आहट की प्रतीक्षा में ...
जाने
कितनी घटाओं को
अपने अंतस में समेटे
अँधेरे में
चुपचाप
बैठी रही
कौन था वो
जो कुछ देर पहले
देर तक
मेरे मन की
गहन कंदराओं में
अपने स्वप्निल स्पर्शों से
मेरी भाव वीचियों को
सुवासित करता रहा
और
मैं
ऑंखें बंद करने का
उपक्रम करती हुई
उसके स्पर्शों के आग़ोश में
मौन अन्धकार का
आवरण ओढ़े
चुपचाप
बैठी रही
आहटें
रूठ गयीं…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2018 at 3:23pm — 13 Comments
मैं ....
मैं
कल भी
ज़िंदा था
आज भी
ज़िंदा हूँ
और
कल भी
ज़िदा रहूंगा
फ़र्क
सिर्फ़ इतना है
कि
मैं
कल गर्भ था
आज
देह हूँ
कल
अदेह हो जाऊंगा
गर्भ की यात्रा से शुरू
मैं
मैं की केंचुली छोड़
अनंत के गर्भ में
अमर
अदेह हो जाऊंगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 26, 2018 at 12:00pm — 12 Comments
चाँद से पूछें.....
आखिर
ख़्वाब टूटने का सबब
क्या है
चलो
चाँद से पूछें
करते हैं
जो दिल की मुरादें पूरी
उन तारों का पता
चलो
चाँद से पूछें
मुहब्बत में
अश्कों का निज़ाम
किसने बनाया
चलो
चाँद से पूछें
धड़कनों के पैग़ाम
क्यूँ हुए रुसवा
चलो
चाँद से पूछें
क्यूँ पूनम का अंजाम
बना अमावस
चलो
चाँद से पूछें
पेशानी पे मुहब्बत की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2018 at 1:18pm — 4 Comments
3. क्षणिकाएं :.....
1.
मैं
कभी मरता नहीं
जो मरता है
वो
मैं नहीं
... ... ... ... ... ... ...
2.
ज़िस्म बिना
छाया नहीं
और ]
छाया का कोई
जिस्म नहीं
... ... ... ... ... ... ... ...
3.
क्षितिज
तो आभास है
आभास का
कोई छोर नहीं
छोर
तो यथार्थ है
यथार्थ का कोई
क्षितिज नहीं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 16, 2018 at 5:09pm — 10 Comments
ख़्वाब के साथ ...
न जाने कब
मैं किसी
अजनबी गंध में
समाहित हो गयी
न जाने कब
कोई अजनबी
इक गंध सा
मुझ में समाहित हो गया
न जाने
कितनी कबाओं को उतार
मैं + तू = हम
के पैरहन में
गुम हो गए
और गुम हो गए
सारे
अजनबी मोड़
हकीकत की चुभन को भूल
ख़्वाबों की धुंध में
कभी अलग न होने के
ख़्वाब के साथ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 15, 2018 at 6:00pm — 6 Comments
स्वप्न धुंध...
असहनीय शीत के बावज़ूद
मैं देर तक
उसे महसूस करती रही
अपने हाथों में बंद
गीले रुमाल को भींचे हुए
धुंध को चीरती हुई
बेरहम ट्रेन आई
मेरे स्वप्न को
साथ लिए
धुंध में खो गई
मैं दूर तक
ट्रेन के साथ साथ
उसका हाथ पकड़े
दौड़ती रही,दौड़ती रही
आंखें
विछोह का भार न सकी
सागर बन छलक पड़ी
बॉय-बॉय करते उसके हाथ से
उसका रुमाल गिर गया
मैं दौड़ी
रुमाल उठाया
चौंकी
उसका…
Added by Sushil Sarna on January 8, 2018 at 6:34pm — 10 Comments
कुछ कहते-कहते ...
विरह निशा के श्यामल कपोलों को चूम
निशब्द प्रीत
अपनी निष्पंद साँसों के साथ
कुछ कहते-कहते
सो गयी
व्यथित हृदय
कब तक बहलता
पल पल
टूटती यादों के खिलौनों से
स्मृति गंध
आहटों के राग की प्रतीक्षा में
नैनों में
वेदना की विपुल जलराशि भरे
पवन से
कुछ कहते-कहते
सो गयी
खामोशियाँ
बोलती रहीं
शृंगार सिसकता रहा
थके लोचन
विफलता के प्रहार
सह न सके…
Added by Sushil Sarna on January 5, 2018 at 5:38pm — 9 Comments
सांस भर की ज़िंदगी ...
वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है
वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी
उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं
वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2017 at 6:37pm — 18 Comments
पीठ के नीचे ..
बेघरों के
घर भी हुआ करते हैं
वहां सोते हैं
जहां शज़र हुआ करते हैं
पीठ के नीचे
अक्सर
पत्थर हुआ करते हैं
ज़िंदगी के रेंगते सफ़र हुआ करते हैं
बेघरों के भी
घर हुआ करते हैं
भोर
मजदूरी का पैग़ाम लाती हैं
मिल जाती है मजदूरी
तो पेट आराम पाता है
वरना रोज की तरह
एक व्रत और हो जाता है
बहला फुसला के
पेट को मनाते हैं
तारों को गिनते हैं
ख़्वाबों में सो जाते हैं
मज़दूर हैं…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 7:00pm — 6 Comments
इक शाम दे दो ...
तन्हाई के आलम में
न जाने कौन
मेरे अफ़सुर्दा से लम्हों को
अपनी यादों की आंच से
रोशन कर जाता है
लम्हों के कारवाँ
तेरी यादों की तपिश से
लावा बन
आँखों से पिघलने लगते हैं
किसी के लम्स
मेरी रूह को
झिंझोड़ देते हैं
अँधेरे
जुगनुओं के लिए
रस्ते छोड़ देते हैं
तुम अरसे से
मेरे ज़ह्न में पोशीदा
इक ख़्वाब हो
मेरे सुलगते जज़्बात का
जवाब हो
अब सिवा तेरी आहटों के…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 6:30pm — 6 Comments
कड़वाहट ....
जाने कैसे
मैंने जीवन की
सारी कड़वाहट पी ली
धूप की
तपती नदी पी ली
मुस्कुराहटों के पैबन्दों से झांकती
जिस्मों की नंगी सच्चाई पी ली
उल्फ़त की ढलानों पर
नमक के दरिया की
हर बूँद पी ली
रात की सिसकन पी ली
चाँद की उलझन पी ली
ख़्वाबों की कतरन पी ली
आगोश के लम्हों की
हर फिसलन पी ली
जानते हो
क्यूँ
शा.... य... द
मैं
तू.... म्हा ... रे
इ.... .श्......क
की…
Added by Sushil Sarna on December 17, 2017 at 8:30pm — 6 Comments
आग ..
सहमी सहमी सांसें
बेआवाज़ आहटें
खामोशियों के लिबास में लिपटे
कुछ अनकहे शब्द
पल पल सिमटती ज़िदंगी
जवाबों को तरसते
बेहिसाब सवाल
शायद
यही सब था
इस हयाते सफ़र का अंजाम
लम्हे ज़िदंगी से अदावत कर बैठे
ख़्वाब
आग के साथ सुलगने लगे
अभी तो जीने की आग भी
न बुझ पायी थी
कि मौत की फसल
लहलहाने लगी
इक हुजूम था
मेरे शेष को
अवशेष में बदलने के लिए
नाज़ था जिस वज़ूद पर
वो ख़ाक हो जाएगा
आग के…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2017 at 4:35pm — 8 Comments
जीने के लिए ...
जाने
कितनी दुश्वारियों को झेलती
ज़िंदगी
रेंगती हसरतों के साथ
खुद भी
रेंगने लगती है
हर कदम
जीने के लिए
ज़ह्र पीती है
हर लम्हा
चिथड़े -चिथड़े होते
आरज़ूओं के
पैबंद सीती है
जाने कब
वक़्त
ज़िंदगी की पेशानी पर
बिना तारीख़ के अंत की
एक तख़्ती
लगा जाता है
उस तख़्ती के साथ
ज़िंदगी रोज
मरने के लिए
जीती है
और
जीने के लिए
मरती है
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 6, 2017 at 1:25pm — 9 Comments
अचंभित हूँ ....
अचंभित हूँ
इस गहन तिमिर में भी
तुमने श्वासों के
आरोह-अवरोह को
महसूस कर लिया
अचंभित हूँ
तुमने कैसे मेरे
अबोले तिमित स्वरों को
पहचान लिया
और चुपके से
मेरे अंतर्भावों का
अपने नयन स्वरों से
शृंगार कर दिया
अचंभित हूँ
तुम कैसे मुझसे मिलने
हृदय की गहन कंदराओं में
मेरे अस्तित्व की प्रेमानुभूतियों से
अभिसार करने आ गए
मैं तो कब से
अस्तित्वहीन हो गयी थी…
Added by Sushil Sarna on December 6, 2017 at 1:00pm — 10 Comments
तेरे-मेरे दोहे - (२)
नर समझाये नार को, नार करे तकरार,
रार-रार में खो गया ,मधुर पलों का प्यार।१ ।
बिन तेरे पूनम सखा , लगे अमावस रात ,
प्रणय प्रतीक्षा दे गयी ,अश्कों की सौग़ात।२।
तेरी मीठी याद है ,इक मीठा अहसास,
रास न आये श्वास को, जीवन का मधुमास।३ ।
अवगुंठन में देह की ,स्पंदन हुए उदास,
दृगजल बन बहने लगी , अंतर्मन की प्यास।४ ।
मौन भाव को मिल गए ,स्पर्श मधुर आयाम ,
पलक नगर को दे गए, स्वप्न अमर…
Added by Sushil Sarna on December 4, 2017 at 5:30pm — 10 Comments
अबोले स्वर ...
कुछ शब्दों को
मौन रहने दो
मौन को भी तो
कुछ कहने दो
कोशिश करके देखना
एकांत पलों में
मौन तुम्हारे कानों में
वो कह जाएगा
जो तुम कह न सके
वो धड़कनों की उलझनें
वो अधरों की सलवटों में छुपी
मिलन के अनुरोध की याचना
वो अंधेरों में
जलती दीपक की लौ में
इकरार से शरमाना
बताओ भला
कैसे शब्दों से व्यक्त कर पाओगी
हाँ मगर
मौन रह कर
तुम सब कह जाओगी
चुप रह कर भी
अपनी साँसों से…
Added by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 8:25pm — 6 Comments
तेरे मेरे दोहे :
पथ को दोष न दीजिये , पथ के रंग हज़ार
प्रीत कभी पनपे यहां ,कभी विरह शृंगार!!१!!
दर्पण झूठ न बोलता ,वो बोले हर बार
पिया नहीं हैं पास तो, काहे करे सिँगार!!२!!
शर्म न आए चूड़ियाँ ,शोर करें घनघोर
राज रात के कह गई, पुष्प गंध हर ओर!!३!!
जर्ज़र तन ने देखिये, ये पायी सौग़ात
निर्झर नैनों से गिरे,दर्द भरी बरसात!! ४!!
बन कर लहरों पर रहें, श्वास श्वास इक जान।
मिट कर भी संसार में ,हो अपनी…
Added by Sushil Sarna on November 24, 2017 at 5:00pm — 8 Comments
अजल की हो जाती है....
ज़िंदगी
साँसों के महीन रेशों से
गुंथी हुई
बिना सिरों वाली
एक रस्सी ही तो है
जिसकी उत्पत्ति भी अंधेरों से
और विलय भी अंधेरों में होता है
ज़िंदगी
लम्हों के पायदानों पर
आबगीनों सी ख़्वाहिशों को
छूने के लिए
सांस दर सांस
चढ़ती जाती है
मौसम
अपने ज़िस्म के
इक इक लिबास को उतारते
ज़िंदगी को
हकीकत के आफ़ताब की
तपिश से रूबरू करवाने की
हर मुमकिन कोशिश करते हैं
मगर अफ़सोस…
Added by Sushil Sarna on November 22, 2017 at 12:00pm — 12 Comments
बंद किताब ...
ठहरो न !
थोड़ी देर तो रुक जाओ
अभी तो रात की स्याही बाकी है
सहर की दस्तक से घबराते हो
प्यार करते हो
और शरमाते हो
कभी नारी मन के
सागर में उतर के देखो
न जाने कितने गोहर
सीपों में
किसी के लम्स के मुंतज़िर हैं
देहाकर्षण के परे भी
एक आकर्षण होता है
जहां भौतिक सुख के बाद का
एक दर्पण होता है
नशवरता से परे
अनंत में समाहित
अमर समर्पण होता है
पर रहने दो
तुम ये…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2017 at 1:30pm — 14 Comments
मधुर दोहे :
मन के मधुबन में मिले, मन भ्र्मर कई बार।
मूक नयन रचते रहे, स्पंदन का संसार।।
थोड़ा सा इंकार था थोड़ा सा इकरार।
सघन तिमिर में हो गयी , प्रणय सुधा साकार।।
बाहुपाश से देह के, टूटे सब अनुबंध।
स्वप्न सेज महका गयी ,मधुर बंध की गंध।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 9:22pm — 12 Comments
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