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सूबे सिंह सुजान's Blog (67)

तरही ग़ज़ल--आपसे मिलकर ये जाना दोस्ती क्य चीज़ है।

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।

कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।

अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़…

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Added by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 12:39am — 18 Comments

होली पर मुक्तक--

मुक्तक-- जो कि होली के साथ सबको होली की शुभकामनायें...........

आज होली के नाम पर तरसे 

रोज तरसे जो आज भी तरसे, 

जिंदगी गम का इक पहाड हुई,

कल भी पत्थर थे आज भी बरसे।।

.......................................सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on March 27, 2013 at 10:08pm — No Comments

ग़ज़ल-शख़्स जब वो इधर से गुजरा है

शख़्स जब वो इधर से गुजरा है

एक पत्थर जरूर पिघला है।



दिल मेरा बार-बार धडका है,

क्यूँ मुझे कोई डर सा रहता है।



मेरा महबूब मेरा इतना है,

ज़िन्दगी भर की कोई आशा है।



चाँदनी आज और बढ गई है,…

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Added by सूबे सिंह सुजान on March 14, 2013 at 7:00am — 11 Comments

कच्चा रास्ता( कविता)

कच्चे रास्ते में, रास्ता होने की,

असली खुश्बू होती है।

वह चलता है और चलाता है

उसमें खुद को बदलने की हिम्मत है

वह कभी अहम नहीं करता।

वह बरसात की खुशबू को,

सुंदरता को,अच्छी तरह से परख़ता,

पहचानता है।

क्योंकि वह बरसात को सीने से लगा लेता है

वह आस-पास के पेड-पौधों से नहीं शर्माता।

उसे पता है कि शर्म उसकी खुशियों को रोकती है

उसे यह भी पता है

कि यह काम लोगों का है उसका नहीं।

वह अपने तन को धूल…

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Added by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 9:30am — 20 Comments

दो-दोहे- अपने सुख की खोज में...

एक.

अपने सुख की खोज में,सब जा रहे विदेश।

वहां जा कर पता चला, कितना अच्छा देश।।

दो-

सब बदलने की कोशिश,करते हैं सब आज।

आदमी वहीं का वहीं, बदला नहीं समाज।।

Added by सूबे सिंह सुजान on January 12, 2013 at 10:57am — 7 Comments

ग़ज़ल-जिंदगी हम भी समर तक आ गये

जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।

मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।

सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।

खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।

एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।

प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।

……सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2013 at 9:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

हम पेट भर नहीं सके अख़बार बेचकर।।
वो हो गये अमीर समाचार बेचकर।।।।

अरमान किसके मर रहे हैं,उनको क्या ख़बर,
वो आज कितने खुश हो गये प्यार बेचकर।।

कल उनके हाथों में दे दिये हमने अपने हाथ,
अब मारे-मारे फिरते हैं बाज़ार बेचकर।।।

अब ज़ालिमों को भी सज़ा मिलती नहीं कंही,
भगवान जैसे सो गये संसार बेचकर।।

हालात ने बदल दिया कितना हमें "सुजान"
हम बावकार हो गये किरदार बेचकर।।


सुजान........

Added by सूबे सिंह सुजान on December 8, 2012 at 12:30am — 11 Comments

रूबाई.......

रूबाई
.....................................
कुछ कहते हैं परिधान बदल कर देखो।
कुछ कहते हैं पकवान बदल कर देखो।
लेकिन मैं तो भगवान से ये कहता हूँ।।
भगवान ये इन्सान बदल कर देखो।। सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on November 26, 2012 at 11:41pm — No Comments

हिन्दी भाषा-1

जिनकी मातृ भाषा हिन्दी है वे हिन्दी का कितना प्रयोग करते हैं। यह सोचनीय है लेकिन एक अच्छी बात यह है हिन्दी बोलने वालों की,, कि वे दूसरी भाषाओं को आसानी से प्रयोग करने का प्रयास करते हैं और यही कारण है कि हिन्दी का प्रयोग भी बढता जा रहा है। यह सत्य उस तरह से है जैसे कोई दूसरे से अच्छा व्यवहार करता है तो सामने वाला भी उससे उतना ही अच्छा व्यवहार करता है।



उदहारण…
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Added by सूबे सिंह सुजान on November 24, 2012 at 10:10pm — 2 Comments

जिंदगी तेरा दायरा मालूम..........

जिंदगी तेरा दायरा मालूम........

इस जमाने का फलसफा मालूम।।

किस तरह आये थे यहाँ मालूम ,

और जाने का रास्ता मालूम........

रात दिन सामना सवालों से,

मन में है कितनी दुविधा मालूम।।

भूख से पेट खाली है कितना,, 

जबकि मौसम है खुशनुमा मालूम।।

लोग खुश हैं कि मर गया सुजान,,

कौन थे ये पता करो मालूम।।   सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on November 20, 2012 at 9:39pm — No Comments

जिंदगी मांगे...

उसने जो खा लिया वही मांगे.........
इस तरह कैसे जिंदगी मांगे........।

आज माहौल यूँ बनाया है।।
कुछ ग़लत कुछ कहें सही मांगे

सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on November 15, 2012 at 10:09pm — 1 Comment

एक मुक्तक--दिवाली पर

अमन के दीप जलाओ बहुत अंधेरा है

चलो दिवाली मनाओ बहुत अंधेरा है।।

समस्त विश्व में घनघोर रात छाई है,

सितारों चाँद बुलाओ बहुत अंधेरा है।।

Added by सूबे सिंह सुजान on November 13, 2012 at 2:38pm — 2 Comments

प्रकाश पर्व

प्रकाश रात खिली है हृदय पटल को खोल
संदेश सबको यही है कि जिंदगी अनमोल।।

Added by सूबे सिंह सुजान on November 12, 2012 at 10:20pm — 1 Comment

मुक्तक--हृदय की तरल अग्नि..

............................................................................................................

हृदय की तरल अग्नि रचती है जीवन

यहीं जन्म लेते हैं वियाग और मधुवन

क्षमा और प्रतिशोध की कैसी माया,

हृदय नभ सो उत्पन्न हो करते नर्तन।

                                     सूबे सिहं सुजान

11.11.12

Added by सूबे सिंह सुजान on November 11, 2012 at 11:15pm — 2 Comments

किता1

कोई दिल की सुनाना चाहता है।
कोई दिल से गिराना चाहता है।।
इसे कुछ भी समझना आप,लेकिन,
मुहब्बत तो जमाना चाहता है।।
सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on October 22, 2012 at 12:14am — 3 Comments

ग़ज़ल-यहाँ से दूर कोई आसमानों में टहलता है

यहाँ से दूर कोई आसमानों में टहलता है

अगर उसको बुलायें हम तो पल में आके मिलता है।।



वो कैसा है कहां है किस जगह दुनियां में मिलता है,

तेरे अन्दर,मेरे अन्दर वही आकर मचलता है।



अगर पूछे कोई जीवन क्या है,तो ये कहेंगे हम,

तरलता है,सरलता है,विफलता है,सफलता है।



हज़ारों ख़्वाहिशों के जंगलों में ले गयीं जैसे,

तुम्हारी आँखों में देखें तो सिमसिम कोई खुलता है।



ज़मीं ने जिसको अपनी बाँहों में भरकर मुहब्बत की,

किनारे काटने को फिर वही…

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Added by सूबे सिंह सुजान on October 5, 2012 at 8:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल--हंसी और भी तुमको मौसम मिलेंगे।

हंसी और भी तुमको मौसम मिलेंगे।

मगर दोस्त तुमको कहां हम मिलेंगे।।

मेरा दिल दुखाकर अगर तुम हंसोगे।

तुम्हें जिंदगी में बहुत ग़म मिलेंगे।।

अगर जिंदगी में खुशी चाहते हो।

तो इस राह कांटे भी लाज़िम मिलेंगे।।

कभी भी किसी ने ये सोचा न होगा।

कि इनसान के पेट में बम मिलेंगे।।

खुशी सबको मिलती नहीं मांगने से।

बहुत लोग दुनिया में गुमसुम मिलेंगे।।

तुम्हारी खुशी को जुदा हो गया हूँ।

अगर जिंदगी है तो फिर हम…

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Added by सूबे सिंह सुजान on September 27, 2012 at 10:20pm — 4 Comments

कवि का काम है

कवि का काम है।
जो नहीं कहा गया हो,
अब तक जमाने में,
वो कहा जाये।
पिछला कहा हुआ
सच रहे,बचा रहे।
उससे आगे कुछ कहा जाये।।
आदमी बोलता रहे
आदमी चुप न होने पाये।
पानी से पत्थर को काटा जाये।
खुद को बार-बार डाँटा जाये।।
दूसरों से प्यार किया जाये
आदमी को आदमी ही रहने दिया जाये।
आदमी बहुत बेहतर है।
मशीन भी बनाई जाये।
लेकिन ज्यादा न चलाई जाये।
अपनी आँखों में ही,
सबकी आँखों को लाया जाये।


।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on September 25, 2012 at 11:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल-भावनाओं से खाली हृदय हो गये।

भावनाओं से खाली हृदय हो गये।
लोग हारे हैं पत्थर विजय हो गये।।

आँखें रह जाती हैं बस खुली की खुली
आज ऐसे भयानक दृश्य हो गये।

आदमी के लिये सिर्फ पृथ्वी नहीं
दूसरे भी ग्रहों के विषय हो गये।

न्याय की आस में बैठा है आमजन
अन्त आरोप उस पर ही तय हो गये।

प्रेम में पहले जैसी न गर्मी रही
रिश्ते खामोशियों में विलय हो गये।

प्रेम सम्बन्ध उनसे बनाओ “सुजान”
प्रेम से जिनके कोमल हृदय हो गये।।

  • सूबे सिंह “सुजान”

Added by सूबे सिंह सुजान on September 20, 2012 at 10:00pm — 7 Comments

शिक्षक दिवस पर एक गीत-

रोशनी को, जिन्हें हम जलाते हैं

आज हम उनका दिन मनाते हैं.....।

जिनकी मेहनत से हमने सीखा है

जिनके बिन दुनिया एक धोखा है

ज्ञान का दीप जो जलाते हैं......

आज हम उनका दिन मनाते हैं............।

वो हवाओं को मोड देते हैं

और पत्थर को तोड देते हैं

पौधों को पेड जो बनाते हैं....

आज हम उनका दिन मनाते हैं............।

                              सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on September 5, 2012 at 11:35pm — 6 Comments

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