221 1222 221 1222
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कब मोह दिखाती है सरकार किसानों से
मतलब तो उसे है बस दो चार दुकानों से
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रिश्तों की कहाँ कीमत वो लोग समझते हैं
है प्यार जिन्हें केवल दालान मकानों से
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वो मान इसे लेंगे अपमान बुजुर्गी का
तकरार यहाँ करना बेकार सयानों से
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कदमों को मिला पाए कब साथ नयों का हम
कब यार निभाई है तुमने भी पुरानों से
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उस रोज यहाँ होगा सतयुग सा नजारा भी
जिस रोज …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2015 at 12:16pm — 15 Comments
1222 1222 1222 1222
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नगर भी गाँव जैसा ही मुहब्बत का घराना हो
सभी के रोज अधरों पर खुशी का ही तराना हो
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बिछा लेना कहीं भी जाल जब चाहे निषादों सा
मगर जीवन में नफरत ही तुम्हारा बस निशाना हो
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है भोलापन बहुत अच्छा मगर छल भी समझ पाए
रचो जग तुम जहाँ बचपन भी इतना तो सयाना हो
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खुशी हो बाँटनी जब भी न सोचो गैर अपनों की
मगर सौ बार तुम सोचो किसी का दिल दुखाना हो
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नई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2015 at 10:41am — 11 Comments
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ये कैसी हलचलें नवयुग बता तेरी रवानी में
बचे भूगोल में नाले नदी किस्से कहानी में
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बनीं नित नीतियाँ ऐसी हुकूमत हो किसी की भी
नफा व्यापार में बढ़चढ़ रहे फाका किसानी में
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दिलों का जोश ठंडा है, उमर कमसिन उतरते ही
बुढ़ापा हो गया हावी सभी पर धुर जवानी में
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जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:00am — 12 Comments
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जब धरा पर रह न पाये जो कभी औकात से
चाँद पर पहुँचो भले ही क्या भला इस बात से
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मुफ्तखोरी की ये आदत यार चोरी से बुरी
चोर भी समझा रहा ये बात हमको रात से
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बाँटने में हर हुकूमत, व्यस्त है खैरात ही
देश का, खुद का भला कब, हो सका खैरात से
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हो न पाये कौवे शातिर, लाख कोशिश बाद भी
बाज आयी कोयलें कब, दोस्तों औकात से
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प्यार होना भी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2015 at 11:29am — 26 Comments
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सितारे चाँद सूरज तो समय से ही निकलते हैं
दियों की कमनसीबी से अँधेरे रोज छलते हैं
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किसी को देखकर गिरता सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो कहाँ गिरकर सभलते हैं
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खुशी घर में उन्हीं से है खुदा की नेमतें वो तो
न डाँटा कर कभी उनको अगर बच्चे मचलते हैं
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कहा है सच बुजुर्गों ने करें सब मनचली रूहें
किए बदनाम तन जाते कि कहकर ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2015 at 11:10am — 23 Comments
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बनाता खेत की रश्में चला जो हल नहीं सकता
लगाता दौड़ की शर्तें यहाँ जो चल नहीं सकता
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पता तो है सियासत को मगर तकरीर करती है
कभी तकरीर की गर्मी से चूल्हा जल नही सकता
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भरोसा आँख वालों से अधिक अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा हुआ होगा कि सूरज ढल नहीं सकता
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असर कुछ छोड़ जाएगी मुहब्बत की झमाझम ही
किसी के शुष्क हृदय को भिगा बादल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 12, 2015 at 12:03pm — 26 Comments
2122 2122 212
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फिर चिरागों को बुझाने ये लगे
रास्ता तम का सजाने ये लगे
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प्रेत अफजल औ' कसाबों के यहाँ
कुर्सियाँ पाकर जगाने ये लगे
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साजिशें रचते मरे हैं जो उन्हें
देश भक्तों में गिनाने ये लगे
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देश के गद्दार जितने बंद हैं
राजनेता कह छुड़ाने ये लगे
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बनके अपने आज खंजर देख लो
आस्तीनों में छुपाने ये लगे
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हौसला दहशतगरों का यार यूँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2015 at 10:30am — 16 Comments
2122 2122 2122 212
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दुर्दिनों ने आँख का जब यार जाला हर लिया
तब दिखा है मयकशी ने इक शिवाला हर लिया
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बाँटती थी कल तलक तो वो बहुत ही जोर दे
राह ने किस बात से अब पाँव छाला हर लिया
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था सरीफों के लिए वो राह से भटकें नहीं
कोतवालो चोर से पहले ही ताला हर लिया
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टोकता है कौन दिन को दे उजाला कुछ उसे
रात के हिस्से का जिसने सब उजाला हर लिया
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था पुराना ही सही पर मान…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 5:00am — 14 Comments
2222 2112 2222
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पत्थर पर भी प्यार जताया करते हैं
इक नूतन संसार बसाया करते हैं
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लज्जत तुमको यार तनिक तो देंगे ही
दिल से हम असआर पकाया करते हैं
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तनहा हमको आप समझना लोगो मत
हम गम का दरवार लगाया करते हैं
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कुबड़ी अपनी पीठ हुई मत पूछो क्यों
यादों का हम भार उठाया करते हैं
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अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू
आँसू केवल सार बताया करते हैं
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जीवन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2015 at 11:03am — 13 Comments
चुभन मत याद रखना तुम मिली जो खार से यारो
रहे बस याद फूलों की मिले जो प्यार से यारो
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नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो
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न समझो हक तम्हें तब तक सुमारी दोस्तो में है
रखो गर दुश्मनी भी तो मिलो अधिकार से यारो
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हमें जल के ही मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी दो पल रही केवल बचे अंगार से यारो
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भरत वो हो नहीं सकता सदा …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2015 at 11:00am — 11 Comments
2122 2122 2122 212
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झील के पानी को फिर से बादलों ताजा करो
नीर हो झरते रहो तुम मत कभी ठहरा करो
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सिर्फ गर्जन के लिए कब धूप जनती है तुम्हें
प्यास खेतों की बुझाओ खेल से तौबा करो
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जान का भय किसलिए है परहितों की बात जब
धुंध का परदा हटाओ दूर तक देखा करो
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सूर्य के तुम वंशजों में छोड़ दो मायूसियाँ
त्याग दो जीवन भले ही तम को मत पूजा करो
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यूँ अँधेरों की तिजारत …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2015 at 6:00am — 14 Comments
2122 2122
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पाप का अवसान मागूँ
पुण्य का उत्थान मागूँ
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सत्य की लम्बी उमर हो
झूठ को विषपान मागूँ
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व्यर्थ है आकाश होना
सिर्फ लधु पहचान मागूँ
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राजपथ की राह नीरस
पथ सदा अनजान मागूँ
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स्वर्ण देने की न सोचो
मैं तो बस खलिहान मागूँ
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कोयलों का वंश फूले
आज यह वरदान मागूँ
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साथ ही पर काक के हित
इक मधुर सा गान मागूँ
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मिल गए नवरात …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2015 at 11:31am — 26 Comments
2122 2122 212
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दोष ऐसा आ गया अब शील में
फासले कदमों के बदले मील में
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भर लिया तम से मनों को इस कदर
रोशनी भी कम लगे कंदील में
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देह होकर देह सा रहते नहीं
टाँगते खुद को वसन से कील में
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युग नया है रीत भी इसकी नई
आचरण से ध्यान जादा डील में / डील-दैहिक विस्तार
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अब बचे पावन न रिश्ते दोस्तो
तत तक बदले है खुद को चील में
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भय सताता क्या …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 7:00am — 25 Comments
1222 1222 1222 1222
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बुरे की कर बुराई अब (बुरे को अब बुरा कह कर) बुराई कौन लेता है
यहाँ रूतबे के लोगों से सफाई कौन लेता है
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हँसी अती है लोगों को किसी की आँख नम हो तो
किसी की पीर हरने को बिवाई कौन लेता है
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सभी हम्माम में नंगे किसे क्या फर्क पड़ता अब
जमाना भी न देखे जगहॅसाई कौन लेता है
***
मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब
सच्चाई …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2015 at 11:00am — 18 Comments
2122 2122 2122
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डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1
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एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब
चाँद से कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2
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थी कभी मैंने लगायी बोलियाँ भी
मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3
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आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए /4
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कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको
बाँधने सब दौड़ कर नित पास आए /5
रास आया है मुझे जब आज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments
1212 1122 1212 22
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किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती
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बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
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बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती
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चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
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बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
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कोशिशें पुरखों की यारों बेअसर मत कीजिए
नफरतों को फिर दिलों का यूँ सदर मत कीजिए
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मिट गये ये तो नरक सी जिंदगी हो जाएगी
प्यार को सौहार्द को यूँ दरबदर मत कीजिए
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कर रहे हो कत्ल काफिर बोलकर मासूम तक
नाम लेकर धर्म का ऐसा कहर मत कीजिए
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वो शहीदी कैसे जिनसे है फसादों की फसल
उनको ये इतिहास में लिख के अमर मत कीजिए
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दुश्मनी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:34pm — 22 Comments
2122 2122 2122 2122
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मन किसी अंधे कुए में नित वफ़ा को ढूँढता है
जबकि तन लेकर हवस को रात दिन बस भागता है
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तार कर इज्जत सितारे घूमते बेखौफ होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है
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जिंदगी भर यूँ अदावत खूब की तूने सभी से
मौत के पल मिन्नतें कर राह में क्यों रोकता है
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जाँच को फिर से बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव की मौजूदगी में दर्द …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 11:14am — 28 Comments
2122 1221 2212
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रूह प्यासी बहुत घट ये आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो
रूख से जुल्फें हटा चाँदनी रात में
चाँद को आह भरने का मौका न दो
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
सात फेरों की रस्में निभाओ मगर
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो
चाहिए अब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:00am — 10 Comments
२१२२ २१२२२ २१२
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हो गया है सत्य भी मुँहचौर क्या
या दिया हमने ही उसको कौर क्या
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कालिखें पगपग बिछी हैं निर्धनी
तब बताओ भाग्य होगा गौर क्या
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मार डालेगा मनुजता को अभी
जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या
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हैं परेशाँ आप भी मेरी तरह
धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या
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फूँक दे यूँ शूल जिनके घाव को
मायने रखता है उनको धौर क्या
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प्यार माथे का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 11:46am — 20 Comments
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