Added by santosh khirwadkar on October 7, 2017 at 6:17pm — 8 Comments
अरकान-फ़ाइलातून मफ़ाइलुन फेलुन
अपने ग़म को मैं छुपा लेता हूँ
सबकी ख़ुशियों का मज़ा लेता हूँ
दिल में जब याद का उठे तूफ़ां
तेरी तस्वीर बना लेता हूँ
सामने जब वो मेरे आता है
अपने सर को मैं झुका लेता हूँ
जब भी होता है वो ख़फ़ा मुझसे
प्यार से उसको मना लेता हूँ
दिल में जब टीस मेरे उठती है
अश्क मैं छुप के बहा लेता हूँ
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by santosh khirwadkar on September 27, 2017 at 8:00pm — 16 Comments
अरकान:'फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा'
दिल ये कैसे बदल गया
यादों से ही बहल गया
देखी जो तस्वीर तेरी
मेरा दिल फिर मचल गया
ज़ालिम हैं सब लोग यहाँ
दिल ये सुनकर दहल गया
डूबा था मैं यादों में
दिन तेज़ी से निकल गया
मेरा क़िस्सा सुनते ही
पत्थर का बुत पिघल गया
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by santosh khirwadkar on September 12, 2017 at 4:30pm — 8 Comments
Added by santosh khirwadkar on September 8, 2017 at 10:30pm — 7 Comments
अरकान : फ़ाइलातून फ़ाइलातून फ़ाइलुन
है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं
जब तू मेरा है तो लगता क्यूँ नहीं
जब नज़र से मिल नहीं पाती नज़र
ख़्वाब से बाहर निकलता क्यूँ नहीं
लग रही है क्यूँ थमी दुनिया मुझे
तू भी मौसम सा बदलता क्यूँ नहीं
है ज़बाँ चुप और धड़कन तेज़ है
तू इशारों को समझता क्यूँ नहीं
जिस्म ठण्डा पड़ गया'संतोष'…
Added by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 6:58pm — 14 Comments
Added by santosh khirwadkar on September 5, 2017 at 5:30pm — 6 Comments
अरकान हैं 'फ़ाइलातून फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है
दोस्ती में तिरी धोका सा नज़र आता है
तूने छोड़ा था मुझे यार किसी की शह पर
इसलिये आज तू तन्हा सा नज़र आता है
ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी
तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है
है शिकन साफ़,शिकस्तों की तिरे माथे पर
तू हमें कुछ डरा सहमा सा नज़र आता है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by santosh khirwadkar on August 23, 2017 at 8:30pm — 15 Comments
कैसे कहूँ अब तुझसे कुछ कहा भी नहीं जाता,
तनहा ज़िंदगी में अब यूँ रहा भी नहीं जाता
चले थे जिस मोड़ तलक इस सफ़र में हम ,
रास्ता उस सफ़र का भुलाया भी नहीं जाता
उठता हैं मेरे दिल में तिरी यादों का तूफ़ाँ भी,
हादसा था जैसे ये भुलाया भी नहीं जाता
सुख गये यूँ अश्क़ भी यादों से तिरी,
ग़मों को लिये अब तो रोया भी नहीं जाता
तुम रहो कहीं भी मगर ये सच है ,
वजूद तिरा दिल से फिर मिटाया भी नहीं जाता
वो शख़्स जिसने मुझे अपना माना…
Added by santosh khirwadkar on August 10, 2017 at 8:30pm — 6 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 9, 2017 at 11:39pm — 4 Comments
तिरी नज़रों में ये बात नज़र आती है
मिरी याद तो तुझे आज भी आती है
ये चाहत का मामला है जनाब,
दिल की कशिश है,लौट आती है
छुपा लो लाख इसे तुम दिल में मगर,
बात दुनियाँ को भी नज़र आती है
दिल गिरफ़्त में है और क़ैद भी'संतोष'
चाहत तिरी वो ज़ंजीर नज़र आती है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by santosh khirwadkar on August 8, 2017 at 8:00pm — 9 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 7, 2017 at 8:18pm — 10 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 6, 2017 at 12:40pm — 9 Comments
कहाँ है,कौन है, कैसा नज़र आता है ,
वो ख़ुद में कम ,अब मुझ में ज़ियादा नज़र आता है
ये कैसी इबादत है ख़ुदा को मिरी,
माँगू ख़ुदा को भी ,तो वो ही नज़र आता है
वो धड़कन है,साँस है, ज़िंदगी भी है मिरी
करूँ आँखें बंद भी तो ,चेहरा उसी का नज़र आता है
अश्क़ ,ग़म,ख़ुशी ,मौसम,सभी तो है शामिल उसमें,
वो मुझे अब मिरी, ग़ज़ल नज़र आता है
चाहता तो वजूद ही मिटा देता उसका मगर,
वो ऐसा ज़ख़्म है दिल का ,जो फिर उभर आता…
Added by santosh khirwadkar on August 2, 2017 at 9:30pm — No Comments
Added by santosh khirwadkar on August 2, 2017 at 8:24pm — 2 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 2, 2017 at 8:02pm — 6 Comments
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