वर्तमान में भागमभाग की जिन्दगी में मनुष्य एक ऐसी मायवी दुनिया में जी रहा हैं जहां ऊपर से अपने आप को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इन्सान जताता हैं,जबकि वास्तव में वो एक मशीनी जिन्दगी जी रहा हैं,तनावग्रस्त,सम्वेदनहीन,एकाकी हो गया हैं जहाँ सम्वेदनशीलता और सह्रदयता अकेली हो जाती हैं और एक उठला जीवन जीने लगता हैं .ऐसे में उसेइस कोलाहल भरी दुनिया से छुटकारा मिलने का एक मात्र साधन -सात सुरों से सजा संगीत होता हैं.संगीत ही ऐसी औषधि होती हैं जिसमें ह्रदय से बिखरे आदमी को…
ContinueAdded by babitagupta on May 16, 2018 at 6:02pm — No Comments
ममता का सागर,प्यार का वरदान हैं माँ,
जिसका सब्र और समर्पण होता हैं अनन्त,
सौभाग्य उसका,बेटा-बेटी की जन्मदात्री कहलाना,
माँ बनते ही,सुखद भविष्य का बुनती वो सपना,
इसी 'उधेड़बुन'में,कब बाल पक गये,
लरजते हाथ,झुकी कमर.सहारा तलाशती बूढ़ी…
ContinueAdded by babitagupta on May 13, 2018 at 1:00pm — 5 Comments
कुदरत की सबसे बडी नेमत है हंसी,
ईश्वरीय प्रदत्त वरदान है हंसी,
मानव में समभाव रखती हैं हंसी,
जिन्दगी को पूरा स्वाद देती हैं हंसी,
बिना माल के मालामाल करने वाली पूंजी है हास्य,
साहित्य के नव रसो में एक रस होता हैं हास्य,
मायूसी छाई जीवन में जादू सा काम करती हैं हंसी,
तेज भागती दुनियां में मेडिटेशन का काम करती हैं हंसी,
नीरसता, मायूसी हटा, मन मस्तिष्क को दुरुस्त करती हैं हंसी,
पलों को यादगार बना, जीने की एक नई दिशा देती हैं…
ContinueAdded by babitagupta on May 6, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
कच्ची उम्र थी,कच्चा रास्ता,
पर पक्की दोस्ती थी,पक्के हम,
उम्मीदों का,सपनों का कारवां साथ लेकर चलते,
स्वयं पर भरोसा कर,कदम आगे बढाते,
कर्म भूमि हो या जन्म भूमि,हमारी पाठशाला होती,
काल,क्या??किसी व्यतीत क्षणों का पुलिंदा मात्र…
ContinueAdded by babitagupta on May 4, 2018 at 1:02pm — 9 Comments
चिथड़े कपड़े,टूटी चप्पल,पेट में एक निवाला नहीं,
बीबी-बच्चों की भूख की आग मिटाने की खातिर,
तपती दोपहरी में,तर-वतर पसीने से ,कोल्हू के बैल की तरह जुटता,
खून-पसीने से भूमि सिंचित कर,माटी को स्वर्ण बनाता,
कद काठी उसकी मजबूत,मेहनत उसकी वैसाखी,…
ContinueAdded by babitagupta on May 1, 2018 at 1:30pm — 4 Comments
बुजुर्ग यानि हमारे युवा घर की आधुनिकतावाद की दौड़ में डगमगाती इमारत के वो मजबूत स्तम्भ होते हैं जिनकी उपस्थिति में कोई भी बाहरी दिखावा नींव को हिला नही सकता.उनके पास अपनी पूरी जिन्दगी के अनुभवों का पिटारा होता हैं जिनके मार्ग दर्शन में ये नई युवा पीढ़ी मायावी दुनिया में भटक नही सकती,लेकिन आज के दौर में बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा हैं.उनकी दी हुई सीखे दकियानूसी बताई जाती हैं .ऐसा ही मैंने एक लेख में पढ़ा था जिसमे बुजुर्गों को पराली की संज्ञा दी गई.पराली वो होती…
ContinueAdded by babitagupta on April 28, 2018 at 4:46pm — 7 Comments
घर की सुखमयी ,वैभवता की ईटें सवारती,
धरा-सी उदारशील,घर की धुरी,
रिश्तों को सीप में छिपे मोती की तरह सहेजती,
मुट्ठी भर सुख सुविधाओं में ,तिल-तिल कर नष्ट करती,
स्त्री पैदा नही होती,बना दी जाती,
ममतामयी सजीव मूर्ति,कब कठपुतली बन…
ContinueAdded by babitagupta on April 25, 2018 at 6:00pm — 4 Comments
शांत चेहरे पर होती अपनी एक कहानी,
पर दिल के अंदर होते जज्बातों के तूफान,
अंदर ही अंदर बुझे सपनों के पंख उडने को फडफडाते,
पनीली ऑंखों से अनगिनत सपने झांकते
जीवन का हर लम्हा तितर वितर क्यों होता,
जीवन का अर्थ कुछ समझ नहीं आता,
लेकिन इस भाव हीन दुनियां में सोचती,
खुद को साबित करने को उतावली,
पूछती अपने आप से,
सपने तो कई हैं, कौन सा करू पूरा,
आज बहुत से सवाल दिमाग को झकझोरते,
खुद से सवाल कर जवाब…
ContinueAdded by babitagupta on April 23, 2018 at 3:30pm — 5 Comments
सुर्ख अंगारे से चटक सिंदूरी रंग का होते हुए भी मेरे मन में एक टीस हैं.पर्ण विहीन ढूढ़ वृक्षों पर मखमली फूल खिले स्वर्णिम आभा से, मैं इठलाया,पर न मुझ पर भौरे मंडराये और न तितली.आकर्षक होने पर भी न गुलाब से खिलकर उपवन को शोभायमान किया.मुझे न तो गुलदस्ते में सजाया गया और न ही माला में गूँथकर देवहार बनाया गया.हरित विहीन वन में मेरे बासंती फूल जंगल के सूनेपन को बांटता.प्रज्ज्वलित पुष्प धरा को ,नभ को रंगीन बनाते.धरा पर बिछे सूखे,पीले पत्तों पर मेरी मखमली,चटकती कलिया अपनी भावनाओं को…
ContinueAdded by babitagupta on April 21, 2018 at 1:51pm — 2 Comments
क्यों अंजान रखा 'उन काले अक्षरों से'
तेरे लिए क्या बेटा, क्या बेटी,
तेरी ममता तो दोनों के लिए समान थी,
परिवार की गाडी चलाने वाली तू,
फिर, कैसे भेदभाव कर गई तू,
क्यों शाला की ओर बढते कदमों को रोका,
क्यों उन आडे टेढे मेढे अक्षरों से अंजान रखा,
कहीं पडा, किसी किताब का पन्ना मिल जाता,
तो, उसे उलट पुलट करती, एक पल निहारती,
हुलक होती, पढते लिखते हैं कैसे,
जिज्ञासा होती इन शब्दों को उकेरने की,
या फिर…
ContinueAdded by babitagupta on April 19, 2018 at 8:31pm — 2 Comments
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