहे हो
जो हकीकत थी सुनानी तुम उसे ही
अन- कही रूदाद करने जा रहे हो
जिस चमन में फूल नफरत के उगे हैं
तुम उसे आबाद करने जा रहे हो
ठोकरों से चोट खाकर पत्थरों के
द्वार पर फरियाद करने जा रहे हो
..................................... अरुन श्री !
Added by Arun Sri on March 25, 2012 at 11:00am — 17 Comments
सुनो राजन !
तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !
और अब हम ही खड़े है
हाथ बांधे
सर झुकाए
सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !
जिस अटारी पर खड़े हो
सभ्यता की ,
तुम कथित आदर्श बनकर ,
जिन कंगूरों पर
तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,
उस महल की नींव देखो !
क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है
हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,
और दीवारें बनी है
ईंट से हैवानियत की !
है तेरे संबोधनों में दब…
ContinueAdded by Arun Sri on February 25, 2012 at 10:55am — 6 Comments
बहुत दुखते हैं
पुराने घाव ,
जब आती हैं
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
उन्हें नही पता -
कितनी है
जख्म की गहराई ,
क्या होगी
स्पर्श की सीमा !
उनमे नही होती
पुराने हाथों जैसी छुअन !
रिसने दो
मेरे घावों को ,
क्योकि बहुत दुखतें हैं
पुराने घाव
जब आती है
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
अब और दर्द सहा न जाएगा…
ContinueAdded by Arun Sri on February 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments
अश्रु गण साथी रहे
मेरे ह्रदय की पीर बनकर !
रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !
मैं भटकता नीर बनकर !
तुम सुनहरे स्वप्न सी हो
मैं नयन हूँ !
बिन तुम्हारे मैं अधूरा
और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !
जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर
निज अहम के हार तक का ,
प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,
प्यार से उद्धार तक का
मार्ग हो तुम !
मै पथिक हूँ !
निहित हैं तुझमे सदा से
कर्म मेरे
भाग्य…
ContinueAdded by Arun Sri on February 22, 2012 at 1:00pm — 7 Comments
रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी
अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी
वर्ना ये गर्द उठेगी अभी तूफां बनकर
ख्वाब आँखों के सभी चुभने लगेंगे तुमको
बनके आंसू अभी टपकेंगे तपते रस्ते पर
मगर ये पाँव के छालों को न राहत देंगे !
तपिश तो और अभी और बढ़ेगी साथी
तब भी क्या प्यार में जल पाओगी शमां बनकर ?
पाँव रक्खोगी जब जलते हुए अंगारों पर
शक्लें आँखों में ही रह जाएंगी धुआं बनकर !
मैं जानता हूँ कि अब कुछ नही होने वाला
वक्त को…
Added by Arun Sri on February 16, 2012 at 12:05pm — 2 Comments
पास हो मेरे ये कितनी
बार तो बतला चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?
आँख जब धुंधला गई तो
मैंने देखा
तुम ही उस बादल में थे ,
और फिर बादल नदी का
रूप लेकर बह चला था ,
नेह की धरती भिगोता
और मेरी आत्मा हर दिन हरी होती गई !
उसके पनघट पर जलाए
दीप मैंने स्मृति के !
झिलमिलाते , मुस्कुराते
तुम नदी के जल में थे !
जब भी दिल धडका मेरा तब
तुम ही उस हलचल में थे…
Added by Arun Sri on January 31, 2012 at 12:00pm — 6 Comments
काश !
कोई दिन मेरा घर में गुजरता
बेवजह बातें बनाते
हँसते – हँसाते
गीत कोई गुनगुनाते
पर नही मुमकिन
मैं दिन घर में बिताऊँ!
एक नदी प्यासी पड़ी घर में अकेले
और रेगिस्तान में मैं जल रहा हूँ
थक चुका पर चल रहा हूँ
ढूढता हूँ अंजुली भर जल
जिसे ले
शाम को घर लौट जाऊँ
प्यास को पानी पिला दूँ !
मेरे आँगन की बहारों पर
जवानी छा गई है
और मैं
धूप के बाज़ार में बैठा हुआ…
ContinueAdded by Arun Sri on January 17, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा
अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा
हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक
मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा
भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा
सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह
मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा
घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा
………………………………….. अरुन…
ContinueAdded by Arun Sri on January 9, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
याद आता है
अपना बचपन,
जब हम उड़ान में रहते थे
बेफिक्री के असमान में रहते थे
दिन गुजरता था बदमाशियों में
पर रात अपने ईमान में रहते थे !
याद आता है,
दिन भर तपते सूरज को चिढाना
आंधियो के पीछे भागना
उनसे आगे निकलने की कोशिश करना
जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,
और फिर ..............
पता ही नही चला कि
कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर
हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !
दिन से अच्छी थी रातें
हमेशा से
और…
Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी
सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी
छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका
छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका
छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
टूटे सुर सब जोड़ बना डालें कोई सुमधुर संगीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत
नव सूरज से मैं ले लूँगा चमकीली आशा किरनें
तुम ले लेना नई रात से ख्वाब सुनहरे जीवन के
उजली धरती नए साल की थोड़ी और सजानी है
तुम बिखरी उम्मीद बटोरो मैं टुकड़े टूटे मन के
भूल पुरानी ठोकर ढूँढे नई मंजिलें स्वर्णिम जीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत
साथ मेरे हो तेरी कोमल फूल सी ऊर्जावान…
ContinueAdded by Arun Sri on January 3, 2012 at 12:30pm — 5 Comments
तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलाने की ?
या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए ?
नही न ?
कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !
चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला…
ContinueAdded by Arun Sri on December 16, 2011 at 12:30pm — 26 Comments
झील हर इक कतरे को झूठ बताएगी
मछली निज आँसू किसको दिखलाएगी
लब पर कुछ झूठी मुस्काने चिपकाकर
कब तक वो अपने दिल को बहलाएगी
उसकी किस्मत में जीवन भर रातें है
वो भी आखिर कितने ख्वाब सजाएगी
हम दोनों को ही कोशिश करनी होगी
किस्मत हमको कभी नही मिलवाएगी
................................,... अरुन श्री !
Added by Arun Sri on December 14, 2011 at 11:30am — 4 Comments
क्यों मिली है कुछ पलों को बागवानी फूल की
उम्र भर कहते रहेंगे हम कहानी फूल की
वो मेरे सीने से लगकर हाले-दिल कहते रहे
फूल सी बातें सुनी हमने जुबानी फूल की
मनचले भवरे चमन के पास मंडराने लगे
चुभ रही है आँख में सबके जवानी फूल की
खौफ-ए-गुलचीन-ओ-खिज़ा के साए में हसती रहे
मैं समझ पाया न तबियत की रवानी फूल की
आज चाँदी की चमक से बागवान अँधा हुआ
पाँव के नीचे कटेगी अब जवानी फूल की
उजड़े हुए बाग-ए-मुहब्बत को हैं…
Added by Arun Sri on December 7, 2011 at 10:32am — No Comments
आज अचानक मिला मुझे एक दोस्त पुराना
नई राह पर,
हाँथ मिलाया, गले मिले फिर
एक दूजे का हाल सुना,
कुछ मौसम की बात हुई
कुछ अपने परिवारों की
आहिस्ते-आहिस्ते जो अब टूट रहे है,
उन रिश्तों का जिक्र हुआ
जो अर्थहीन होने वाले है,
और कुछ खुशियों की बात हुई,
फिर उसने मुझसे पूछ लिया
"क्या अब भी लिखते हो" ?
मै चुप था
सोच रहा था सच न बताऊँ,
और नहीं बताया !
कैसे कहता ?
मन में बनते गीत दबा…
ContinueAdded by Arun Sri on December 4, 2011 at 1:41pm — 3 Comments
तू कभी मुश्किलों से डरना मत
या मेरी राह से गुजरना मत
दर्द जीवन में मिले तो उसको
समेट लेना मगर बिखरना मत
सुलाया खंजरों के बिस्तर पर
और कहते है आह भरना मत
मैंने ये तो नही कहा तुमसे
न रहूँ मैं तो तुम संवारना मत
मै बहकने लगूं कभी भी अगर
तुमको मेरी कसम संभलना मत
आतिश-ए-इश्क से भरा हूँ मैं
मोम है तू मगर पिघलना मत
............................................ अरुन श्री !
Added by Arun Sri on December 1, 2011 at 12:48pm — 2 Comments
माना रात है
कोई दिया नही
ठोकरें भी है ,
लेकिन जानता हूँ मैं
उम्मीद का हाथ
तुम नही छोड़ोगे !
नहीं करोगे निराशा की बातें !
चलते रहोगे मेरे साथ
स्वप्न पथ पर !
अ-थके
अ-रुके
अ-रोके !
तब तक –
-जब तक सुनहली किरने
चूम न लें
मेरे-तुम्हारे सपनो का ललाट !
-जब तक सूर्य गा न ले
मेरे तुम्हारे सम्मान में
विजय गीत !
-जब तक पीला न पड़…
ContinueAdded by Arun Sri on November 30, 2011 at 11:30am — 4 Comments
Added by Arun Sri on November 23, 2011 at 1:30pm — 3 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |