बस मैं जानूं या तुम जानो ......
पीर पीर को क्या जाने
नैन विरह से अनजाने
वो दृग स्पर्श की अकथ कथा
बस मैं जानूं या तुम जानो .......
पल बीता कुछ उदास हुआ
रुष्ट श्वास से मधुमास हुआ
क्यूँ दृगजल से घन बरस पड़े
बस मैं जानूं या तुम जानो ....... .
तुम हर पल मेरे साथ थे
मेरी श्वास के विशवास थे
क्यूँ शेष बीच अवसाद रहे
बस मैं जानूं या तुम जानो…
Added by Sushil Sarna on March 31, 2016 at 5:00pm — 12 Comments
बेवफाई ....
एक जानवर
अपने मालिक को
इंसान समझने की
गलती कर बैठा
उसे अपना खुदा समझ बैठा
वक्त बेवक्त उसकी रक्षा करने को
अपना फर्ज समझ बैठा
उसके हर इशारे पर
जानवर होते हुए भी
खुद को न्योछावर कर बैठा
डाल दिये टुकड़े तो खा लिए
वरना खामोशी से
अपने पेट से समझोता कर बैठा
अपने दर्द को
अपने कर्मों की सजा समझ बैठा
जगता रहा वो रातों को
ताकि मालिक चैन से सो सके
इक जरा सी गलती ने
मालिक ने उसकी पीठ पर
जानवर का…
Added by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 2:53pm — 2 Comments
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको
कुछ मीत मनाने हैं मुझको
जो अब तक पूरे हो न सके
वो गीत बनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
कब मौसम जाने रूठ गया
कब शाख से पत्ता टूट गया
जो रिश्तों में हैं सिसक रहे
वो दर्द अपनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
क्यूँ नैन शयन में बोल उठे
क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे
अवगुंठन में तृषित हिया के
अंगार मिटाने …
Added by Sushil Sarna on March 26, 2016 at 6:22pm — 10 Comments
मन बहुत उदास है ...
जाने क्यूँ आज
मन बहुत उदास है
वज़ह भी कोई ख़ास नहीं
फिर भी एक
अंजानी से उदासी ने
हृदय में पाँव पसार रखे हैं //
लगता है शायद
कुछ ऐसा रह गया
जो अपनी पूर्णता को
प्राप्त न कर सका हो //
या फिर कोई लम्हा
शब की चादर में
अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ
धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते
जाग गया हो //
या फिर कोई याद
तन्हाईयों में रक्स करती
उदासी के घरौंदे में…
Added by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 4:25pm — 4 Comments
संग तुम्हारे नाम के ......
इस लम्हा
जब शून्यता ने
मुझे अंगीकार कर लिया है //
मेरे ख्वाब
सूखे शज़र के ज़र्द पत्तों से
बिखर गए हैं
कम से कम
मुझ पर इतना तो रहम कर दो
तुम अपनी याद का
इक चराग तो जलने दो//
इस लम्हा
जब मेरा वज़ूद
ख़ाक में मिलने से पहले
अंतिम साँसों से
जीने की जिद्दो ज़हद में उलझा है
अपने अस्तित्व की याद को
मेरे ज़हन में जी लेने दो//
इस लम्हा जब
मेरी तमाम हसरतें…
Added by Sushil Sarna on March 21, 2016 at 2:15pm — 4 Comments
कैनवास ...
मुझे बहुत खुशी हुई थी
जब हर शख़्श
तुम्हें सलाम कर रहा था
तुम्हारे हर रंग की कद्र हो रही थी
तुम वाहवाही के नशे में गुम थे //
भीड़ में तन्हा
मैं तुम्हारे चहरे को निहार रही थी
इतने चहरे लिए
न जाने लोग कैसे जी लेते हैं
खुद को ज़िंदा रखने के लिए
न जाने
कितनों की खुशियाँ पी लेते हैं //
तुम कैसे पुरुष हो
औरत चाहते हो पर
उसे समझ नहीं पाते
उसके अहसासों से खिलवाड़ करते हो
न जाने कौन से…
Added by Sushil Sarna on March 13, 2016 at 6:16pm — 12 Comments
अनाम रिश्ते......
मैंने कभी
उसके बारे में सोचा न था
न कभी
उसे ख्वाब में देखा था
उसके नाम से
मैं कभी आशना न थी
न कभी अपने दिलोदिमाग में
उसे पाने की तमन्ना का
कोई बीज बोया था
फिर भी न जाने क्यूँ
सदा मुझे किसी साये के
करीब होने का अहसास होता था
शब की तारीकियों हों
या मेरी तन्हाईयाँ हों
मेरे हर लम्हे को
वो अपनी मौजूदगी के अहसास से
लबरेज़ करता था
उसके अहसास ने…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:39pm — 7 Comments
मैंने सोचा न था ......
मुझे गीत का नाम देकर
तुम बार बार
मुझे गुनगुनाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे रक्ताभ अधरों पर
अपनी अनुभूति का
अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे अंतरंग पलों में
प्रेम घनों की
नन्ही बूंदों सा बरसता
तुम कोई राग छोड़ जाओगे
सच ! ऐसे तो कभी
मैंने सोचा न था//
कभी मेरी मूक व्यथा
शून्यता से मिल
उसके अंक में…
Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 9:34pm — 14 Comments
इक उम्र जी जाती हूँ ....
उसके जाने के बाद मैं
कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ
नींदें सुहाती नहीं
यादें सुलाती नहीं
आईना बेगाना सा लगता है
अक्स भी अंजाना सा लगता है
लिबास बदलूं
तो किस के लिए
शाम-ओ-सहर उदासियों के
मंज़र कहर ढाते हैं
ज़िस्म पर लम्स के अहसास
कतरनों से सजे नज़र आते हैं
चलती हूँ तो न जाने
कितने लम्हे साथ चलते हैं
एक आहट के इंतज़ार में
काफिले अश्कों के पिघलते हैं
शब् तो अब भी होती है मगर
अब हर…
Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 2:06pm — 14 Comments
मुस्कुरा भर देती हूँ .....
कुछ तो है
तेरे मेरे मध्य
अव्यक्त सा //
शायद कोई शब्द
जो अभिव्यक्ति के लिए
अधरों पर छटपटा रहा हो //
या कोई पीछे छूटा पल
जो समय की आंधी में
अपने अहसासों को
बिखरने की वज़ह ढूंढ रहा हो //
या हृदय के अवगुंठन में
कोई उनींदी से चेतना
जो किसी के
स्नेह्पाश की प्रतीक्षा में
नयन दहलीज़ पर
अधलेटी सी बैठी हो //
क्या है आखिर
ये अव्यक्त और…
Added by Sushil Sarna on March 4, 2016 at 3:19pm — 10 Comments
मित्रो , आज दिनांक ०३. ०३. २०१६ को विवाह की ४०वीं वर्षगांठ के
अवसर पर अपने हमसफ़र को समर्पित दिल के अहसास :
मैं नहीं जानता
मेरे अलफ़ाज़
तेरे दिल की गहराईयों में
कब तक गूंजते हैं
मगर जब तेरी नज़र उठती है
मुझे अपने वुज़ूद का
अहसास होता है
जब तेरी पलक की नमी
मेरी पलक को छूती है
मुझे अपनी मुहब्बत का
अहसास होता है
जब तेरे सुर्ख लबों पे
मुस्कुराहट अंगड़ाई लेती है
मेरी धड़कनों को
तेरी करीबी का
अहसास होता है
जब…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2016 at 12:36pm — 10 Comments
नयी क़बा ....
कितनी अजब होती है
वो प्रथम अभिसार की रात
पुष्पों से सेज सुरभित रहती है
पलकों में उनींदे ख्वाब रहते हैं
एक जिस्म
दो कबाओं में सिमटा
किसी अनजाने पल के इंतज़ार में
ख़ौफ़ज़दा होता है
न चाह कर भी
अपने हाथों से
कुवांरे ख़्वाबों की क़बा का
कत्ल करना पड़ता है
मुहब्बत के
रेशमी अहसासों का नया पैराहन
खामोश वज़ूद को
एक नया नाम दे देता है
कुवारी क़बा
इक चुटकी भर सिन्दूर में लिपट…
Added by Sushil Sarna on February 27, 2016 at 8:00pm — No Comments
गूंगी गुड़िया ....
कितनी प्रसन्न दिख रही हो
सुनहरे बाल
छोटी सी फ्रॉक
छोटे छोटे पांवों में
लाल रंग की बैली
नटखट आँखें
नृत्य मुद्रा में फ़ैली दोनों बाहें
बिन बोले ही तुम
कितने सुंदर ढंग से
अपने भावों का
सम्प्रेषण कर रही हो
तुम पर
किसी मौसम का
कोई असर नहीं होता
सदैव मुस्कुराती हो
गुड़िया हो न !
शीशे की अलमारी में बंद रह के भी
सदा मुस्कुराती हो//
मैं भी बुल्कुल तुम्हारी तरह…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 3:38pm — 2 Comments
चुप हो जाते हैं.....
मन ही मन
हम कितना बतियाते हैं
जब अक्सर
हम चुप हो जाते हैं//
कभी आँखें बोलती हैं
कभी लब थरथराते हैं
रुके हुए पाँव
मील का पत्थर हो जाते है
जब अचानक
हम चुप हो जाते हैं//
तारीकियों के कैनवास पे
रिश्तों की सिसकती रेखाओं से
अपनी तूलिका में
दर्द का रंग भरकर
उसमें सिमट जाते हैं
अक्सर जब
हम चुप हो जाते हैं//
तपती राहों पर
सूखे होते शज़र से लिपट…
Added by Sushil Sarna on February 22, 2016 at 9:37pm — 2 Comments
प्यार में .......
नहीं नहीं
मैं अभी मृत्यु को
अंगीकार नहीं करना सकता//
अभी तो प्रेम सृजन का
शृंगार अधूरा है//
वृक्ष विहीन प्रेम पंथ पर
तलवों की तपिश का
संहार अधूरा है//
पाषाण बने पलों में
किसी लहर के
तट से मिलन का
इंतज़ार अधूरा है//
अभी तो मृत्यु से पूर्व
मुझे उसके लिए जीना है
जिसने आसमान के टूटे तारे से
बंद आँखों से
संग संग जीने की
दुआ माँगी है…
Added by Sushil Sarna on February 16, 2016 at 9:02pm — 4 Comments
थाप पे तबले की ....
थाप पे तबले की घुंघरू बजने लगे
किसने पहचानी इनकी परेशानियां
दाम लगने लगे ज़िस्म थिरकने लगे
आई नज़र में नज़र तो बस हैवानियाँ
थाप पे तबले की ......
सब खरीददार थे कोई अपना न था
सूनी आँखों में कोई भी सपना न था
चीर डाला हर एक हाथ ने जिस्म को
बज़्म में चश्म से दर्द छलकना न था
शोर साँसों की सिसकी का हर ओर था
हर सिम्त थी बस नादान नादानियां
पाँव घुंघरू बंधे महफ़िल में बजते रहे
किसने …
Added by Sushil Sarna on February 8, 2016 at 9:58pm — 8 Comments
अपना अधिकार रहने दो ....
व्यथित हृदय
कुछ तो रहने दो मन में
व्यथा को शब्दों के लिबास मत दो
शब्द सज संवर के आएंगे
जाने क्या क्या कह जाएंगे
अपने मौन को
शब्दों के आश्रित मत करो
सफर में शब्द भाव बदल देते हैं
जो अपनी होती है
वही बात
शब्दों के परिधान पहन
पराई हो जाती है
अपनी बात को
लोचन में पिघलने मत दो
अन्यथा व्यथा का रूप बदल जाएगा
बात का अपनापन
परायेपन की आशंका से
व्यर्थ में गीला हो जाएगा
बात…
Added by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:50pm — 6 Comments
उस पार ...
सच मानिए
नदिया के उस पार तो
कुछ भी नहीं है
जो कुछ भी है
सब इस पार यहीं है
आरम्भ भी यहीं है
अंत भी यहीं है
खुद से मिलने का
खुद में समाया
जीव का अलौकिक
पंत भी यहीं है
उस पार तो
कुछ भी नहीं है //
एक घर से
दूसरे घर की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //
एक स्वप्न और
यथार्थ की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //
एक मिलन और
विछोह की दूरी
एक श्वास भर ही…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2016 at 8:40pm — 12 Comments
उम्र का सफर ....
हम उम्र के साथी
शायद मेरी तरह
बूढ़े होने लगे हैं
केशों में चमकती चांदी
चेहरे की झुर्रियां
जीवन का सफर का
बेबाक आईना हैं
हाँ, सच
ये तो मेरी ही तरह बूढ़े हो चुके हैं
इनके हाथ काम्पने लगे हैं
मुंह की लार बस में नहीं है
ज़िंदगी को
बिना किसी सहारे के जीने वाले
बूढ़ी थकी लाठी पर
अपनी देह का बोझ लादे
डगमगाते पाँव लिए
जीवन का शेष सफर
तय करते नज़र आते हैं
क्या ! जीवन के सूरज का…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 29, 2016 at 8:53pm — 8 Comments
किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी (एक ग़ज़ल एक प्रयास )
२१२ x ४
रदीफ़=हो गयी
काफ़िया=आ
किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी
जान हम से हमारी जुदा हो गयी !!१!!
अब गिला आसमां से नहीं है हमें
बे-असर अब हमारी दुआ हो गयी !!२!!
हाल अपना सुनायें किसे हम भला
लो मुहब्बत हमारी खता हो गयी !!३!!
रात भर करवटों में वो लिपटी रही
याद उनकी हमारी क़ज़ा हो गयी !!४!!
दिल भला या बुरा समझता है कहाँ
ये मुहब्बत सुल्ह की रज़ा हो गयी…
Added by Sushil Sarna on January 21, 2016 at 8:57pm — 6 Comments
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