मैं हूँ सामान्य वर्ग का एक सामान्य अधेड़
न, न, अभी उम्र पचास की नहीं हुई
केवल पैंतीस की ही है
मगर अधेड़ जैसा लगने लगा हूँ
मेरी गलती यही है
कि मैं विलक्षण प्रतिभा का स्वामी नहीं हूँ
न ही किसी पुराने जमींदार की औलाद हूँ
एक सामान्य से किसान का बेटा हूँ मैं
बचपन में न मेरे बापू ने मेरी पढ़ाई पर ध्यान दिया
न मैंने
नौंवी कक्षा में मुझे समझ में आया
कि इस दुनिया में मेरे लिए कहीं आशा बाकी है
तो वह पढ़ाई में ही है
तब मैंने पढ़ना…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 22, 2011 at 3:38pm — 17 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - तीन ---------------------
वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .
"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .
"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ." मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 21, 2011 at 11:26pm — 3 Comments
फिराक़ गोरखपुरी का असल नाम था रघुपति सहाय। 28 अगस्त 1896 को उत्तर प्रदेश के शहर गोरखपुर में पैदा हुए। उनके पिता का नाम था, बाबू गोरखप्रसाद और वह आस पास के इलाके के सबसे दीवानी के बडे़ वकील थे। रघुपति सहाय का लालन पालन बहुत ही ठाठ बाट के साथ हुआ था। 1913 में गोरखपुर के जुबली स्कूल से हाई स्कूल पास किया। इसके पश्चात इलाहबाद के सेंट्रल कालेज में दाखिला लिया। इंटरमीडेएट करने के दौरान ही उनकी मनमर्जी के विरूद्ध उनके पिता ने रघपति सहाय की शादी करा दी गई। यह विवाह उनकी जिंदगी में अत्यंत…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on September 15, 2011 at 8:30pm — 5 Comments
क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है
आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।
गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल
आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।
उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।
आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।
जुर्म यह था मैं ने सच…
Added by siyasachdev on September 15, 2011 at 9:10pm — 19 Comments
हिंदी प्रसार
Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:00am — 3 Comments
मुक्तिका
अब हिंदी के देश में
संजीव 'सलिल'
*
करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.
गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..
ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...
शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में
बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.
मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..
'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.
नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:30am — 8 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 7, 2011 at 2:00am — 8 Comments
हो गगन के चन्द्रमा तुम क्यों अगन बरसा रहे
देख कर बिरही अकेला क्यों मगन मुस्का रहे
मेरी धरती ने तुम्हे आकाश पर पहुंचा दिया
तुम भटकते ही रहे अब तक न तुमने कुछ किया
आज कर लो व्यंग्य कल तुम देख कर जल जाओगे
आज हूँ परदेश में कल पार्श्व में होगी प्रिया
इसलिए आगे बढ़ो जाओ जहाँ तुम जा रहे हो
हो गगन के चन्द्रमा ...........................
विरह में कितनी व्यथा है ये वियोगी जानते हैं
कोई क्या जानेगा केवल भुक्त भोगी…
Added by Yogendra B. Singh Alok Sitapuri on September 11, 2011 at 4:05pm — 4 Comments
रमिया बड़ी खुश थी । शहर जो जा रही थी - अपने पोते को देखने जाने का आखिर उसे मौका मिल ही गया था । यह अवसर बनने में समय लग गया और देखते देखते उसका पोता सात साल का हो गया था । महानगर की भागम-भाग भरी जिन्दगी में से न तो उसका बेटा ही समय निकाल पा रहा था और ना ही रमिया गाँव की अपनी खेती गृहस्थी में से समय निकाल पा रही थी । या यूँ कहें कि कुछ अधिक ही व्यस्त थे दोनों ही माँ-बेटे । और रमिया का पोता…
Added by Neelam Upadhyaya on September 11, 2011 at 8:30pm — 13 Comments
मुर्गे की बांग के साथ ही
प्रवेश किया मैंनें तुम्हारी नगरी में .
रुपहरी भोर ,सुनहरी प्रभात से ,
गले लग रही थी
लताओं से बने तोरणद्वार को पारकर आगे बढ़ी,
कलियाँ चटक रही थीं,
फूलों का लिबास…
ContinueAdded by mohinichordia on September 11, 2011 at 2:00pm — 10 Comments
Added by Abhinav Arun on September 5, 2011 at 9:45pm — 14 Comments
Added by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 12:30am — 5 Comments
आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.
जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.
आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,
नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.
घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,
आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.
आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी,
कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 4, 2011 at 11:53pm — 27 Comments
(चित्र गुगल से साभार)
हाइगा एक परिचय :- हाइगा साहित्य की जापानी विधा है जो १७ वी शताब्दी में शुरू की गई थी, हाइगा मूलतः दो जापानी शब्द से मिलकर बना है,
हाइगा = हाइ + गा ,
हाइ (हाइकु) = कविता ,
गा = रंग चित्र या चित्रकला
अर्थात, हाइगा, हाइकु और रंग चित्र के संयोजन से सृजित किया जाता है, उस समय रंग…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2011 at 9:00pm — 25 Comments
तुम्हारे प्यार की फुहार से
इस कदर भीगा तन-मन, कि,
जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन
झुलसा न सकी…
ContinueAdded by mohinichordia on August 23, 2011 at 9:00pm — 8 Comments
लघुकथा : बहू-बेटी
“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे…
Added by Ravi Prabhakar on August 21, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2011 at 10:46am — 10 Comments
साथियों,
कई मित्रों का प्रश्न है कि "मैं अपने मित्रों को जो जीमेल, याहू , हॉटमेल आदि में है उनको कैसे ओ बी ओ पर आमंत्रित करूँ ?
इसका सरल उपाय ओ बी ओ पर है, मैं चित्र (स्क्रीन शोट) के माध्यम से बताना चाहता हूँ , उम्मीद है प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा, उसके पश्चात् भी यदि कुछ प्रश्न उठ रहे हो तो नीचे कमेंट्स बॉक्स में लिखे ....मैं हूँ ना :-)
…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 20, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
Added by satish mapatpuri on August 14, 2011 at 12:00am — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 1:39pm — 16 Comments
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