तन्हाई का कैसा यारो फंडा
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
फूल कही
हो खुशबु उसके साथ रहे ,
खुशबू हो जो वो भी हवा के साथ बहे
खुशबु से
हम सब का दामन भरता है ,
तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ,
कोई कैसे
तन्हा भी हो सकता है ?
दिल के साथ है धड़कन ,
आँख के साथ स्वप्न ,
सुखदुख
साथ में मिलके बनता है जीवन ।
जीवन धार में मिलके जीवन चलता है ,
तन्हाई
का कैसा यारो फंडा है ।
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
दीप के साथ
है…
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Added by DEEP ZIRVI on October 18, 2010 at 9:00pm —
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धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल
विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;
जन सेवा का लिया व्रत और स्वयमसेवक जो कहलाये
सघन पेड़ बरगद का जैसे ,फैलता फैलते ही जाएँ
श्रम साधित वन्दना हमारी मानवहित करते जाएं
बन कर भारती पूत अमोल केशव माधव हरी हरी बोल ;
धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल
विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;
डगर कठिन ये सफर कठिन हो हम को निज मंजिल…
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Added by DEEP ZIRVI on October 17, 2010 at 8:00am —
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उदासी के अँधेरे हटा कर
नई रौशनी फैलाये गी
मेरे मन के वन उपवन में
सबरंग के फूल खिलाये गी
आस कि मासूम कली
नहीं जब मुर्झायेगी
मेरी उम्मीदों की नय्या
लहरों पर समय की .
चलेगी
पर जायेगी'
मन हर्शाएगी;
कभी तो कोई सुबह,
मेरे लिए
ढेर खुशियाँ लेकर आयेगी .
वो सुबह जरूर आयेगी
--
दीप्ज़िर्वि९८१५५२४६००
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 10:28pm —
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अजी लो आप को भी इश्क आखिर हो गया ना .
अरे सुख चैन देखो आप का भी खो गया ना.
बड़ा दावा ,ये था किह इश्क से होता क्या है ?!
अजी लो देखलो दिल आपका तोह भी गया ना .?!
हमे कहते थे मजनूं; आप लेकिन आप का ही ,
जनून-ए-इश्क की वहशत में दिल अब खो गया ना ?!
चिरागां हो सकेगा गर जलाओगे यहाँ दिल
करोगे कुछ नया तो ही कहोगे कुछ नया ना
तराना प्यार का ;दिलबर ! सुनाओ, तो सुनेंगे ;
फसाना इश्क का ,हर बार होता है नया ना
जलेंगे दीप से जब दीप ऐ…
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Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 7:44pm —
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बिरहा अग्नि
सुंदर छटा बिखरी उपवन में
खुशबु भरी मदमस्त पवन में
अजब सोच है मेरे मन में
सजन संग आज मिलन होगा
बलम संग आज मिलन होगा
---
मैं चातक हूँ स्वाति साजन ,
मैं मयूर सावन है साजन ,'
दीप हो तुम तो स्वाति मैं हूँ
जो तुम सीप तो मोती मैं हूँ ,
हूँ मैं चकोर तेरी मेरे चंदा
क्यों चकोर से दूर है चंदा
वन उपवन सब झूम रहा है ,
मस्त पवन भी घूम रहा है
जाने क्यों… Continue
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 4:30pm —
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दिल दिल है शीशा नहीं,
शीशे से भी नाजुक दिल ।
ये दिल दिल का साथी है,
ये दिल दिल का है कातिल ।
यार तुम्हारी बात कहू,
यार तुम्ही तो हो मेरे ।
तुम्ही हो जीवन मेरा,
तुम्ही जीवन का हासिल ।
तेरे दिल की कहता हू,
तेरे दिल की सुनता हु
मेरे दिल की जाने न,
क्यों हो मुझ से तू गाफिल,
deepzirvi@yahoo.co.in
--
deepzirvi9815524600
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 7:00am —
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मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक .
वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक .
आँखें उसकी न शरबती न सही ,
उस की आँखों में हूँ में ही बेशक .
उसकी आवाज़ में खनक न सही ,
करती है वो मेरी कही बेशक .
दीप बन कर कभी जो मैं आया ,
ज्योति बन कर के वो जली बेशक .
deepzirvi 9815524600
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:57am —
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अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ
दरया होकर भी प्यासा हूँ ।
मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,
बेशक मै सब में हंसता हूँ ।
तू सेठानी बेशक बेशक ,
मैं याचक दर पर आया हूँ ।
दाज के लिए दरवाजे पर
बैठी बेटी का पापा हूँ ।
बूढे बाप के खाली बेटे की
लाश उठाते में हाफा हूँ ।
श्वासों की हूँ आवागमन मैं
लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।
--
deepzirvi9815524600
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:56am —
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चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?
हाल उस का भी मुझ सा ही खुदारा क्यों है .
था हमें नाज़ बहुत आपकी दानाई पर ,
तेरी नादानी से ये हाल हमारा क्यों है .
खत नहीं फोन नहीं कोई भी नाता भी नहीं ,
मेरे दिलबर को मेरा दर्द गवारा क्यों है .
मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;
है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है.
दीप जल जायेगा जलता ही चला जायेगा ;
तेरा दीवाना फटेहाल बेचारा क्यों…
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Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:30am —
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हमे आजमाने की कोशिश न कर
जरा दूर जाने की कोशिश न कर
अगर साथ चलने गवारा न हो .
(तो) बहाने बनाने की कोशिश न कर.
मेरा दामन तुम्हारे लिए ही बना ,
ये कह कर लुभाने की कोशिश न कर .
सिर्फ तेरे आंसू ही मांगे हैं ,अब,
देख ले भाग जाने की कोशिश न कर .
तेरा इतिहास का पोथा थोथा छोडो ,
'आज ' से भाग पाने की कोशिश न कर .
कल अँधेरे में थे; दीप अब है जला .
दीप से मुंह फिराने की कोशिश न कर.
दीप…
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Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:30am —
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ज़माना याद रखे जो ,कभी ऐसा करो यारो .
अँधेरे को न तुम कोसो, अंधेरों से लड़ो यारो .
निशाने पे नज़र जिसकी ,जो धुन का हो बड़ा पक्का ;
'बटोही श्रमित हो न बात जाये जो ' बनो यारो .
जगत में भूख है ,तंगी - जहालत है जहां देखो ;
करो सर जोड़-कर चारा चलो झाडू बनो यारो .
रखे जो आग सीने में, जो मुख पे राग रखता हो ;
अगर कुछ भी नही तो राग दीपक तुम बनो यारो .
नदी भी धार बहती है,लहू भी धार बहती है ,
जो धारा प्रेम की लाये वो भागीरथ बनो यारो…
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Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:59pm —
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खिलौना अपने दिल का हम तुम्हे फौरन दिला देते;
तुम्हे एस की जरूरत है;अगर तुम ये बता देते .
कभी इस से कहा तुम ने कभी उस से कहा तुम ने ;
मुझे अपना समझ क्र तुम कभी दिल की सुना देते .
deepzirvi@yahoo.co.in
Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:55pm —
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आदमी को ढूढने में खो गया है आदमी.
आँख है खुली मगर सो गया है आदमी.
खुद जला है रातदिन खुद मिटा है रातदिन ;
और खुद की खोज में ,लो गया है आदमी .
घर बना सका नही वो तमाम उम्र में ;
रात दिन बेशक कमाई को गया है आदमी.
एक दिल की दास्ताँ ये दास्ताँ नही सुनो;
दिल्लगी से दिल लगाई हो गया है आदमी.
दीप हर डगर जले ,हर नगर ख़ुशी पले;
बीज हसीन ख्वाब से बो रहा है आदमी
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Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:30pm —
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सूरजों की बस्ती थी, जुगनुओं का डेरा है ,
कल जहा उजाला था अब वहां अँधेरा है.
राह में कहाँ बहके, भटके थे कहाँ से हम ,
किस तरफ हैं जाते हम, किस तरफ बसेरा है.
आदमी न रहते हों बसते हों जहां पर बुत ,
वो किसी का हो तो हो, वो नगर न मेरा है.
रहबरों के कहने पर रहजनों ने लूटा है ,
रौशनी-मीनारों पे ही बसा अँधेरा है .
मछलियों की सेवा को जाल तक बिछाया है ,
आजकल समन्दर में गर्दिशों का डेरा है.
दीप को तो जलना है, दीप तो जलेगा ही…
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Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:30pm —
2 Comments
(सब से पहले यहीं पर प्रस्तुती कर रहा हूँ इस रचना की , आशीर्वाद दीजियेगा)
जलने दो मुझे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो .
ये आग जलाई है में ने , मुझे अपनी आग में जलने दो .
तू मेरी चिंता मत करना ,ठंडी आहें भी मत भरना ;
मैं जलता था मैं जलता हूँ ,सम्पूर्णता को मचलता हूँ ,
मन मचल रहा है मचलने दो ;मुझे अपनी आग में जलने दो .
दाहक,दैहिक पावक न ये ,मानस तल का दावानल है,
ज्वाला मैं जन्म पिघलने दो ,मन को शोलों में ढलने दो
मुझे जलने दो…
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Added by DEEP ZIRVI on October 9, 2010 at 3:00pm —
2 Comments
दराज़ पलकें, हसीन चेहरा, वो दिलकशी और वो जो नजाकत |
कोई अगर लाजवाब हो तो, वो आवे देखे जवाब अपना ||
न मयकदा कोई रहना बाकी, न मयकशी न कहीं हो साकी |
अगर पलट दे मेरा ये दिलबर, जरा रुखों से नकाब अपना ||
खनकती आवाज़ शीशे जैसी, लचकती सी चाल हाय रब्बा |
वो माथे पे झूले नाग बच्ची, समझ के जुल्फों को नाग अपना ||
किसी मुस्स्विर का ख्वाब वो है, किसी तस्सवुर की है हकीकत ||
अगर कभी उसको देख ले तो,…
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Added by DEEP ZIRVI on October 8, 2010 at 7:00am —
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सब के रब !दूर हर इक मन का धुंधलका करदे
आईने पर है जमी धुल जो सफा कर दे
नफस में कीना है ; सीने में है जलन नफरत ;
इन आफतों को क्रीम मौला तू दफा कर दे ..
नफस बीमार है चंगा तो बशर दीखता है ;
तू नफस और बशर दोनों को चंगा कर दे
अपने ही हाथों से कर डालें ना खुद को घायल ;
तू भले और बुरे से हमें आगाह कर दे
बन के मजनूं न फिरे कोई जख्म न खाए ;
सब कि आगोश में तौफीक की लैला कर दे
खुद से बेगाना हुआ फिरता है जो ,तू खुद ही ;
उन को खुद से मिला कर के तू…
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Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 10:43pm —
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हाँ मै ने भी किया है प्रेम, मै ने भी पिया है प्रेम रस ;
मेरी प्रेयसी नित नूतन सद सनातन ;किन्तु पुरातन
कोमल भाव की सरस सरिता ,निज चेतना निज प्रेयसी .
मंथर कभी तीर्व कभी ,होती है चंचल सी गति .
निज प्रेयसी निज चेतना ;
प्रथम प्रेम का प्रथम पल्लव ,पल्लवित कुसमित प्रेम अविलम्बित .
निज धारणा निज चेतना ,प्रखर गुंजन से गुंजित ,
वल्लरी प्रेम कुसुम सुरभित ,अमर प्रेम की सी थाती .
प्रेम दीप की वो बाती;निज चेतना प्रिय…
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Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:09pm —
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भ्रमर
मेरा मन
पतंगे सा कोमल
भ्रमर सा चंचल
अस्थिर
पारे सम
कोशिश करे
कैद करने की
इस मन को तेरा मन
पर
पारे सम
मेरा मन
न हो सके गा स्थिर
न ही
बंदी बन पाए गा कभी
जैसे कि भ्रमर
किसी उपवन का
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यह भ्रमर नहीं है उपवन का
भ्रमर है ये मेरे मन का
स्वछन्द
हवा सम
स्व्त्न्त्त्र रहेगा यह
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दीप जीर्वी
Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:06pm —
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मैं तुझे ओढ़ता बिछाता रहू
तुम से तुम को सनम चुराता रहू .
तू मेरी ज़िन्दगी है जान.ए.गज़ल
ज़िन्दगी भर तुझे ही गाता रहू.
तुम यूँही मेरे साथ साथ चलो ,
मैं जमाने के नभ पे छाता रहू .
गुल जो पूछे कि महक कैसी कहो?
तेरी खुशबु से मैं मिलाता रहू .
ऐ मुहब्बत नगर की देवी सुनो ,
तेरे दर पर दीप इक जलाता रहू
दीप जीर्वी
Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:05pm —
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