बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
चोरी घोटाला और काली कमाई,
गुनाहों के दरिया में दुनिया डुबाई,
निगाहों में रखने लगे लोग खंजर,
पिशाचों ने मानव की चमड़ी चढ़ाई,
दिनों रात उसका ही छप्पर चुआ है,
गगनचुम्बी जिसने इमारत बनाई,
कपूतों की संख्या बढ़ेगी जमीं पे,
कि माता कुमाता अगर हो न पाई,
हमेशा से सबको ये कानून देता,
हिरासत-मुकदमा-ब-इज्जत रिहाई,
गली मोड़ नुक्कड़ पे लाखों…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on May 9, 2013 at 12:00pm — 12 Comments
बह्र : रमल मुसम्मन सालिम
वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,
प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,
बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,
झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,
तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 28, 2013 at 4:17pm — 16 Comments
आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों, मित्रों एवं प्रिय पाठकों आप सभी को सादर प्रणाम. भौंरा और फूल पर आधारित उनके मिलन एवं विरह पर एक कविता लिखने का छोटा सा प्रयास किया है, आशा है आप सभी को पसंद आएगा.
रसिक लाल = भौंरे का नाम
मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.
तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.
मेरा तन काला,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 22, 2013 at 11:21am — 25 Comments
पढ़ लिख कर आगे बढ़ें, बनें नेक इन्सान ।
अच्छी शिक्षा जो मिले, बच्चें भरें उड़ान ।।
बच्चे कोमल फूल से, बच्चे हैं मासूम ।
सुमन की भांति खिल उठें, बनो धूप लो चूम ।।
देखो बच्चों प्रेम ही, जीवन का आधार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 10, 2013 at 5:06pm — 11 Comments
नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय ।
रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।।
नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण ।
नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण ।।
दो नैना हर मर्तबा, छीन गए सुख चैन ।…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 4, 2013 at 12:30pm — 17 Comments
बहर : हज़ज मुसम्मन सालिम
वज्न: १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है,
बहर के इल्म में जो रोज अपना सिर खपाता है,
हुआ है सुखनवर* उसकी कलम करती ग़ज़लगोई*,
सभी अशआर के अशआर वो सुन्दर बनाता है,
कभी वो लाम* में जागे कभी वो गाफ़* में सोये,
सुबह से शाम तक बस तुक से अपने तुक भिड़ाता है,
मुजाहिफ* को करे सालिम, करे…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 3, 2013 at 2:30pm — 15 Comments
'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ
जात न पात न भेद न भाव न रूप न रंग न डोर दिवारें.
एक धरा यह प्रेम भरी जँह प्रेम लिए हम आप पधारें,
सीख सिखाय रहे सबहीं यँह ज्ञान भरें अरु लेख निखारें,
देश विदेश मिलाय दिए जन मेल…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 2:33pm — 17 Comments
हमें मिला यह मंच, हमरा…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 1:00pm — 16 Comments
वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,
जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on March 31, 2013 at 11:16am — 5 Comments
ग़ज़ल
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on February 4, 2013 at 11:00am — 8 Comments
(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२)
बुना कैसे जाये फ़साना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
हुनर था बहुत…
Added by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 10:59am — 21 Comments
शब्दों के भण्डार से, भरके मीठे बोल,
बेंचो घर-घर प्रेम से, दिल का ताला खोल,
नैनो से नैना मिले, बसे नयन में आप,
मधुर-मधुर एहसास का, छोड़ गए हो छाप,
मुख में ऐसे घुल गया, जैसे मीठा पान,
भाता सबको खूब है, दोहों का मिष्ठान,
मन में लागी है लगन,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 12:13pm — 15 Comments
आदरणीय गुरुजनों, मित्रों एवं पाठकों यह ग़ज़ल मैंने तरही मुशायरा अंक -३१, हेतु लिखी थी परन्तु समय न मिलने के कारण न तो प्रस्तुत कर सका और नहीं है मुशायरे में अच्छी तरह से भाग ले सका. क्षमा प्रार्थी हूँ सादर
बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,
समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया…
Added by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 11:19am — 18 Comments
ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
बड़ों के कहे का नहीं मान है,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
नियत डगमगाती सभी नारि पे,
दिलों…
Added by अरुन 'अनन्त' on January 21, 2013 at 11:07am — 2 Comments
खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
चोर मन ले फिर रहा है,
कोयले की खान आदम,
नारि पे ताकत दिखाए,
जंतु से हैवान आदम,
मौत आनी है समय पे,
जान कर अंजान आदम,
सोंचता…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 10:59am — 2 Comments
खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,
भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,
अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,
शरम का ख़तम दौर हो सा गया,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 11:30am — 10 Comments
(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:23am — 16 Comments
मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
कौन…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 12, 2013 at 11:00am — 10 Comments
जीने के आसार ले गए,
जीवन का आधार ले गए,
भूखों की पतवार ले गए,
लूटपाट घरबार ले गए,
छीनछान व्यापार ले गए,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2013 at 11:59am — 14 Comments
हाँथ तेरे सौंप दी अब जिंदगी की डोर है,
जानके मत तोड़ना तुम दिल जरा कमजोर है,
भूलना है भूल जाना, गैर तुम मुझको समझ,
प्रेम में बंधन नहीं, ताकत न कोई जोर है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 27, 2012 at 3:30pm — 6 Comments
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