(१) रंक जले राजा जले, कौन सका है भाग |
सबके अंदर खौलती, एक क्षुधा की आग ||
(२) ज्वाल क्षुधा में वो भरी, कहीं न ऐसा ताप |
जल के जिसमें आदमी, कर जाता है पाप ||
(३) भूख बड़ी बलवान है, ना लेने दे चैन |
दौड़ें सब इसके लिए, दिन हो चाहे रैन…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 22, 2012 at 8:51pm — 12 Comments
ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |
लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 7:11pm — 24 Comments
सड़क बुलाती है,
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 19, 2012 at 7:30pm — No Comments
हे वनराज ! तुम निंदनीय हो !
अक्षम हो प्रजारक्षा में,
असमर्थ हो हमारी प्राचीन
गौरवपूर्ण विरासत सँभालने में ;
आक्रांता लाँघ रहे हैं सीमायें,
नित्य कर रहे हैं अतिक्रमण
हमारी भावनाओं का,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 17, 2012 at 1:16pm — 6 Comments
नैनों तेरी छवि बसी, मन तेरे गुण गाए,
फिर काहे तू दामिनी, रूठ मुझे सताए |
पल भर तेरी दूरी, दे मुझको तड़पाए,
ठंढी-ठंढी आहें भरूँ, कहीं जिया न जाए |
बिन तेरे ऐसे लगे, फूल भी शूल…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 15, 2012 at 10:44pm — 2 Comments
जो कह गए शहीद, चलो उसको दुहराएँ |
आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||
है दिन जिसको वीर, जीत कर के लाए थे,
चट्टानों को चीर, मौत से टकराए थे |
कर लें उनको याद, जिन्होंने शीश कटाए,
आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 11, 2012 at 8:21am — 8 Comments
जय श्रीकृष्ण देवकीनंदन | हूँ कर जोड़े, करता वंदन ||
दुख-विपदा से आप निवारो | मेरे बिगड़े काज सँवारो||
भगवन जग है तेरी माया | कण-कण तेरा रूप समाया ||
जगत नियंता, हे करुणाकर | तेरी ज्योति चंदा-दिवाकर ||
देवराज आरती उतारें | नारद जय-जयकार उचारें ||…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 10, 2012 at 6:45pm — 12 Comments
धोती मुनिया फर्श को, मुन्ना माँजे प्लेट |
कल का भारत देख लो, ऐसे भरता पेट ||
ऐसे भरता पेट, और ये नेता सारे,
चलते सीना तान, लगा के जमकर नारे |
नहीं तनिक है शर्म, कहाँ है जनता सोती,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 7, 2012 at 6:00pm — 18 Comments
१. नहीं किसी से हूँ चिढ़ा, आता खुद पे रोष |
मुझमें ही सारी कमी, मुझमें सारा दोष ||
२. मैं ही पूरा आलसी, सोता हूँ दिन-रात |
नहीं ठहरती जीत तो, कौन अनोखी बात ||
३. मुझमें ही है वासना, मुझमें है आवेश |
मक्कारी की खान मैं, धर साधू का वेश ||
४. मन को कलुषित कर लिया, लाता नहीं सुधार |
हरा दिया हठ ने मुझे, कर डाला लाचार ||
५. करने थे सत्कर्म पर, किये बहुत से पाप |
इतना नीचे हूँ गिरा, सोच न सकते आप ||
६. जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 11:08pm — 10 Comments
तृष्णा की कोख से जन्मा
वासनाओं के साये में पला
एक मनोभाव है दुःख ;
सांसारिक माया से भ्रमित
षटरिपुओं से पराजित
अंतस की करुण पुकार है दुःख ;
स्वार्थ का प्रियतम
घृणा का सहचर
भोगलिप्सा की परछाई है दुःख ;
वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
अधर्म से सिंचित
अमानवीय कृत्यों की
एक निशानी है दुःख ;
कलुषित मन की
कुटिल चालों का
सम्मानित अतिथि है दुःख ;
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 8:23pm — 22 Comments
किसान,
प्रतीक अथक श्रम के
अतुल्य लगन के ;
प्रमुख स्तंभ
भारतीय अर्थव्यवस्था के,
मिट्टी से सोना उगानेवाले
आज उपेक्षित हैं
परित्यक्त हैं…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 4, 2012 at 10:45am — 12 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2012 at 10:00pm — 12 Comments
१. फूँक रहा क्यों जिन्दगी, ऐ मूरख इंसान |
मर जाएगा सोच ले, छोड़ धुँए का पान ||
२. बीड़ी को दुश्मन समझ, दानव है सिगरेट |
इंसानों की जान से, भरते ये सब पेट ||
३. शुरू-शुरू में दें मजा, कर दें फिर मजबूर |
चले काम या ना चले, ये चाहिए जरूर…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 1, 2012 at 8:00am — 8 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 26, 2012 at 6:48pm — 14 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 25, 2012 at 9:20pm — 4 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 25, 2012 at 12:30pm — 5 Comments
वो बच्चा
बीनता कचरा
कूड़े के ढेर से
लादे पीठ पर बोरी;
फटी निकर में
बदन उघारे,
सूखे-भूरे बाल
बेतरतीब,
रुखी त्वचा
सनी धूल-मिटटी से,
पतली उँगलियाँ
निकला पेट;
भिनभिनाती मक्खियाँ
घूमते आवारा कुत्ते
सबके बीच
मशगूल अपने काम में,
कोई घृणा नहीं
कोई उद्वेग नहीं
चित्त शांत
निर्विचार, स्थिर;
कदाचित
मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा
रोज का किस्सा,
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में
चल पड़ता…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 9:24am — 20 Comments
घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |
मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |
तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 23, 2012 at 6:02pm — 25 Comments
अतिथि से गृहस्वामी बोला मेरे स्नेहपात्र;
आकांक्षा हमारी आप बार-बार आइए|
अतिथि ने अभिभूत कहा धन्य भाग्य मेरे;
इतनी ख़ुशी आपकी, कारण बताइए|
गृहस्वामी ने सुनाया, बड़ा अच्छा लगता है;
इतना तो निश्चित ही आप जान जाइए|
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 19, 2012 at 12:30pm — 12 Comments
मैं वोटर हूँ
एक आम मतदाता,
इसी देश का नागरिक
भीड़ का एक चेहरा
ज्यादा नहीं कमाता
शायद लिखना भी नहीं आता;
मेरा कोई संगठन नहीं
कोई नारा नहीं
हैलीकॉप्टर से तो दिखता भी नहीं
बहुत छोटा हूँ मैं
चिल्लाता हूँ कोई सुनता नहीं
इतना खोटा हूँ मैं;
इसी का आदी हूँ
शिकायत नहीं करता,
मेरा भी महत्त्व है
अचानक पता लगता,
पाँच सालों में; एक बार,
जब झुग्गियों में स्कॉर्पियो आती है,
काफिले आते हैं,
मैं "जनता जनार्दन" हो जाता हूँ
देसी…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 16, 2012 at 12:10pm — 4 Comments
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