4/
2122 2122 2122 212
खुद के होने का जरा भी वो पता देता नहीं
अब किसी को भी गुनाहों की सजा देता नहीं /1
देवता तो थे बहुत पर ढल गए बुत में सभी
क्यों कहूँ तुझसे की उनको क्यों सदा देता नहीं /2
मर रही इंसानियत है और रिश्ते तार तार
क्यों कयामत का भरोसा अब खुदा देता नहीं /3
हर तरफ विष देखता हूँ सुर असुर सब हैं लिए
क्या समंदर मथ भी लें तो अब सुधा देता नहीं /4
वक्त का साया रहे जब मत निठल्ले बैठना
वक्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2015 at 11:41am — 8 Comments
2122 2122 2122 212
********************************
बेसदा बस्ती की रस्मों को निभाना था हमें
इसलिए अपनी जबानों को कटाना था हमें /1
या तो कातिल उस नगर में या बचे सब गैर थे
बोझ अर्थी का स्वयं की खुद उठाना था हमें /2
आग का दरिया मुहब्बत ताप आए हम भी यूँ
जो दिलों में जम गया वो हिम गलाना था हमें /3
भर गए सुनते थे वो ही चल दिए जो रीत कर
प्रीत घट में से भला फिर क्या बचाना था हमें /4
रास्ता यूँ तो सफर का जानते …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2015 at 5:30am — 8 Comments
122 122 122 122
**************************
डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा /1
हमेशा नहीं यूँ अँधेरा मिलेगा
भले ही रहे कम उजाला मिलेगा /2
कहावत है तम की जहाँ बस्तियाँ हों
वहीं दीपकों का बसेरा मिलेगा /3
चलो ढूँढते हैं उसे रात भर अब
कहीं तो तिमिर का किनारा मिलेगा /4
भटक जाओ गर तुम गगन को निहारो
बताता दिशा इक वो तारा मिलेगा /5
फकत जागने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2015 at 6:00am — 14 Comments
2122 2122 2122 212
*********************************
बारिशों के हादसे जब दामनों तक आ गए
दुख मेरी तन्हाइयों की बस्तियों तक आ गए /1
याद मुझको तो नहीं हैं ठोकरें मैंने भी दी
क्यों ये पत्थर रास्तों के मंजिलों तक आ गए /2
सोचकर निकले थे बाहर कुछ उजाला ढूँढ लें
घर के तम लेकिन हमारे रास्तों तक आ गए /3
नाव जर्जर और पतवारें रहीं सब अनमनी
क्या बताएं किस तरह हम साहिलों तक आ गए /4
हो रही है माँग हर शू जाति क्या औ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2015 at 10:47am — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
नहीं है धार कोई भी समय की धार से बढ़कर
नहीं है भार कोई भी समय के भार से बढ़कर
भरे हैं धाव इसने ही बड़े छोटे सदा सब के
नहीं मरहम बड़ा कोई समय के प्यार से बढ़कर
उलझ मत सोच कर बल है भुजाओं में जवानी का
न देगा पीर कोई भी समय की मार से बढ़कर
अगर दोगे समय को मान…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2015 at 10:40am — 3 Comments
2222 2222 2222 222
******************************
रोने का तुम नाम न लेना रीत बनाओ हँसने की
रोने धोने में क्या रक्खा होड़ लगाओ हँसने की /1
******
माना पाँव धँसे हैं कब से पार उतरना मुश्किल है
पीड़ाओं के इस दलदल में गंग बहाओ हँसने की /2
******
परपीड़ा में सुख मत खोजो ये पथ घेरे वाला है
दूर तलक जो ले जाती है राह बताओ हँसने की /3
******
पोंछो आँसू बाढ़ में इसकी खुशियों के घर बहते हैं
निर्जन में भी यारो बस्ती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2015 at 10:30am — 12 Comments
2222 2222 2222 222
*******************************
माना केवल रात ढली है हमको उनका दीद हुए दर्शन
पर लगता है सदियाँ गुजरी अपने घर में ईद हुए /1
*******
हमने तो कोशिश की वो भी हमसे जुड़ते यार मगर
रिश्तों के पुल बरसों पहले उनसे ही तरदीद हुए /2 रद्द करना / तोडना
*******
भीड़ जुटाई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 10:54am — 19 Comments
11212 11212 11212 11212
******************************************
नई ताब दे नई सोच दे जो पुरानी है वो निकाल दे
रहे रौशनी बड़ी देर तक वो दिया तू अब यहाँ बाल दे
***
है तमस भरी कि हवस भरी नहीं कट रही ये जो रात है
तू ही चाँद है तू ही सूर्य भी मेरी रात अब तो उजाल दे
***
जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं
मेरे पाँव भी हुए नग्न हैं मेरी राह अब तू बुहार दे
***
न तो पीर दे न चुभन ही दे मेरे पाँव में ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments
2122 2122 2122 212
******************************
पत्थरों के बीच रहकर देवता बनकर दिखा
दीन मजलूमों के हित में इक दुआ बनकर दिखा
****
कर रहा आलोचना तो सूरजों की देर से
है अगर तुझमें हुनर तो दीप सा बनकर दिखा
****
चाँद पानी में दिखाकर स्वप्न दिखलाना सहज
बात तब है रोटियों को तू तवा बनकर दिखा
****
देख जलता रोम नीरो सा बजा मत बंशियाँ
जो हुए बरबाद उनको आसरा बनकर दिखा
****
है सहोदर तो लखन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2015 at 10:57am — 9 Comments
221 1222 221 1222
******************
कब मोह दिखाती है सरकार किसानों से
मतलब तो उसे है बस दो चार दुकानों से
****
रिश्तों की कहाँ कीमत वो लोग समझते हैं
है प्यार जिन्हें केवल दालान मकानों से
****
वो मान इसे लेंगे अपमान बुजुर्गी का
तकरार यहाँ करना बेकार सयानों से
****
कदमों को मिला पाए कब साथ नयों का हम
कब यार निभाई है तुमने भी पुरानों से
****
उस रोज यहाँ होगा सतयुग सा नजारा भी
जिस रोज …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2015 at 12:16pm — 15 Comments
1222 1222 1222 1222
*************************
नगर भी गाँव जैसा ही मुहब्बत का घराना हो
सभी के रोज अधरों पर खुशी का ही तराना हो
*****
बिछा लेना कहीं भी जाल जब चाहे निषादों सा
मगर जीवन में नफरत ही तुम्हारा बस निशाना हो
*****
है भोलापन बहुत अच्छा मगर छल भी समझ पाए
रचो जग तुम जहाँ बचपन भी इतना तो सयाना हो
*****
खुशी हो बाँटनी जब भी न सोचो गैर अपनों की
मगर सौ बार तुम सोचो किसी का दिल दुखाना हो
*****
नई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2015 at 10:41am — 11 Comments
1222 1222 1222 1222
******************************
ये कैसी हलचलें नवयुग बता तेरी रवानी में
बचे भूगोल में नाले नदी किस्से कहानी में
****
बनीं नित नीतियाँ ऐसी हुकूमत हो किसी की भी
नफा व्यापार में बढ़चढ़ रहे फाका किसानी में
****
दिलों का जोश ठंडा है, उमर कमसिन उतरते ही
बुढ़ापा हो गया हावी सभी पर धुर जवानी में
****
जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:00am — 12 Comments
2122 2122 2122 212
****************************
जब धरा पर रह न पाये जो कभी औकात से
चाँद पर पहुँचो भले ही क्या भला इस बात से
****
मुफ्तखोरी की ये आदत यार चोरी से बुरी
चोर भी समझा रहा ये बात हमको रात से
****
बाँटने में हर हुकूमत, व्यस्त है खैरात ही
देश का, खुद का भला कब, हो सका खैरात से
*****
हो न पाये कौवे शातिर, लाख कोशिश बाद भी
बाज आयी कोयलें कब, दोस्तों औकात से
*****
प्यार होना भी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2015 at 11:29am — 26 Comments
1222 1222 1222 1222
*****************************
सितारे चाँद सूरज तो समय से ही निकलते हैं
दियों की कमनसीबी से अँधेरे रोज छलते हैं
****
किसी को देखकर गिरता सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो कहाँ गिरकर सभलते हैं
****
खुशी घर में उन्हीं से है खुदा की नेमतें वो तो
न डाँटा कर कभी उनको अगर बच्चे मचलते हैं
****
कहा है सच बुजुर्गों ने करें सब मनचली रूहें
किए बदनाम तन जाते कि कहकर ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2015 at 11:10am — 23 Comments
1222 1222 1222 1222
************************
बनाता खेत की रश्में चला जो हल नहीं सकता
लगाता दौड़ की शर्तें यहाँ जो चल नहीं सकता
***
पता तो है सियासत को मगर तकरीर करती है
कभी तकरीर की गर्मी से चूल्हा जल नही सकता
*****
भरोसा आँख वालों से अधिक अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा हुआ होगा कि सूरज ढल नहीं सकता
****
असर कुछ छोड़ जाएगी मुहब्बत की झमाझम ही
किसी के शुष्क हृदय को भिगा बादल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 12, 2015 at 12:03pm — 26 Comments
2122 2122 212
********************
फिर चिरागों को बुझाने ये लगे
रास्ता तम का सजाने ये लगे
****
प्रेत अफजल औ' कसाबों के यहाँ
कुर्सियाँ पाकर जगाने ये लगे
****
साजिशें रचते मरे हैं जो उन्हें
देश भक्तों में गिनाने ये लगे
****
देश के गद्दार जितने बंद हैं
राजनेता कह छुड़ाने ये लगे
****
बनके अपने आज खंजर देख लो
आस्तीनों में छुपाने ये लगे
****
हौसला दहशतगरों का यार यूँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2015 at 10:30am — 16 Comments
2122 2122 2122 212
*****************************
दुर्दिनों ने आँख का जब यार जाला हर लिया
तब दिखा है मयकशी ने इक शिवाला हर लिया
****
बाँटती थी कल तलक तो वो बहुत ही जोर दे
राह ने किस बात से अब पाँव छाला हर लिया
****
था सरीफों के लिए वो राह से भटकें नहीं
कोतवालो चोर से पहले ही ताला हर लिया
****
टोकता है कौन दिन को दे उजाला कुछ उसे
रात के हिस्से का जिसने सब उजाला हर लिया
****
था पुराना ही सही पर मान…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 5:00am — 14 Comments
2222 2112 2222
***************************
पत्थर पर भी प्यार जताया करते हैं
इक नूतन संसार बसाया करते हैं
****
लज्जत तुमको यार तनिक तो देंगे ही
दिल से हम असआर पकाया करते हैं
****
तनहा हमको आप समझना लोगो मत
हम गम का दरवार लगाया करते हैं
****
कुबड़ी अपनी पीठ हुई मत पूछो क्यों
यादों का हम भार उठाया करते हैं
****
अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू
आँसू केवल सार बताया करते हैं
****
जीवन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2015 at 11:03am — 13 Comments
चुभन मत याद रखना तुम मिली जो खार से यारो
रहे बस याद फूलों की मिले जो प्यार से यारो
*****
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो
*****
न समझो हक तम्हें तब तक सुमारी दोस्तो में है
रखो गर दुश्मनी भी तो मिलो अधिकार से यारो
*****
हमें जल के ही मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी दो पल रही केवल बचे अंगार से यारो
*****
भरत वो हो नहीं सकता सदा …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2015 at 11:00am — 11 Comments
2122 2122 2122 212
*******************************
झील के पानी को फिर से बादलों ताजा करो
नीर हो झरते रहो तुम मत कभी ठहरा करो
***
सिर्फ गर्जन के लिए कब धूप जनती है तुम्हें
प्यास खेतों की बुझाओ खेल से तौबा करो
***
जान का भय किसलिए है परहितों की बात जब
धुंध का परदा हटाओ दूर तक देखा करो
***
सूर्य के तुम वंशजों में छोड़ दो मायूसियाँ
त्याग दो जीवन भले ही तम को मत पूजा करो
***
यूँ अँधेरों की तिजारत …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2015 at 6:00am — 14 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |