For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Kalpna mishra bajpai's Blog (54)

कुछ दोहे

प्रथम प्रयास ............

1-) देह लता प्रभु दीन्ह है, काहे करत गुमान,

पर सेवा उपकार कर ,तब हीं पावे मान ।

2- ) सुत, दारा अरु बन्धु सब, स्वारथ को संसार,

भज लो साईं राम को, खुद का जनम संभार

3- ) मन मैला तन साफ है, क्यों फैलाये जाल ,

हरी को भावत साफ मन, लिखलो अपने भाल ।

4-) मंदिर, पूजा ,यज्ञ,तप, ऊपर का व्यापार ,

मन मंदिर नित झाढ़ लो, पाओगे प्रभु द्वार

5-) चौरासी…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on March 11, 2014 at 4:30pm — 12 Comments

सरस्वती वंदना

हे हंस वाहिनी प्रमुदित स्वर दो

माँ कल्याणी करुणा कर दो

हे हंस .........

ध्यान करूँ माँ तेरा निस -दिन

मंद बुद्धि को नूतन अक्षर दो

अहंकार का नास करो माँ

वीणा पाणि जाग्रत कर दो

हे हंस ..........

जीवन में छाया अँधियारा

ज्योतिर्मय उर आँगन कर दो

हो जाए मन में उजियारा

वरद हस्त सिर पर माँ रख दो

हे हंस ...........

पल -पल चिंतन रहे चिरंतर

इतनी उर में शक्ति भर दो

स्वप्नों में…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on March 6, 2014 at 9:30pm — 5 Comments

मैं नारी हूँ ( कल्पना मिश्रा बाजपेई)

मैं नारी हूँ .. "कुसुम अवदात नहीं हूँ"

सौंदर्य बोध से गढ़ी हूँ 

मानवता के लिए कड़ी हूँ

सबके के लिए अहिर्निश खड़ी हूँ

भावनाओं से नित जड़ी हूँ

कभी किसी से नहीं हूँ कम,

इस बात पर अड़ी हूँ 

मैं नारी हूँ..... बिन स्वर का गान नहीं हूँ ।

दिल में उत्साह भरा है अपरिमित

हर वक्त सेवा में हूँ समर्पित 

शक्तियों से हूँ मैं निर्मित

जो चाहूँ वो करती हूँ अर्जित

इससे हूँ में सदा ही गर्वित

मैं नारी…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on March 4, 2014 at 4:00pm — 21 Comments

फागुन का मास

फागुन का मास

तारों की बारात

चाँदनी के रथ पर

आएगा मोहन

यमुना के तीर

होके अधीर, में तो उसकी हो जाऊँगी ।

श्यामल सा मनोहर गात

पीला सा सिर पर पाग

कानों में कुंडल

अधरों पे मोती

धरे तिरछा पैर

छोड़ सब की खैर, मै तो चरणन में गिर जाऊँगी ।

होंठों की शान

प्यारे की मुस्कान

मीठी सी चितवन

सखियों का लूटे मन

कर के सब जतन, मै तो उनकी हो जाऊँगी ।

माँ यशोदा का…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on March 2, 2014 at 2:30pm — 8 Comments

अकेलापन

हाय! अकेलापन क्यों?

बोझिल सा लगता है

अकेलापन तो स्वर्णिम क्षण है

अपने आप को जानने का पल है

क्यों मानव इससे घबराए?

यह तो सबका बल है। 

अकेलापन शक्ति देता है…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on March 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments

मैं और मेरा "मन"

मैं आज चिड़ी सी उड़ती फिरती हूँ,

खुद चढ़ अंबर का व्यास नापती हूँ ,

कर दिया किसी ने झन-झन मेरे पर को,

मैं आँखों के दो दीप लिए फिरती हूँ ।

मैं प्रेम-सुधा रस पान किया करती हूँ ,

मैं कभी ना खुद का ध्यान किया करती हूँ ,

जग जाकर पूछे उनसे जो अपनी कहते ,

मैं अपने दिल का गीत सुना करती हूँ ,

मैं सुर- बाला सा, उन्माद लिए फिरती हूँ ,

मैं नए -नए उपहार लिए फिरती हूँ ,

यह मंगलदाई, संसार ना मुझ को भाता ,

मैं खुद की…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 27, 2014 at 7:00pm — 4 Comments

अतुकांत

बचपन का गाँव

नीम की छांव

छोटा सा कोना

कच्चा सा आँगन

बहुत याद आता है ।

गाँव के मेले 

ढेरों झमेले

दोनें में चाट

बर्फ को गोला

बहुत याद आता है ।

बचपन की सखियाँ

डिब्बे में गुड़ियाँ

छोटा सा गुड्डा

उन से बतयाना

बहुत याद आता है ।

सावन के झूले

हाथों में मेंहदी

काँच की चूड़ी

निवौली की पायल

बहुत याद आते है…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 25, 2014 at 8:51pm — 5 Comments

कह-मुकरियाँ (१२ से १८) - कल्पना मिश्रा बाजपेई

12-)

तोल-मोल कर जब ये बोले ।

दिल के तालों को ये खोले ।

कभी ना होती इसे थकान,

क्या सखी साजन ?

ना सखि जुवान !

13-)

भारत माँ का सच्चा लाल ।

लंबा कद और ऊँचा भाल ।

इस पर बनते लाखों गान,

क्या सखि साजन ?

ना सखि जवान !

14-)

सर्दी गर्मी या हो बरसात।

हर दम रहता है तैनात ।

कभी ना करता आले बाले ,

क्या सखि छाते ?

ना सखि ताले!

15-)

गर्मी में मिलता ना…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 11:00pm — 10 Comments

कह-मुकरियाँ - कल्पना मिश्रा बाजपेई

1-)

छू जाता  है तन को मेरे। 

कह जाता  है मन को मेरे ।

उसको हरदम है कुछ कहना,

क्या सखि साजन ?

ना सखि नैना !

2-)

छूते है तन मन को मेरे ।

बिन बोले ही मेरे तेरे ।

मिल जाते हम सब के संग,

क्या सखि साजन ?

ना सखि रंग !

3-)

दिल को मेरे छू जाती है ।

भावनाओं को सहलातीं है ।

इन की नहीं है कोई म्यादे ,

क्या फरियादें ?

ना सखि यादें !

4-)

टिकट…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 7:30pm — 7 Comments

दीप -शिखा (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

आज बता दे दीप -शिखा प्रिय 

मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?

दीप तले है नित अँधियारा 

फिर भी तू अँधियारा हरता

पल -पल तू, धुआँ रूप में

हर पल, खुद की व्यथा उगलता

देख रही हूँ ज्योति तेरी,में

तेरा व्याकुल ह्रदय मचलता

पर कालिमा हरने में ही

दीप तेरा यह जीवन जलता

मानवता को रोशन कर के  भी

मैं उजयारा कर पाऊँ कैसे ?

उढ़कर आता जब परवाना

आलिंगन करने तुझको

आखिर वह,जल ही…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 21, 2014 at 10:00pm — 3 Comments

जिन्दगी

ज़िंदगी कसौटियों पर कस कर

निखरती सी गई

जितनी ये तबाह हुई

उतनी संभरती सी गई

आदमियत और गद्दारी में आकर

घुलती सी गई

कभी ये राम,रहीम ,नानक

में बँटती सी गई…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 16, 2014 at 10:25am — 12 Comments

दरख़्त की आशा

आस बांधे खड़ा था

धूप से तन जल रहा था 

जेष्ठ भी तो तप रहा था

आस थी बरसात की

प्यास थी एक बूंद की

आ गिरेगी शीश पर

तृप्त होगी देह तब

यह सोच कर उत्साह मन में हो रहा था

घन-घटा चहूँ ओर छाती जा रही थी

मलय शीतल उमड़-घुमड़ के बह रही थी 

मेघ घिर-घिर आ रहे थे

मोर भी संदेश मीठा दे रहे थे

हर्ष दिल में हो रहा था

आनंद से छोटे बड़े सब घूमते

बाल मन से थे धरा को चूमते

एक दूसरे से मिल रहे जैसे गले

उल्लास…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 8, 2014 at 4:30pm — 6 Comments

कविता (बेटी के दिल से)

खड़ी-खड़ी देखती हूँ जब मैं पिता की ओर

मन हुलसाती बाबा हांथ न बढ़ाते हैं



भैया को मंगाया गया चन्दन का पालना

मेरे लिए बांस का खटोला बिछाते हैं



भैया के खेलने को मोटर कार और बाजा

मेरे लिए खेलने को लाले रोज पड़ते हैं



भैया के खाने को दूध और बताशा खीर

मेरे लिए रोटी दाल बहुत बताते हैं



भैया के पढ़ने को विदेश पठाया गया

मेरे लिए अक्षर ज्ञान बहुत बताते हैं



भैया को बना के दिये महल-दुमहला खूब

मेरे लिए छोटी सी पालकी मंगाते… Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 4, 2014 at 10:15pm — 10 Comments

कविता (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

बाबुल,मेरा मन आज भयो जैसे पाखी

जो मैं होती बाबा तेरे घर गौरैया

नित आंगन तेरे आती

जो मैं होती बाबा तेरी खरक की गैया 

नित खरक में दर्शन तेरे पाती

जो मैं होती बाबा तेरे द्वार निमरिया

नित शीतल छाँव बिछाती

जो मैं होती बाबा तेरे सिर का साफा

नित धूप से तुम्हें बचाती

जो मैं बाबा शगुन चिरैया

नित मीठे गीत सुनाती

मेरा मन आज भयो जैसे पाखी

मैं तो भई बाबा बेमन बिटिया

दूर देश जाके ब्याही 

मन ही मन…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 3, 2014 at 9:00pm — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service